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दर-दर की ठोकरें खा रहे 51 अनौपचारिक पर्यवेक्षक

गिरिडीह : वर्ष 1984 से 1988 के बीच गिरिडीह जिले में बहाल हुए 51 पर्यवेक्षक सेवा समायोजन की मांग को ले दर-दर की ठोकर खाने को विवश है. इनमें से 13 पर्यवेक्षकों की आयु सीमा भी खत्म हो चुकी है. शेष पर्यवेक्षकों की आयु सीमा भी खत्म होने के कगार पर है. इसके बाद भी […]

गिरिडीह : वर्ष 1984 से 1988 के बीच गिरिडीह जिले में बहाल हुए 51 पर्यवेक्षक सेवा समायोजन की मांग को ले दर-दर की ठोकर खाने को विवश है. इनमें से 13 पर्यवेक्षकों की आयु सीमा भी खत्म हो चुकी है. शेष पर्यवेक्षकों की आयु सीमा भी खत्म होने के कगार पर है. इसके बाद भी ऐसे अनौपचारिक शिक्षा पर्यवेक्षकों का सेवा समायोजन विभिन्न विभागों में तृतीय श्रेणी के रिक्त पड़े पदों पर नहीं हो सका है. हालांकि पूरे झारखंड में ऐसे पर्यवेक्षकों की कुल संख्या 676 है और इनमें से 181 पर्यवेक्षकों की आयु सीमा खत्म हो चुकी है.

बिहार के पूर्व शिक्षा आयुक्त ने भेज दी थी सूची: बिहार सरकार के तत्कालीन शिक्षा आयुक्त नरेंद्रपाल सिंह ने अपने डीओ संख्या 96 दिनांक 23.12.2000 के माध्यम से झारखंड राज्य के विभिन्न जिलों में कार्यरत 676 छंटनीग्रस्त अनौपचारिक शिक्षा पर्यवेक्षकों की सूची राज्य के प्रथम मुख्य सचिव विजय शंकर दूबे को भेज दी थी और इन्हें विभिन्न पद पर समायोजित करने को भी कहा गया था. हालांकि आज तक ऐसे पर्यवेक्षकों की सेवा समायोजित नहीं हो सकी है.

1994 में पर्यवेक्षकों की हुई थी छंटनी: अनौपचारिक शिक्षा कार्यक्रम बंद किये जाने के बाद वर्ष 1994 में पर्यवेक्षकों की छंटनी कर दी गयी थी. इस कारण जिले के 64 अनौपचारिक पर्यवेक्षक बेरोजगार हो गये. इसके बाद पूर्ववर्ती बिहार में पर्यवेक्षकों ने पटना उच्च न्यायालय में सेवा समायोजित करने की गुहार लगायी. पटना उच्च न्यायालय ने वर्ष 2010 में ही अपने फैसले में ऐसे पर्यवेक्षकों को समायोजित करने का निर्देश दिया था. इसी के आधार पर पूर्ववती बिहार सरकार ने वर्ष 2010 में ही बिहार के अधीन पड़ने वाले ऐसे पर्यवेक्षकों को विभिन्न पदों पर बहाल कर दिया.

बिहार के पर्यवेक्षकों को कर लिया गया समायोजित

बता दें कि वर्ष 2000 में बिहार के 1761 पर्यवेक्षकों को विभिन्न विभाग के तृतीय श्रेणी के पद पर समायोजित कर लिया गया है. उनका यह समायोजन पटना उच्च न्यायालय द्वारा दिये गये आदेश के आधार पर किया गया है.

बिहार सरकार के मानव संसाधन विकास विभाग के संकल्प संख्या 27 दिनांक 12.01.2010 के आधार पर बिहार राज्य के विभिन्न जिलों में कार्यरत अनौपचारिक शिक्षा पर्यवेक्षकों को विभिन्न विभागों के तृतीय श्रेणी पद पर समायोजित कर लिया गया है. मानव संसाधन विकास विभाग के प्रधान सचिव अंजनी कुमार सिंह द्वारा दिये गये निर्देश के आलोक में वहां के छंटनीग्रस्त पर्यवेक्षक बिहार सरकार के अधीन तृतीय श्रेणी के पद पर वर्ष 2010 से ही कार्यरत हैं, लेकिन गिरिडीह जिले में कार्यरत पर्यवेक्षकों की सेवा अब तक समायोजित नहीं हो सकी है.

सेवा समायोजन की बाट जोह रहे हैं पर्यवेक्षक : भक्त

झारखंड राज्य अनौपचारिक शिक्षा पर्यवेक्षक संघ के राज्य महासचिव अरविंद कुमार भक्त ने कहा कि छंटनीग्रस्त अनौपचारिक पर्यवेक्षक बिहार की तर्ज पर सेवा समायोजित करने की मांग कर रहे हैं.

उनका कहना है कि अगर आज हम बिहार में होते तो हम भी सरकारी नौकरी में होते, लेकिन अलग झारखंड राज्य के गठन का दंश जिले के 51 पर्यवेक्षक झेल रहे हैं. वर्ष 2010 में तत्कालीन शिक्षा मंत्री बैद्यनाथ राम ने विधानसभा में यह घोषणा की थी कि राज्य के अनौपचारिक पर्यवेक्षकों की सेवा समायोजित कर ली जायेगी, लेकिन बाद के दिनों में उनकी सेवा समायोजित नहीं हो सकी है. श्री भक्त ने राज्य के मुख्य सचिव व मुख्यमंत्री से गुहार लगायी है कि पूर्ववर्ती बिहार की तरह उनकी भी सेवा समायोजित की जाये.

शीघ्र ही पर्यवेक्षक संघ का एक प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री व मुख्य सचिव से रांची में मिलेगा और सरकार के अधीन विभिन्न विभागों में रिक्त पड़े तृतीय श्रेणी के पदों पर सेवा समायोजित करने की मांग करेगा.

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