जमशेदपुर. जिस कॉलेज की हालत खस्ता हो गयी हो, वहां की कमान डॉ शालिग्राम यादव को सौंप दी जाती थी. फिर अपनी कार्यकुशलता की बदौलत वह उसे संवार देते. वर्ष 1981 में घाटशिला कॉलेज की स्थिति काफी खराब थी. वहां के शिक्षकों ने काफी प्रयास किया, तब रांची विश्वविद्यालय ने डॉ शालिग्राम यादव का स्थानांतरण कर घाटशिला कॉलेज का प्राचार्य बनाया. इस कॉलेज में डॉ यादव 24 जुलाई 1981 से 2 अक्तूबर 1986 तक प्राचार्य रहे. इस दौरान कॉलेज को उम्मीद से बेहतर बना दिया. लेकिन उधर टाटा कॉलेज चाईबासा की भी हालत खराब थी. इसलिए विश्वविद्यालय पुन: स्थानांतरण करते हुए टाटा कॉलेज भेज दिया. इसका घाटशिला कॉलेज में विरोध हुआ और 10 दिनों तक शिक्षक व कर्मचारी हड़ताल पर रहे. कुलपति ने उन्हें समझाया कि यह भी विश्वविद्यालय का प्रीमियर कॉलेज है. इसकी बेहतरी के लिए डॉ शालिग्राम यादव को छोड़ कोई अन्य सक्षम नहीं है. तब हड़ताल टूटी.शिक्षा जगत का आखिरी बड़ा आदमी हमें छोड़ गया : प्रो मित्रेश्वरघाटशिला कॉलेज से सेवानिवृत्त प्रो मित्रेश्वर रुंधे स्वर में कहते हैं, अब कहने को कुछ नहीं रहा. शिक्षा जगत का आखिरी बड़ा आदमी हमें छोड़ गया. शिक्षा जगत का आदमी जितने सितारों की कामना करता है, वे सभी उनकी हथेली में थे. हाथों में आसमान व पांव जमीन पर मुस्तैदी से टिका और दिलों पर राज करनेवाला ऐसा अद्भुत व्यक्तित्व अब नहीं है. ऐसा व्यक्तित्व पूरे यूनिवर्सिटी सर्किल में नहीं है. घाटशिला कॉलेज खस्ताहाल था. अविभाजित रांची विश्वविद्यालय के समय कुलपति से काफी निवेदन कर हम उन्हें केएस कॉलेज से घाटशिला कॉलेज ले आये थे. डॉ शालिग्राम यादव ने कॉलेज को हमारी उम्मीद से अधिक बेहतर बना दिया.
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स्थानांतरण पर घाटशिला कॉलेज में 10 दिन थी हड़ताल
जमशेदपुर. जिस कॉलेज की हालत खस्ता हो गयी हो, वहां की कमान डॉ शालिग्राम यादव को सौंप दी जाती थी. फिर अपनी कार्यकुशलता की बदौलत वह उसे संवार देते. वर्ष 1981 में घाटशिला कॉलेज की स्थिति काफी खराब थी. वहां के शिक्षकों ने काफी प्रयास किया, तब रांची विश्वविद्यालय ने डॉ शालिग्राम यादव का स्थानांतरण […]
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