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सरेंडर कराने की चल रही थी योजना
दुर्जय पासवान गुमला : भाकपा माओवादी के 25 लाख के इनामी जोनल कमांडर नकुल यादव व 10 लाख के इनामी मदन यादव के सरेंडर की योजना एक सप्ताह से चल रही थी. लेकिन बुधवार को अचानक नकुल व मदन ने अपने दस्ते के कुछ साथियों के साथ गुप्त रूप से सरेंडर कर सभी को चौका […]
दुर्जय पासवान
गुमला : भाकपा माओवादी के 25 लाख के इनामी जोनल कमांडर नकुल यादव व 10 लाख के इनामी मदन यादव के सरेंडर की योजना एक सप्ताह से चल रही थी. लेकिन बुधवार को अचानक नकुल व मदन ने अपने दस्ते के कुछ साथियों के साथ गुप्त रूप से सरेंडर कर सभी को चौका दिया.
पुलिस सूत्रों की माने, तो संगठन को भ्रम में रख कर दोनों ने सरेंडर किया है. बताया जा रहा है कि ये लोग एक सप्ताह से दस्ता के अलग हट कर चल रहे थे. बुधवार को नकुल व मदन अपने कुछ साथियों के साथ रेहलदाग गांव पहुंचे. मोरशेरवा जंगल में अपने हथियार गाड़ कर छिपा दिया. इसके बाद मदन अपने कुछ रिश्तेदारों से गांव में भेंट की. सूचना है, उस क्षेत्र में सड़क व पुल बनवा रहे कुछ ठेकेदार लेवी की रकम भी पहुंचाये. ठेकेदारों द्वारा लेवी की रकम देकर जाने के बाद दिन के करीब 10 बजे बिना नंबर की दो बोलेरो गाड़ी गांव में घुसी. गाड़ी सीधे गांव के मंदिर के समीप रूकी, जहां पहले से नकुल, मदन व अन्य नक्सली बैठे हुए थे. इसके बाद ये लोग गाड़ी में बैठ कर गांव से निकल गये.
सूचना के मुताबिक ये लोग सीधे रांची गये और वहां एक पुलिस अधिकारी के समक्ष सरेंडर किया. बुधवार की रात को नकुल ने रेहलदाग व आसपास के गांवों में कहां-कहां हथियार छिपा कर रखा हुआ है, इसकी जानकारी पुलिस को दी. इसके बाद गुरुवार को नक्सली चंदरू व एक अन्य कमांडर को लेकर पुलिस की एक टीम पुन: रेहलदाग गांव आयी और उनकी निशानदेही पर हथियार बरामद की है. 100 की संख्या में गांव में घुसी पुलिस ने देर शाम तक छापामारी अभियान चलाया. इधर, नकुल व मदन के सरेंडर के बाद गांव के लोग कुछ भी बताने से इनकार कर रहे हैं. कुछ ग्रामीणों ने दबी जुबान में बताया कि दो गाड़ी में नक्सली बैठ कर गांव से चले गये. गांव में अब डर है या नहीं, इन सवालों पर ग्रामीण कुछ नहीं बोले. सभी लोग अन्य दिनों की तरह अपने कामों में व्यस्त दिखे.
रवींद्र व बुद्धेश्वर पर नजर : नकुल व मदन के सरेंडर करने के बाद अब पुलिस की नजर लोहरदगा क्षेत्र के जोनल कमांडर रवींद्र गंझू व गुमला के चैनपुर क्षेत्र के सबजोनल कमांडर बुद्धेश्वर उरांव पर है. पुलिस इन दोनों को भी सरेंडर के लिए दबाव बनाने की तैयारी में है. अगर सरेंडर नहीं करते हैं, तो पुलिस इन दोनों के खिलाफ बड़ा ऑपरेशन लांच कर मारने की तैयारी में है.
माओवादी को बहुत बड़ा झटका: गुमला में भाकपा माओवादी पहले से बैकफुट में थे. लगातार नक्सलियों के मारे जाने व कई नक्सलियों के पकड़े जाने के बाद माओवादी टूटते जा रहे थे. इधर, अचानक नकुल व मदन के सरेंडर करने के बाद बिशुनपुर, लातेहार व लोहरदगा के सीमावर्ती क्षेत्र में नक्सली संगठन को बड़ा झटका लगा है, क्योंकि इन क्षेत्रों में नकुल व मदन संगठन को मजबूत बनाये हुए थे.
बिशुनपुर से नक्सलियों ने प्रवेश किया था : गुमला जिले में वर्ष 1993 में नक्सलियों ने प्रवेश किया. उसी समय से नक्सली घटनाओं के कारण गुमला सुर्खियों में आया और तब से अब तक नक्सली घटनाएं रूकने का नाम नहीं ले रही है.
नक्सलियों का आगमन सर्वप्रथम बिशुनपुर थाना क्षेत्र के छिपादोहर गांव से हुआ था. यहां नक्सलियों ने छिपादोहर गांव के पूर्व मुखिया के घर पर धावा बोल कर बंदूक लूटा था. जिले के बिशुनपुर, घाघरा, डुमरी, चैनपुर, रायडीह, गुमला व जारी थाना क्षेत्र सबसे ज्यादा प्रभावित हैं. अगर वर्ष 1993 से देखा जाये, तो नक्सलियों ने इस क्षेत्र में कई लोगों को मौत के घाट उतारा है. कई बड़ी घटनाओं को अंजाम दे चुके हैं.
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