Makar Sankranti 2021, Jharkhand News, Gumla News, गुमला (जगरनाथ/जॉली) : झारखंड के गुमला जिला के ग्रामीण परिवेश में पूस मेला या पूस जतरा को पर्व के रूप में मनाने की परंपरा है. यह परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है. इस परंपरा को आज भी लोग जीवित रखे हुए हैं. धार्मिक विश्वास, पारंपरिक मान्यता, नये वर्ष के आगमन, अच्छे फसल की प्राप्ति और खुशहाली के प्रतीक के रूप में पूस मेला का आयोजन किया जाता है.
इसी परंपरा के तहत पालकोट प्रखंड के गांवों में इसे भव्य रूप से मनाया जाता है. अलग-अलग गांव में अलग-अलग तिथि पर मेला या जतरा लगता है. हालांकि, पालकोट के इलाके में पूस जतरा का शुभारंभ नववर्ष से शुरू होता है. पूस जतरा का आयोजन प्रखंड के दमकारा गांव से नागवंशी राजा लाल गोविंद नाथ शाहदेव द्वारा पूजन के बाद मेला का शुभारंभ किया जाता है. राजा गोविंद नाथ शाहदेव द्वारा अपनी प्रजा की सुख- शांति के लिए भगवान इंद्र की पूजा करते हैं. इसके बाद प्रखंड के पोजेंगा, बंगरु, पालकोट, टेंगरिया, बागेसेरा गांव में एक-एक दिन मेला लगता है. इसके बाद यह मेला बसिया प्रखंड के कुम्हारी गांव चला जाता है.
टेंगरिया नवाटोली गांव के बंसत साहू ने बताया कि पुस जतरा हमारे पूर्वजों द्वारा सदियों से लगाया जा रहा है. पूस जतरा या मेला में परिवार के साथ मेहमानों के साथ मिलना- जुलना होता है. वहीं, लड़का-लड़कियों की नयी शादी- विवाह का मिलजुल कर बात- विचार किया जाता है, ताकि खरमास खत्म होते ही शादी- विवाह की रश्म शुरू की जा सके.
नवाटोली गांव के डोयंगा खड़िया ने बताया कि पूस जतरा में लोगों से मिलने का अवसर बनता है. बागेसेरा गांव के मनी खड़िया ने बताया कि पूस जतरा में सरना झंडा मेला डांड में फहराते हैं. पूर्वजों का आदिकाल से चले आ रहे सभ्यता व संस्कृति को बचाने के लिए मेले का आयोजन किया जाता है. साथ ही हमारे समाज के लोग सुख- शांति से रहे. इसके लिए भगवान से प्रार्थना किया जाता है.
नाथपुर पंचायत स्थित जुराटोली गांव के राजेश साहू ने बताया कि पूस हमारे आदिवासी- मूलवासी अपने सनातन धर्म को भूलते जा रहे हैं. आज के आधुनिक युग में प्रवेश कर पश्चिमी सभ्यता को अपनाने की कोशिश कर रहे हैं. आधुनिकता की जिंदगी जी रहे हैं. इसलिए गांव- देहात में लोग अपनी सभ्यता को न भूले. इसलिए पूस जतरा का आयोजन किया जाता.
इस कारण पूस पर्व मनाया जाता है
यह पर्व गुमला की संस्कृति के पोषक स्वरूप है. जिसमें पुस गीत, नृत्य, वाद्य यंत्रों की मधुर संगीत है. इसमें एक विशेष प्रकार की रस्म है. एक विशेष प्रकार की मान्यता है. इसमें नये वस्त्र पहने का विशेष महत्व है. परिवार के सभी लोगों के लिए नये कपड़े लेने का रिवाज है. यह पर्व धार्मिक विश्वास, पारंपरिक मान्यता, नये वर्ष के आगमन, अच्छे फसल की प्राप्ति और खुशहाली के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है.