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अस्तित्व खोती जा रही हैं गढ़वा की नदियां

नदियों पर आधारित सिंचाई परियोजनाओं पर लग सकता है ग्रहण विनोद पाठक गढ़वा : नदी, नाले एवं झरनों के समूह के बीच रहनेवाले गढ़वावासी आज बूंद-बूंद पानी को तरस रहे हैं. गढ़वा की यदि चौहद्दी लिखनी हो, तो चारों दिशाओं में नदियां ही इस जिला को बिहार, यूपी और छत्तीसगढ़ प्रदेश से अलग करती है. […]

नदियों पर आधारित सिंचाई परियोजनाओं पर लग सकता है ग्रहण
विनोद पाठक
गढ़वा : नदी, नाले एवं झरनों के समूह के बीच रहनेवाले गढ़वावासी आज बूंद-बूंद पानी को तरस रहे हैं. गढ़वा की यदि चौहद्दी लिखनी हो, तो चारों दिशाओं में नदियां ही इस जिला को बिहार, यूपी और छत्तीसगढ़ प्रदेश से अलग करती है.
उत्तर में जहां विशाल सोन नदी गढ़वा जिला सहित झारखंड की सीमा को बिहार से अलग करती है. वहीं दक्षिण में कनहर नदी गढ़वा जिला सहित झारखंड प्रदेश को छत्तीसगढ़ प्रदेश से अलग करती है. वहीं पूरब में कोयल नदी पलामू जिला से और पश्चिम से पंडा और सोन नदी यूपी से गढ़वा(झारखंड) को अलग करती है. गढ़वा जिले में नदियों की सूची महज इतना ही नहीं हैं, बल्कि जिले के अंदर बांकी, तहले, यूरिया, फूलवरिया, दानरो, खजुरिया, मैला, डोमनी जैसी दर्जनों छोटी-बड़ी नदियां हैं.
जंगल, झाड़ी, विविध पहाड़ों और बस्तियों से गुजरनेवाले इन नदियों में सालों भर पानी रहता था, जहां आदमी के साथ पशु-पक्षी भी गरमी से राहत लेते थे. लेकिन महज कुछ ही दशक में प्रकृति का यह रूप हो सकता है, यह किसी ने सोचा भी नहीं होगा. दूसरे क्षेत्र के लोग यदि पानी के लिए आज
तरस रहे हैं, तो यह बात समझ में आ सकती है, लेकिन जिस जिला के लोग पानी के लिए न सिर्फ आत्मनिर्भर थे, बल्कि दूसरे राज्यों के लोग पानी के लिए गढ़वा पर ललचायी दृष्टि रखते थे. आज उसी जिला के लोगों की यह हालत हो गयी है कि उनको बूंद-बूंद पानी के लिए तरसना पड़ रहा है. और यह हालत महज कुछ ही दशकों के अंदर बनी है.
छोटी सिंचाई परियोजनाओं पर भी लग सकता है ग्रहण
जिले के पहले की निर्मित सिंचाई परियोजनाओं में से अन्नराज सिंचाई परियोजना, पनघटवा डैम, बंबा, फूलवरिया, चिरका जैसी सिंचाई योजनाओं पर ग्रहण लग सकता है. विदित हो कि इसके पूर्व सरस्वतिया नदी पर बनी सिंचाई योजना शुरू होने से पूर्व ही अप्रासंगिक हो गयी थी, क्योंकि सरस्वतिया नदी सिर्फ बरसात को छोड़कर अपना अस्तित्व का संकट झेल रही है. इसी तहर दानरो नदी पर बना पनघटवा डैम का भी कमांड एरिया काफी घट गया है. कमोवेश यही हश्र अन्य छोटी परियोजनाओं का हुआ है.
सोन, कोयल नदियों का सूखना चिंता का विषय
जिले के सबसे बड़ी नदी सोन और कोयल नदी की इस समय यह हालत हो गयी है कि पीने के पानी के लिये इन नदियों में चुआड़ी खोदना पड़ रहा है. यह पर्यावरण के लिये बहुत बड़ा खतरा का संकेत है.
लगातार नीचे जा रहे जलस्तर से निदान के लिये जिलावासियों को पानी कीआपूर्ति के लिये सोन और कोयल से ही पाइप लाइन जलापूर्ति योजना बनाने का डीपीआर तैयार हो रहा है. लेकिन जब इन नदियों में ही जलस्तर नीचे जा चुका हो, तो आखिर इन योजनाओं का हश्र क्या हो सकता है. यह चिंता का विषय हो सकता है. यदि आगे भी वर्षापात की यही स्थिति रही, तो पानी का संकट एक गंभीर समस्या बन जायेगी.
अप्रासंगिक हो सकती हैं बड़ी सिंचाई परियोजनाएं
मात्र एक पीढ़ी पहले की बात है कि इस जिला से सिंचाई के लिए पानी ले जाने के लिए कई सिंचाई योजनाएं स्वीकृत हुई.इसमें करोड़ों रुपये खर्च कर काफी काम भी हुए. इनमें मंडल डैम, कधवन डैम, कनहर परियोजना, मोहम्मदगंज बराज जैसी योजनाएं शामिल हैं. मंडल डैम कोयल नदी पर बना है, जबकि कोयल नदी पर ही मोहम्मदगंज बराज पहले ही बन चुका है. ये दोनों सिंचाई परियोजना बिहार के लिए है. इसी तरह सोन नदी पर कधवन डैम लंबित पड़ा हुआ है. यह सिंचाई परियोजना भी बिहार के लिए है. कनहर परियोजना प्रस्तावित है, जो झारखंड के अलावा छत्तीसगढ़ प्रदेश(बिजली उत्पादन) के लाभ के लिए बन रहा है.
लेकिन कोयल, सोन और कनहर नदी की पानी के भरोसे बनी यह योजना अब खटाई में पड़ सकती है. इसलिए कि सालों भर भरी रहनेवाली इन नदियों में अब जून अंतिम से लेकर महज सितंबर-अक्तूबर तक इनमें देखा जा सकता है. इसके बाद ये नदियां अपने अस्तित्व के लिए तरसती नजर आती है. इसलिए सिर्फ बरसात में हुए पानी को रोक कर इतनी बड़ी सिंचाई परियोजनाओं के लक्ष्य को पूरा कर पाना संभव नहीं रह गया है.

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