ऐसे में कोई व्यक्ति चुनाव के बाद संविधान को अपने मुताबिक संशोधित कर ले तो अपनी सीट पर अपनी मरजी से बैठा रह जायेगा और वह संविधान संशोधन तत्काल प्रभाव से लागू हो सकता है. इसको लेकर पक्ष और विपक्ष आमने -सामने है और अगर यूनियन की वर्तमान कमेटी कोई भी गलती करती है तो फिर से कोर्ट का चक्कर लग जायेगा.
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फिर संवैधानिक संकट की ओर टाटा वर्कर्स यूनियन
जमशेदपुर : टाटा वर्कर्स यूनियन को संवैधानिक संकट से बचाने के लिए नया संविधान बनाया गया है. नये संविधान को सरकार के श्रम विभाग की मंजूरी भी मिल गयी है. लेकिन यह कब से लागू होगा, इस पर बहस शुरू हो गयी है. हालांकि, श्रम विभाग ने जो मंजूरी दी है, उसमें यह कहा गया […]
जमशेदपुर : टाटा वर्कर्स यूनियन को संवैधानिक संकट से बचाने के लिए नया संविधान बनाया गया है. नये संविधान को सरकार के श्रम विभाग की मंजूरी भी मिल गयी है. लेकिन यह कब से लागू होगा, इस पर बहस शुरू हो गयी है. हालांकि, श्रम विभाग ने जो मंजूरी दी है, उसमें यह कहा गया है कि तत्काल प्रभाव से (यानी 2015 से) संविधान को लागू कर दिया जाये. लेकिन जो चुनाव वर्तमान कमेटी लड़ कर आयी है, वह पुराने संविधान के तहत ही हुआ है, जिसके तहत दो साल का ही कार्यकाल होगा, जबकि नये संविधान के मुताबिक, तीन साल का कार्यकाल तय किया गया है.
क्या है कानूनी पेंच
कभी भी चुनाव को लेकर संविधान में हुआ बदलाव वर्तमान कमेटी पर लागू नहीं हो सकता है, इसके पीछे तर्क है कि अगर ऐसा हुआ तो सारे लोग संविधान का संशोधन करेंगे और सत्ता पर बैठे रह जायेंगे.
टाटा वर्कर्स यूनियन की वर्तमान कमेटी जब चुनाव जीतकर आयी थी, तब पुराना संविधान प्रभावी था, जिसके तहत दो साल के कार्यकाल के लिए चुनाव हुआ था.
यूनियन की वर्तमान कमेटी के चुनाव के वक्त जो प्रमाण पत्र दिया गया था, उसमें भी दो साल के कार्यकाल का ही जिक्र किया गया है, जिससे नया कार्यकाल तीन साल का नहीं हो सकता है.
अगर फिर भी नये संविधान के तहत यह कमेटी चुनाव कराती है तो लोग कोर्ट जा सकते हैं, जिसमें मामला फिर से फंस सकता है.
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