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आदिवासी लोककथा पर आधारित नाटक का मंचन- फोटो डीएस 4 व 5

‘जुगी तिरियो’ ने मोहा मनलाइफ रिपोर्टर@जमशेदपुरनरवा-बाघमारा के कासकोम डुंगरी में लोक कथा पर आधारित नाटक जुगी तिरयाव (जोगी का बांसुरी) का मंचन किया गया. इस नाटक में सात भाई व एक बहन की कहानी है. सातों भाई अपनी बहन से अथाह प्रेम करते हैं. जंगल के पास के गांव में रहते हैं. खेतीबाड़ी व शिकार […]

‘जुगी तिरियो’ ने मोहा मनलाइफ रिपोर्टर@जमशेदपुरनरवा-बाघमारा के कासकोम डुंगरी में लोक कथा पर आधारित नाटक जुगी तिरयाव (जोगी का बांसुरी) का मंचन किया गया. इस नाटक में सात भाई व एक बहन की कहानी है. सातों भाई अपनी बहन से अथाह प्रेम करते हैं. जंगल के पास के गांव में रहते हैं. खेतीबाड़ी व शिकार कर अपना जीविका चलाते हैं, लेकिन परिस्थितिवश सातों भाइयों मिलकर अपनी बहन की हत्या कर देते हैं. जिस जमीन पर उनकी बहन की अस्थि को तोप दिया जाता है, वहां एक सुंदर बांस का पौधा निकलता है. उसी पौधे की बांस से एक जोगी बांसुरी तैयार करता है, जो कर्णप्रिय स्वर निकलता है. यहीं से कहानी एक नयी रोमांचक मोड़ लेता है. यह नाटक आदिवासियों के विलुप्त होते फिरकाल नृत्य शिकारी पर आधारित है. इस नाटक का प्रस्तुतिकरण राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय नयी दिल्ली द्वारा प्रदत्त फिरकल नृत्य रिसर्च फेलोशिप के तहत किया गया. रिसर्च कार्य राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय महिला निदेशक व नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के प्रो त्रिपुरारी शर्मा के देखरेख में किया जा रहा है. नाटक प्रस्तुति को आयोजित करने में यूसिल जादूगोड़ा व राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के सहयोग से किया गया. जुगी तिरयाव नाटक को जितराई हांसदा ने लिखा व निर्देशित किया है.

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