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Lockdown : अोड़िशा से 150 किमी की दूरी तय कर साइकिल से गुमला पहुंचे 18 मजदूर, अपने घर जाने को हैं बेताब

मंगलवार को सभी 18 मजदूर 150 किमी से अधिक दूरी तय कर साइकिल से गुमला पहुंचे. ये मजदूर ओड़िशा राज्य में एक कंपनी में काम करते थे. लॉकडाउन में कंपनी बंद हो गयी. मजदूरों ने जो पैसा कमाया वह खाने पीने में खत्म हो गया. जब मजदूरों ने कंपनी से खाना व आश्रय मांगा, तो कंपनी ने मदद करने से इंकार कर दिया. इसके बाद ये मजदूर एक मई मजदूर दिवस पर ओड़िशा से साइकिल से अपने घर जाने के लिए निकल पड़े.

दुर्जय पासवान

गुमला : बस, कुछ दूरी पर है मेरी मंजिल. मैं चला, मैं चला. न थकान, न भूख का अहसास. अनजान राहों पर निकल पड़ा. बस, मुझे पहुंचना है मेरा घर. कुछ दूरी पर मेरी है मंजिल. ये शब्द इन 18 मजदूरों पर सटीक बैठता है, जो साइकिल से अपने गांव- घर पलामू व गढ़वा जिला के लिए निकल पड़े हैं. ये मजदूर ओड़िशा राज्य में एक कंपनी में काम करते थे. लॉकडाउन में कंपनी बंद हो गयी. मजदूरों ने जो पैसा कमाया वह खाने पीने में खत्म हो गया. जब मजदूरों ने कंपनी से खाना व आश्रय मांगा, तो कंपनी ने मदद करने से इंकार कर दिया. इसके बाद ये मजदूर एक मई मजदूर दिवस पर ओड़िशा से साइकिल से अपने घर जाने के लिए निकल पड़े. मंगलवार को सभी 18 मजदूर 150 किमी से अधिक दूरी तय कर साइकिल से गुमला पहुंचे.

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गुमला पहुंचने पर समाजसेवी सिसई रोड बाजारटाड़ मोड़ निवासी मनीष गुप्ता ने उन्हें देखा. इन मजदूरों को रोक कर उन्होंने हालचाल जाना. मजदूरों ने अपनी आपबीती सुनायी. श्री गुप्ता की पहल पर सभी को भोजन कराया गया. श्री गुप्ता ने कहा कि आप सभी गुमला में रूक जाइये. स्वास्थ्य जांच करा लीजिये. इसके बाद प्रशासन से बात कर सभी को बस से घर भेजने की व्यवस्था की जायेगी. लेकिन, मजदूर नहीं माने.

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मजदूरों ने कहा कि ओड़िशा प्रशासन की मदद हमने देख ली है. वो लोग सिर्फ घुमाते रहते हैं. किसी ने मदद नहीं किया. इसी तरह कहीं गुमला प्रशासन भी हमें पकड़कर होम क्वारेंटाइन में डाल देगा, तो हमें फिर गुमला में ही रुकना पड़ जायेगा. मजदूरों ने खाने- पीने के बाद साइकिल से पलामू व गढ़वा जिले के लिए निकल गये.

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मजदूर उदित रजक ने कहा कि हमारी मेहनत से कंपनी चल रही थी. मालिक को मुनाफा भी हुआ, लेकिन जब हम संकट में आये, तो कंपनी ने मदद करने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि अब हम नहीं रूकेंगे. अपने ही गांव में जाकर रूकेंगे. अब गांव-घर में काम करेंगे, लेकिन पलायन नहीं करेंगे.

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