(रांची के लिए)वरीय संवाददाता, जमशेदपुरपरीक्षा में असफल होना जीवन की असफलता नहीं है. असफलता में सफलता की राह छुपी होती है. इसलिए घबरा कर कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए, बल्कि यह तलाशना जरूरी है कि चूक कहां रह गयी. यह मानना है बागबेड़ा के आनंदनगर निवासी कुंज बिहारी का. कुंज बिहारी वर्ष 1981 में पहली बार मैट्रिक की परीक्षा में शामिल हुए. पढ़ाई में एवरेज विद्यार्थी थे. पहली बार परीक्षा में सफलता नहीं मिली. घर में पिताजी की खरी-खोटी व मार सहनी पड़ी. इसके बाद दूसरी व तीसरी बार भी मैट्रिक की परीक्षा दी, लेकिन सफलता नहीं मिली. हर बार घर में डांट-फटकार पड़ती. कुंज बिहारी बताते हैं कि रिजल्ट खराब होने व घर में डांट-फटकार दूसरों की ही तरह मुझे भी खराब लगती थी, लेकिन मैंने इसे अपनी कमजोरी नहीं समझी. अपनी कमियों को ढूंढता व यह सोच कर लगातार प्रयास करता रहा कि एक न एक दिन सफलता जरूर मिलेगी. चौथे प्रयास में इस परीक्षा में सफलता मिली. इसके बाद पढ़ाई की, लेकिन अपनी रुचि व प्रतिभा को भी तलाशता रहा. मुझे व्यवसाय करना अच्छा लगा और मुहल्ले में किराना दुकान खोल ली. आज दुकान अच्छी चल रही है. माता-पिता व बच्चों के साथ खुश हूं.—————————–खबर दो बार पढ़ी है.
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असफलता से मिली जीवन का राह
(रांची के लिए)वरीय संवाददाता, जमशेदपुरपरीक्षा में असफल होना जीवन की असफलता नहीं है. असफलता में सफलता की राह छुपी होती है. इसलिए घबरा कर कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए, बल्कि यह तलाशना जरूरी है कि चूक कहां रह गयी. यह मानना है बागबेड़ा के आनंदनगर निवासी कुंज बिहारी का. कुंज बिहारी वर्ष 1981 में पहली […]
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