जमुआ : शिक्षा अधिकार अधिनियम के तहत छह से 14 वर्ष के बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा उपलब्ध कराना है. इसकी जिम्मेवारी शिक्षा विभाग के साथ-साथ अभिभावकों की भी है. परंतु पदाधिकारियों के ढुलमुल रवैये व गरीबी के कारण आज भी कई बच्चे शिक्षा से वंचित है. बच्चों को शिक्षा दिलाने के नाम पर सरकार लाखों तो खर्च कर रही है.
लेकिन धरातल पर कुछ काम नहीं दिख रहा है. बच्चों से काम कराना कानून अपराध है. बावजूद आज भी कई बच्चे जमुआ बाजार समेत आसपास के इलाकों में कचरा चुनते, होटल-गैराजों में काम करते आसानी से देखे जा सकते है.
जमुआ बाजार में कचरा चुनने को विवश बच्चों में से राजू तुरी, विनोद तुरी, मोहन तुरी आदि ने बताया कि सरकारी स्कूलों में शिक्षक पढ़ाई पर कम एमडीएम व भवन निर्माण पर ज्यादा ध्यान देते हैं. जबकि निजी विद्यालयों में स्कूल फीस दो सौ से पांच सौ है. ऐसे में गरीबी के बीच शिक्षा पाना हमारे लिए टेढ़ी खीर के समान है.
एनजीओ भी है मौन : जन सरोकार से जुड़ कर सेवा करने वाली स्वयं सेवी संस्थाएं भी बच्चों के प्रति गंभीर नहीं है. संस्था के प्रतिनिधि प्रतिदिन ऐसे बच्चों को देखते हैं पर किसी ने आज तक कोई पहल नहीं की.