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स्वावलंबी बनाती मछलियां ::::असंपादित

स्वावलंबी बनाती मछलियां ::::असंपादितप्रचूर मात्रा में प्रोटीन होने से मछली को स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से काफी अच्छा माना जाता है. ऐसे में इसकी अच्छी खपत होती है. जमशेदपुर इसका बड़ा बाजार है. अधिक पैदावार होने पर इसकी सप्लाई ओड़ीसा, बंगाल के क्षेत्राें में भी हो सकती है. मछुहारों की मानें तो इसमें अच्छी आमदनी होती […]

स्वावलंबी बनाती मछलियां ::::असंपादितप्रचूर मात्रा में प्रोटीन होने से मछली को स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से काफी अच्छा माना जाता है. ऐसे में इसकी अच्छी खपत होती है. जमशेदपुर इसका बड़ा बाजार है. अधिक पैदावार होने पर इसकी सप्लाई ओड़ीसा, बंगाल के क्षेत्राें में भी हो सकती है. मछुहारों की मानें तो इसमें अच्छी आमदनी होती है. सरकार की तरफ से लोगों को प्रोत्साहित भी किया जाता है. अन्य मदद के साथ-साथ समय-समय पर मुफ्त प्रशिक्षण दिया जाता है. ऐसे में यह स्वावलंबन का बढ़िया जरिया हो सकता है. लाइफ @ जमशेदपुर की रिपोर्ट … अच्छा रहता है प्रशिक्षण लेनामछुहारों का यह पुश्तैनी धंधा है. इसलिए उन्हें मछली पालन का अच्छा अनुभव होता है. नये लोगों को पालन संबंधी प्रशिक्षण लेना चाहिए. मत्स्य विभाग की तरफ से इसके लिए समय-समय पर प्रशिक्षण दिया जाता है. प्रशिक्षण के लिए लोगों को आंध्र प्रदेश, मुंबई जैसे मछली व्यवसाय के बड़े क्षेत्र भी भेजा जाता है. प्रशिक्षण में मछली को वैज्ञानिक ढंग से पालना सिखाया जाता है. ऐसे होता है अंडा तैयार अंडा के वास्ते मादा मछली को सूई देकर हिचारी में छोड़ दिया जाता है. नर और मादा मछली की पहचान आसानी से हो जाती है. मादा मछली का गलफरा चिकना होता है. अंडा रहने पर पेट भी थोड़ा बड़ा दिखता है. अंडा देने के बाद मछली को हिचारी से अलग कर दिया जाता है. ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि वह अंडा को नुकसान नहीं पहुंचा सके. 7-8 पीएच में ही डाले जाते हैं स्पॉन अंडा का अगला चक्र ही स्पॉन होता है. तालाब किनारे कम पानी वाले भाग को मिट्टी और जाली का बाड़ा बनाकर घेर लिया जाता है. इसमें स्पॉन छोड़ा जाता है. यहां पर जल की अनुकूलता देखी जाती है. पहले नेटिंग कर जगह की सफाई होती है. पानी का पीएच वेल्यू 7-8 यानी सामान्य रहने पर इसमें स्पॉन के चारा के लिए सरसो खल्ली, गोबर, चावल कोढ़ा डाला जाता है. दोबारा पीएच वेल्यू देखा जाता है. सामान्य रहने पर इसमें स्पॉन डाल दिया जाता है. अगर पीएच कम रहा तो इसे बढ़ाने के लिए चूना डाला जाता है. बारिश के मौसम तक स्पॉन फिंगर लिंग यानी छोटी मछली बन जाता है. इसके बाद इसे तालाब में छोड़ दिया जाता है. कितने क्षेत्रफल में कितनी मछली तालाब के क्षेत्रफल के हिसाब से ही इसमें मछली डाली जाती है. एक एकड़ के तालाब में पांच से छह हजार तक छोटी मछली डाली जाती है. इसमें से एक हजार के करीब मछली मर जाती है. तालाब में मछली छोड़ने का काम बारिश देखकर किया जाता है. बारिश अगर देर से शुरू हुई तो देर से और जल्दी शुरू हुई से जल्दी मछली छोड़ी जाती है. जरूरी है तालाब की सफाई नयी मछली डालने से पहले तालाब की सफाई की जाती है. तालाब के खर पतवार आदि हटा दिये जाते हैं. इसके बाद इसमें मछली का चारा डाला जाता है. तालाब की सफाई नहीं होने पर छोटी मछली के मरने का खतरा रहता है. छह महीने में बड़ी हो जाती है तालाब में मछली प्राय: जून-जुलाई में छोड़ी जाती है. नवंबर-दिसंबर से मछली मारने का काम शुरू हो जाता है, जो नयी मछली छोड़ने तक जारी रहता है. इस तरह इसमें सालोभर कुछ-न-कुछ पैसे आते रहते हैं. कितना होता है खर्चपांच एकड़ तालाब में 30 हजार तक छोटी मछली डाली जाती है. मोटे तौर पर इसकी कीमत 12 हजार रुपयेे होती है. इसमें 20 हजार रुपये का चारा लग जाता है. मजदूर का खर्च भी जोड़ दिया जाये तो कुल खर्च 35 से 40 हजार रुपये तक बैठता है. अगर अपना तालाब नहीं है तो लीज का खर्च 40 हजार रुपये जुट जाता है. अच्छी होती है आमदनी मछुहारों की मानें तो पांच एकड़ तालाब में विपरीत परिस्थिति में भी कम-से-कम 10-12 क्विंटल मछली जरूर हो जाती है. एक सौ रुपये प्रति किलोग्राम के दर से 12 क्विंटल मछली की कीमत एक लाख 20 हजार रुपये होती है. इस तरह अपना तालाब रहने पर 80 हजार रुपये का लाभ आराम से हो जाता है. ————बॉक्स में लें मछली पालकर बना आत्मनिर्भर कहते हैं कि सच्ची लगन और ईमानदार प्रयास किया जाये तो व्यक्ति को सफल होने से कोई नहीं रोक सकता. यह बात पटमदा स्थित काटिन के सपन कुमार कैवर्त पर सटीक बैठती है. दसेक साल पहले तक वह किसी तरह से जीवन यापन कर रहे थे. मछली व्यवसाय की वजह से आज खुशहाल जीवन जी रहे हैं. मछली व्यवसाय में तरक्की करने के कारण उन्हें मुख्यमंत्री से पुरस्कार भी मिल चुका है. मत्स्य विभाग में उन्हें सफल व्यवसायी के तौर पर जाना जाता है. दूसरों के तालाब में मारते थे मछली मछली मारना सपन का पुश्तैनी काम है. वह बताते हैं कि उनके दादा-पिता दूसरों के तालाब में मछली मारने जाते थे. मजदूरी के तौर उन्हें थोड़े पैसे मिलते थे. इससे किसी तरह घर चल पाता था. सपन 1990 में इस व्यवसाय में आये. उन्होंने भी दूसरे के तालाब पर मछली मारने से ही काम की शुुरुआत की. इसी दौरान वह मत्स्य विभाग के संपर्क में अाये. प्रशिक्षण लेकर उन्होंने काम को आगे बढ़ाया. पूंजी बचाकर उन्होंने 30 डिसमिल का तालाब बना लिया. इसमें वह मछली पालते हैं. लिया प्रशिक्षण उन्होंने मत्स्य विभाग से मछली पालन का प्रशिक्षण लिया. ट्रेनिंग व अन्य काम के लिए वह बराबर मत्स्य विभाग रांची जाते रहते हैं. उन्होंने पहली बार 2001 में रांची में ट्रेनिंग ली. वह बताते हैं कि उन्हें ट्रेनिंग के लिए मुंबई (5 दिन), आंध्र प्रदेश (7 दिन) और कोलकाता (3 दिन) भी भेजा गया. ट्रेनिंग में उन्हें वैज्ञानिक तरीके से मछली पालन सिखाया गया. आज ट्रेनिंग के हिसाब से ही वह मछली पालन कर रहे हैं.लीज पर ले रहे हैं तालाबछोटा ही सही अपना तालाब होने पर उन्हें बचत होने लगी. थोड़े पैसे होने पर उन्होंने लीज पर तालाब लेना शुरू कर दिया. आज उनके पास लीज पर छोटा-बड़ा मिलाकर 18 तालाब हैं. की तरक्की आज उन्हें गांव में प्रतिष्ठा की नजर से देखा जाता है. वह बताते हैं इस व्यवसाय ने उन्हें तरक्की दी. उन्होंने गांव में 12 एकड़ जमीन खरीदी, पक्का मकान बनाया, दो पिकअप गाड़ी भी खरीदी. मुख्यमंत्री से मिला इनाम उन्हें अच्छा मछली पालन के लिए कई बार मुख्यमंत्री से इनाम मिल चुका है. इस साल मुख्यमंत्री रघुवर दास से उन्हें पांच हजार रुपये का इनाम मिल चुका है. वह बताते हैं हर वर्ष उन्हें कुछ-न-कुछ पुरस्कार मिलता रहता है. उनका दावा है कि आत्मा की तरफ से तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने उन्हें 10 हजार रुपये का इनाम दिया था.

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