जमशेदपुर : 17वें त्रिशूल उत्सव के दूसरे दिन शनिवार को भारत सेवाश्रम संघ सोनारी में आदिवासी संस्कृति सम्मेलन हुआ. मुख्य अतिथि राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि झारखंड वीरों की भूमि है. यहां बिरसा मुंडा, सिदो-कान्हू जैसे वीर सपूतों ने जन्म लिया. आदिवासियों की संस्कृति और इतिहास समृद्ध रहा है. वे प्रकृति प्रेमी हैं, जो इनके पर्व-त्योहार में दिखता है.
झारखंड की आबादी तीन करोड़ 25 लाख है, इनमें करीब एक करोड़ आदिवासी हैं. 32 प्रकार के आदिवासी हैं, जो सुदूर गांव व जंगलों में अभाव में जीते हैं. लेकिन उन्होंने अपनी संस्कृति कभी नहीं छोड़ी. वे सुबह से शाम तक काम करते हैं. सुबह उनके मुख पर जो खुशी रहती है, शाम में थक-हार जाने के बाद भी वही खुशी दिखायी देती है. उनके चेहरे पर हमेशा सच्चिदानंद का रूप दिखायी देता है.
ज्ञान का दस्तावेज तैयार हो : उन्होंने कहा कि अधिकांश आदिवासियों के पास अक्षर ज्ञान नहीं है, लेकिन कई मायने वे पढ़े-लिखे को मात देते हैं. आप यू-ट्यूब पर औषधि के जो नये-नये नुस्खे देखते हैं, यह ज्ञान आदिवासियों के पास पहले से है. किस पेड़ की जड़, पत्ती खाने से कौन से बीमारी ठीक हो जायेगी, यह जानकारी उनके पास है.
लेकिन अफसोस कि यह ज्ञान धीरे-धीरे लुप्त हो रहा है. इसका दस्तावेज तैयार करना बहुत जरूरी है. सरकार आदिवासी भाषा, संस्कृति को संरक्षित कर रही है. उन्होंने कहा कि संस्कृति को बचाने के लिए बाहर के लोग सहयोग दे सकते हैं, लेकिन आगे आपको ही आना होगा. उड़ान भरना होगा. खुद को कभी कमजोर मत समझिये. अपने गुणों को बाहर निकालिये और पहचान बनाइए. आदिवासी बच्चों को मिल रहा है गोल्ड मेडल: आज आदिवासी बच्चे शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं. कोल्हान विश्वविद्यालय में कई आदिवासी बच्चों को गोल्ड मेडल मिल रहा है. उन्होंने कहा कि इसमें भारत सेवाश्रम संघ का सराहनीय योगदान रहता है. संघ के सदस्य सुदूर गांवों, जंगलों में आदिवासियों के बीच सेवा का काम कर रहे हैं.
जिंदगी जीने की दिशा देती है शिक्षा
मौके पर राज्यपाल ने कहा कि कभी-कभी खासकर युवा दूसरे के बहकावे में आकर गलत रास्ते अख्तियार कर लेते हैं. इससे बचने के लिए शिक्षा बहुत जरूरी है. युवाओं को लगता है कि पढ़ने-लिखने के बाद भी नौकरी नहीं मिलती है. इसका मतलब यह नहीं है कि पढ़ाई छोड़ दें. शिक्षा जिंदगी जीने की दिशा देती है. इसलिए नौकरी मिले या नहीं मिले पढ़ाई करें. आदिवासी बेटा-बेटी में भेदभाव नहीं करता. यहां दहेज प्रथा नहीं है. उन्होंने कहा कि वह आदिवासी हैं.
झांकियों के साथ निकली शोभायात्रा
इससे पहले सुबह प्रणव चिल्ड्रेन वर्ल्ड, हिंदी मीडियम स्कूल व आवासीय विद्यालय के विद्यार्थियों ने शोभा यात्रा निकाली. इसमें कई रथ व झांकी शामिल थी. सबसे आगे रथ पर स्वामी प्रणवानंद की बड़ी तस्वीर थी. पीछे-पीछे बैनर, झंडे लेकर बच्चे चल रहे थे. देवेंद्रनाथ सिंह ने हरी झंडी दिखाकर इसे रवाना किया. इसका संचालन स्वामी अंबिकानंद, स्वामी देव्रतानंद और स्वामी सेवात्मानंद ने किया. इसमें स्कूलों के शिक्षक भी शामिल हुए.