गुमला : हथियार छोड़ तीरंदाज बनी संजीता कुमारी को माओवादियों ने मौत की नींद सुला दी. संजीता माओवादी संगठन में प्लाटून कमांडर थी. दो साल पहले माओवादी संगठन में गयी थी. अरविंद व नकुल की नजदीकी थी. चार महीना संगठन में रही. लेकिन संगठन में शोषण होने के बाद वह भाग गयी. इसके बाद वह छिप कर गुमला शहर में रह रही थी. गुमला के एक शिक्षक ने उसकी गरीबी को देखते हुए स्कूल में नि:शुल्क दाखिला करा दिया.
वह इंटर में पढ़ रही थी. इसके अलावा तीरंदाजी का प्रशिक्षण भी ले रही थी. जीविका चलाने के लिए सिलाई-कढ़ाई का काम करती थी. लेकिन माओवादी कैंप से भागने की सजा उसे मिली. बीते मंगलवार को चैनपुर प्रखंड के सिविल गांव में संजीता की माओवादियों ने हत्या कर दी थी. वह जीउतिया पर्व मनाने अपने गांव गयी थी. जैसे ही माओवादियों की इसकी भनक हुई, उसकी हत्या कर दी गयी. इस मामले में पांच माओवादियों के खिलाफ थाने में केस हुआ है.
राज्य स्तर के लिए चयन हुआ थातीरंदाजी एसोसिएशन के सचिव पी कुमार ने बताया कि संजीता तीरंदाजी में माहिर थी. जिला स्तर की प्रतियोगिता में वह भाग ले चुकी है. रांची में होनेवाले राज्य स्तरीय प्रतियोगिता के लिए भी उसका चयन हुआ था. लेकिन गांव में उसकी हत्या हो गयी.बेटी की मौत से सपने टूट गये : पितापिता फंदु मुंडा ने बताया कि संजीता से परिवार के लोगों को काफी उम्मीद थी. माओवादी कैंप छोड़ वह पढ़ाई कर रही थी. खेल में भी अच्छी थी.
उसका नाम अखबारों में छप रहा था. लेकिन जीउतिया पर्व में जब वह घर आयी, तो माओवादियों ने घर से निकालकर उसकी हत्या कर दी. कहा कि संजीता की मौत से सभी सपने टूट गये.डर से गांववालों ने सहयोग नहीं कियासंजीता की जब हत्या हुई तो गांव के लोग नक्सली डर से सहयोग नहीं किये. शव को गांव ले जाने तक नहीं दिया. पुलिस भी दो दिन बाद शव को कब्जे में कर पोस्टमार्टम कराने के बाद परिजनों को सौंपा.
अंतिम संस्कार में भी कुछ ही लोग शामिल हुए. गांव से बाहर बनाये गये घर में सारा क्रियाक्रम हुआ.पुलिस व माओवादियों ने कही अलग-अलग बातसंजीता की हत्या के बाद माओवादी प्रवक्ता दिनबंधु ने उसे पुलिस मुखबिर बताया था. वहीं एसपी व डीसी से संजीता के संपर्क में रहने की बात कही थी. वहीं दूसरी ओर एसपी भीमसेन टुटी ने इन सब बातों से इंकार किये हैं. उनके अनुसार संजीता को वे नहीं जानते हैं. मुखबिर भी नहीं थी.