गुमला: दो अक्तूबर बीत गया. उस समय लोगों ने स्वच्छता की कसम खायी थी. कसम खाने वालों में बड़े नेता व प्रशासन भी थे. दो अक्तूबर से पहले से भी स्वच्छता की कसम खायी जा रही थी. कसम तो खायी, लेकिन स्वच्छता के महत्व को कोई समझ नहीं सके. गुमला शहर का हाल-ए-सूरत किसी से छिपा नहीं है. चारों ओर कूड़ा कचरा है. मुख्य सड़कों के अलावा गली-कूचों में भी कचरा का ढेर लगा है.
अब सवाल यह है, लोग कचरा फेंके कहां? अगर घर में कचरा जमा होता है, तो शहर के मुख्य सड़क के किनारे ही फेकेंगे. कोई दूसरा उपाय है भी नहीं. यहां तो जिम्मेवार विभाग नगर परिषद है. यहां के जनप्रतिनिधि व प्रशासन है. इनकी जिम्मेवारी बनती है. कचरा को शहर से कहीं दूर ले जाकर फेंकने की व्यवस्था करें. विभाग व प्रशासन की सुस्ती के कारण कई स्थानों से कचरा उठ नहीं रहा है, जिससे इस दीपावली पर्व में लोग गंदगी के बीच पर्व मनाने को मजबूर हो रहे हैं.
गुमला का हाल-ए-सूरत देखें, तो हर घर के सामने कूड़ा है, लेकिन साफ करनेवाला कोई नहीं. दीपावली के समय ऐसी घटिया व्यवस्था शायद ही पहले कभी दिखी गयी है. गुमला में सफाई की चौपट व्यवस्था. ठीक है जनता जहां-तहां कूड़ा कचरा फेंक देती है, लेकिन नगर परिषद इसका रास्ता तो निकालेगी. लेकिन गुमला में ऐसा नहीं है. नगर परिषद कुंभकरण की नींद सोये हुए है. ऐसे नगर परिषद के अधिकारी कहते हैं, हम पूरी ईमानदारी से काम कर रहे हैं. शहर की सफाई हो रही है. सफाई में मजदूर लगे हैं. कार्यालय में बैठ कर सफाई की बात करना अच्छी लगती है, कभी फील्ड में जाकर देखें, कैसे लोग कचरों के बीच रह रहे हैं.
कई इलाकों में तो चलना दूभर है. हां, वीआइपी इलाके में सफाई की बात हो तो पूरा नगर परिषद सफाई कार्य में जुट जाता है, लेकिन जहां जनता रहती है, वहां सफाई करने बोलिये, तो सफाई नहीं होती. गुमला शहर के कई मुहल्ले हैं, जहां महीनों से सफाई नहीं हुई है. दीपावली के बाद छठ पर्व है. तालाबों का पानी गंदा है. अभी तक ब्लीचिंग पाउडर नहीं डाला गया है. जब छठ महापर्व को एक दिन बचेगा, तब प्रशासन को तालाब में ब्लीचिंग पाउडर डालने की सुध होगी.