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पांच माह से अध्ययन कर रहे फ्रांस व ब्राजील के दो विद्यार्थी, बोले- बहुत टफ है जमशेदपुर में बच्चों की पढ़ाई
जमशेदपुर : ‘ओ माइ गॉड! जमशेदपुर के बच्चे कितना ज्यादा पढ़ाई करते हैं. स्कूल और फिर ट्यूशन भी.’ यह प्रतिक्रिया फ्रांस और ब्राजील से आये दो विद्यार्थियों की है जो पिछले पांच माह से जमशेदपुर में रहकर यहां के स्कूलों और उनकी शिक्षा व्यवस्था का अध्ययन कर रहे हैं. दोनों विदेशी बच्चे इस बात से […]
जमशेदपुर : ‘ओ माइ गॉड! जमशेदपुर के बच्चे कितना ज्यादा पढ़ाई करते हैं. स्कूल और फिर ट्यूशन भी.’ यह प्रतिक्रिया फ्रांस और ब्राजील से आये दो विद्यार्थियों की है जो पिछले पांच माह से जमशेदपुर में रहकर यहां के स्कूलों और उनकी शिक्षा व्यवस्था का अध्ययन कर रहे हैं. दोनों विदेशी बच्चे इस बात से चकित हैं कि यहां सरकारी और प्राइवेट दोनों तरह के स्कूल हैं और दोनों में पढ़ाई का स्तर भी भिन्न है. उनका कहना है कि उनके यहां ऐसा बिल्कुल नहीं है. ब्राजील की 11 वीं की छात्रा लौरा मारा और फ्रांस के 11वीं के छात्र हेक्टर तुरकावका जमशेदपुर के दो स्कूलों में अलग-अलग पढ़ाई कर रहे हैं.
स्टूडेंट एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत रोटरी क्लब के माध्यम से लौरा लोयोला स्कूल और हेक्टर डीबीएमएस कदमा हाई स्कूल में अध्ययनरत हैं. करीब पांच माह से ये बच्चे यहां के अन्य बच्चों के साथ पढ़ाई कर रहे हैं. वे ऑटो से स्कूल जाते हैं और फिर उसी से आते भी हैं.
दोनों की देखरेख रोटरी क्लब के सदस्य ही करते हैं. ये बच्चे क्लब के सदस्यों के घरों में एक-एक माह रोटेशन के हिसाब से रहते हैं और भारतीय भोजन ही करते हैं. दोनों बच्चों से प्रभात खबर ने विशेष मुलाकात कर भारत, ब्राजील और फ्रांस की शिक्षा व्यवस्था में अंतर जानने की कोशिश की.
हमारे यहां ट्यूशन की नौबत नहीं आती : हेक्टर
कदमा डीबीएमएस हाइ स्कूल पढ़ रहे फ्रांस के हेक्टर तुरकावका का कहना है कि यहां पर सुबह दस बजे से लेकर शाम पांच बजे तक स्कूल होता है. इस बीच दो बार रिसेस का दो घंटे का ब्रेक होता है. हर क्लास में 15 मिनट का ब्रेक होता है. इसके बाद वे लोग घर पर रहते हैं और रात के वक्त सिर्फ एक रिवीजन कर सो जाते हैं. जबकि, वहां पर (फ्रांस में) तो सभी लोग सरकारी स्कूल में ही पढ़ते हैं. उन्होंने कहा कि यहां पर निजी और सरकारी स्कूलों में जमीन-आसमान का अंतर है जबकि एजुकेशन की बराबरी होनी चाहिए.
हेक्टर ने बताया कि यहां उन्हें सबसे ज्यादा यहां ट्यूशन ने चौंकाया. उन्होंने कहा कि यहां का हर बच्चा ट्यूशन पढ़ता है, वह भी एक से अधिक. उन्होंने कहा, ‘मैं यह नहीं कहता कि यहां की स्कूली पढ़ाई ठीक नहीं है, लेकिन बच्चों को बेहतर तरीके से अगर क्लासरूम में ही समझा दिया जाये तो ट्यूशन की जरूरत ही क्या है.’ हेक्टर ने यह भी कहा कि बच्चे यहां लिखते काफी ज्यादा हैं. उन्हें क्लासरूम में बेहतर तरीके से समझा दिया जाये तो लिखने में समय जाया नहीं होगा और बच्चे ज्यादा समझ पायेंगे. हेक्टर ने बताया कि उनके यहां समझाने पर अधिक और लिखने पर कम जोर दिया जाता है, क्योंकि किताब तो पहले से ही होती है. अगर बच्चे इतना लिखेंगे तो पढ़ेंगे या समझेंगे कैसे? समझ नहीं पाते हैं बच्चे जिस कारण सारे लोग ट्यूशन पर जोर देते हैं. हेक्टर सितंबर में शहर आये थे और जुलाई में अपने देश लौटेंगे.
नौकरी में महिलायें कम, स्कूलों में पढ़ाई बेहतर : मारा
ब्राजील की 11वीं की छात्रा लौरा मारा ने कहा कि शिक्षा की बराबरी का हक सबको होना चाहिए लेकिन यहां निजी व सरकारी स्कूलों में काफी अंतर है. महिलाओं को यहां काफी पीछे रखा गया है. उन्होंने कहा कि ब्राजील में अधिकांश महिलाएं काम करती हैं. पुरुष भी काम करते हैं. जहां तक पढ़ाई की बात है तो यहां के स्कूलों में पढ़ाई काफी बेहतर है, लेकिन बच्चों के पास समय ही नहीं है कि वे लोग कुछ और काम कर सकें. बच्चों की पढ़ाई को उनके लायक बनाया जाना चाहिए ताकि वे लोग पढ़ाई भी कर सकें और खेल या अन्य मनोरंजन के काम भी कर सकें. उन्होंने शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने की जरूरत बतायी. मारा के मुताबिक ब्राजील में कॉलेज की व्यवस्था बेहतर है.
ब्राजील में बच्चों पर ट्यूशन का बोझ नहीं होता
मारा का कहना है कि भारत के बच्चे उन देशों में ज्यादा जा पाते हैं जबकि भारत में उनका दाखिला नहीं हो पाता है, इसकी वजह यह है कि यहां की शिक्षण व्यवस्था बहुत टफ है, इसको आसान बनाया जाना चाहिए. उन्होंने बताया कि यहां के बच्चों को और समय मिलना चाहिए. ब्राजील में भी सुबह सात बजे से दोपहर दो बजे तक की पढ़ाई होती है. लेकिन उसके बाद बच्चों पर ट्यूशन का बोझ नहीं होता है. उन्होंने कहा, ‘ उसके बाद सिर्फ आप रिवीजन कीजिये और फिर जो अतिरिक्त काम भी करते रहिये. इससे वहां बच्चे तनावमुक्त रहते हैं. वे बेहतर कर पाते हैं.’
आवभगत लाजवाब, मगर खिलाते ज्यादा हैं
दोनों बच्चों ने बताया कि भारत की आवभगत लाजवाब है. लेकिन लोग यहां ज्यादा खाते हैं, जबकि कई लोग यहां नहीं भी खाकर जीते हैं. खिलाते बहुत ज्यादा हैं और इतना खाते हैं कि हमको मना करना पड़ता है.
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