लाइफ रिपोर्टर @ जमशेदपुर दीपावली के मौके पर घरों में दीये जलाने की परंपरा है, लेकिन आधुनिकता के चकाचौंध और बाजार पर चाइनीज लाइट का कब्जा होने से मिट्टी के दीये बनाने वाले कुम्हार की रोजी-रोटी पर खतरा मंडराने लगा है. इनके पास अब पुश्तैनी काम छोड़ने के अलावा कोई रास्ता नहीं है. पुश्तैनी धंधा छोड़ने को मजबूरसोनारी निवासी वेणु प्रसाद ने बताया कि उनका परिवार कई पीढि़यों से मिट्टी का बरतन और दीया बनाता आ रहा है. एक जमाना था जब इस पेशे से उनका परिवार चलता था, लेकिन समय के साथ उनके चाक की गति धीमी पड़ती जा रही है. अब दीपावली के दौरान भी दिन भर में दो सौ दीये बेचना भी मुश्किल हो गया है. जबकि पहले एक दिन में हजारों दीये की बिक्री हो जाती थी. चाइनीज लाइटों के कारण ऐसा हुआ है. मिट्टी का काम करने वाले ज्यादातर परिवारों का यही हाल है. यही कारण है कि ये लोग अपना पुराना धंधा छोड़ने को मजबूर हैं. बॉक्स मिट्टी का दीया – 10 से 12 रुपया दर्जनचाइनीज लाइट – 30 से 70 रुपया 100 पीस
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दूसरों का घर रोशन करने वाले के घर में अंधेरा फोटो ऋषि 12
लाइफ रिपोर्टर @ जमशेदपुर दीपावली के मौके पर घरों में दीये जलाने की परंपरा है, लेकिन आधुनिकता के चकाचौंध और बाजार पर चाइनीज लाइट का कब्जा होने से मिट्टी के दीये बनाने वाले कुम्हार की रोजी-रोटी पर खतरा मंडराने लगा है. इनके पास अब पुश्तैनी काम छोड़ने के अलावा कोई रास्ता नहीं है. पुश्तैनी धंधा […]
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