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अस्पताल रहता, तो नहीं मरती झालो

गुमला: गरीबी, ऊपर से स्वास्थ्य सुविधा का अभाव. इन्हीं दो कारणों से मुरगू करंजटोली गांव की झालो उराइन की मौत हो गयी. अगर समय पर स्वास्थ्य सुविधा मिलता, तो आज झालो मरती नहीं. जिस गांव में घटना घटी है, वहां से पांच किमी की दूरी पर नागफेनी गांव में एक करोड़ रुपये की लागत से […]

गुमला: गरीबी, ऊपर से स्वास्थ्य सुविधा का अभाव. इन्हीं दो कारणों से मुरगू करंजटोली गांव की झालो उराइन की मौत हो गयी. अगर समय पर स्वास्थ्य सुविधा मिलता, तो आज झालो मरती नहीं. जिस गांव में घटना घटी है, वहां से पांच किमी की दूरी पर नागफेनी गांव में एक करोड़ रुपये की लागत से ग्रामीण अस्पताल बना है.

वर्ष 2011 में भवन बना है, लेकिन यहां न तो डॉक्टर हैं और न ही कोई स्वास्थ्य सुविधा. एक करोड़ रुपये का भवन भी बेकार हो गया. सरकार ने जनता के पैसे से अस्पताल बनवाया, लेकिन इसका उपयोग नहीं कर पा रही है. ज्ञात हो कि सिसई प्रखंड के नागफेनी गांव में 50 बेड का ग्रामीण अस्पताल बना है. डॉक्टर व स्वास्थ्य कर्मियों के रहने के लिए क्वार्टर भी बन कर तैयार है. एक करोड़ एक लाख 77 हजार रुपये खर्च हुआ, लेकिन अभी तक यहां अस्पताल शुरू नहीं हुआ. नया भवन अब टूट कर गिर रहा है. राज्य के पूर्व सीएम अर्जुन मुंडा ने इसका उदघाटन किया था. यह कल्याण विभाग से बना है, लेकिन विभाग द्वारा इसे शुरू कराने की कोई पहल नहीं की गयी. नतीजा छह साल से अस्पताल के शुरू होने का इंतजार लोग कर रहे हैं. अगर यह अस्पताल शुरू हो जाता है, तो 50 हजार आबादी को स्वास्थ्य सुविधा का लाभ मिलेगा.
अस्पताल रहता, तो कई गांवों को लाभ मिलेगा : अध्यक्ष
जिला परिषद की अध्यक्ष किरण माला बाड़ा ने कहा कि नागफेनी अस्पताल शुरू हो जाता है, तो रेड़वा, मुरगू, पंडरिया, बरगांव व सिलाफारी पंचायत के 20 से अधिक गांवों को लाभ मिलेगा. इसके अलावा एनएच-43 के किनारे होने के कारण भी यहां से गुजरने वाले लोग आपातकाल में स्वास्थ्य सुविधा का लाभ ले सकते हैं. अभी इस क्षेत्र के लोगों को इलाज कराने के लिए गुमला या सिसई अस्पताल 15 किमी की दूरी तय कर जाना पड़ता है. उन्होंने कहा कि रेड़वा, मुरगू, पंडरिया, बरगांव व सिलाफारी इलाके में स्वास्थ्य सुविधा बहाल करने की मांग को लेकर सरकार को पत्र लिखेंगे.
प्रशासन सहिया को दुरुस्त करें : मिशिर कुजूर
भाजपा युवा माेर्चा के जिलाध्यक्ष मिशिर कुजूर ने कहा कि करंजटोली गांव के शनिचरवा उरांव की पत्नी झालो उराइन की इलाज के अभाव में मौत हुई है. अगर गांव में स्वास्थ्य सुविधा या सहिया रहती, तो झालो की मौत नहीं होती. यह गंभीर मामला है. गुमला प्रशासन को देखना चाहिए कि किस गांव में सहिया नहीं है, क्योंकि गुमला जिला पहाड़ व जंगलों के बीच बसा है. कई गांव दुर्गम है, जहां स्वास्थ्य सुविधा नहीं है. अगर प्रशिक्षित सहिया भी गांव में रहती है, तो कुछ हद तक इलाज की व्यवस्था हो सकती है.
दो बच्चों की मौत हो चुकी है
हाल में ही इलाज के अभाव में गुमला व सिसई अस्पताल में दो बच्चों की मौत हो चुकी है. सिसई में वज्रपात से झुलसे बच्चे का समय पर इलाज नहीं होने से मौत हो गयी थी. वहीं गुमला अस्पताल में दवा नहीं मिलने से एक बच्चे की मौत हो चुकी है. एंबुलेंस भी नहीं मिली थी. गुमला में बच्चे की मौत पर मुख्यमंत्री रघुवर दास ने खुद कार्रवाई की है. इसके बावजूद गुमला में स्वास्थ्य सुविधा नहीं सुधर रही है.

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