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27 साल से बना हुआ है गढ़वा में बाइपास का मुद्दा
जिले के लोगों के लिए सपना बाइपास रोड निर्माण झारखंड बनने के बाद 18 अक्तूबर 2001 में प्रथम मुख्यमंत्री ने किया था शिलान्यास तीन राज्यों को जोड़नेवाले राष्ट्रीय उच्च पथ के गुजरने के कारण रोज होती रहती है दुर्घटनाएं विनोद पाठक गढ़वा : गढ़वा शहर के लिए बाइपास का निर्माण अभी तक गढ़वावासियों के लिए […]
जिले के लोगों के लिए सपना बाइपास रोड निर्माण
झारखंड बनने के बाद 18 अक्तूबर 2001 में प्रथम मुख्यमंत्री ने किया था शिलान्यास
तीन राज्यों को जोड़नेवाले राष्ट्रीय उच्च पथ के गुजरने के कारण रोज होती रहती है दुर्घटनाएं
विनोद पाठक
गढ़वा : गढ़वा शहर के लिए बाइपास का निर्माण अभी तक गढ़वावासियों के लिए एक सपना है. गढ़वा को जिला बने 27 साल हो चुके हैं. जिला बनने के साथ ही यहां के लोगों ने बाइपास के निर्माण की आवश्यकता महसूस की थी, लेकिन ढाई दशक बीतने के बाद भी बाइपास सड़क निर्माण की बात तो दूर, इसके लिये अभी तक कोई खाका भी तैयार नहीं किया जा सका है.
वर्ष 2000 में झारखंड राज्य का गठन होने के बाद लगा था कि गढ़वा बाइपास का सपना अब शीघ्र पूरा हो जायेगा. झारखंड के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने इस पर गंभीरता भी दिखायी थी. उन्होंने 18 अक्तूबर 2001 को यहां बाइपास के लिये शिलान्यास भी किया. बताया गया कि बिना कोई सर्वे किये और डीपीआर बनाये बाइपास का शिलान्यास कर दिया गया.
तीसरे नगर निकाय के चुनाव में भी बाइपास निर्माण है मुद्दा : इसके बाद गढ़वा जब नगर पंचायत बना, तो एक बार फिर बाइपास का मुद्दा जोरों से उठाया गया. नगर पंचायत के चुनाव में बाइपास का मुद्दा प्रमुख रूप से चुनाव के घोषणा पत्र में सभी प्रत्याशियों ने शामिल किया. लेकिन इसके बाद दो नगर पंचायत के कार्यकाल पूरे हो चुके हैं.
लेकिन बीच में गढ़वा शहर नगर पंचायत से नगर परिषद भी बन गया, लेकिन बाइपास का निर्माण चुनावी घोषणा मात्र बनकर रह गया है. अब अप्रैल में होनेवाले तीसरे नगर निकाय के चुनाव में भी बाइपास का मुद्दा प्रत्याशियों के घोषणा पत्र में शामिल होने जा रहा है.
फोनलेन के लिए हुआ है सर्वे : बाइपास निर्माण के लिये अभीतक कोई ठोस पहल नहीं हुई है. लेकिन कुड़ू से मुड़ीसेमर तक बननेवाले फोरलेन को लेकर पिछले अक्तूबर में राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्देश पर सर्वे का काम हुआ है.
उस समय यह कहा गया था कि दिसंबर तक इसका डीपीआर बनाकर भेज दिया जायेगा और मार्च तक फोरलेन के बाइपास का शिलान्यास करने का प्रयास किया जायेगा. लेकिन उक्त सर्वे के बाद बाइपास की दिशा में कोई कार्य आगे नहीं बढ़ पाया है. विशेष रूप से भूमि अर्जन के लिये कोई पहल शुरू नहीं होने से लोगों को यह भी कोरा प्रयास ही महसूस हो रहा है. लोगों का कहना है कि यदि सरकार गंभीर होती, तो कम से कम सड़क के लिये भू अर्जन का काम शुरू हो चुका होता.
आये दिन होती रहती है दुर्घटना
गढ़वा जिला बिहार, यूपी और छत्तीसगढ़ की सीमा पर अवस्थित है. इन सभी राज्यों को जोड़नेवाली सड़क गढ़वा शहर के बीच से ही गुजरी है. झारखंड बनने के पूर्व ही इस सड़क को राष्ट्रीय उच्च पथ में ले लिया गया है.
स्थिति यह है कि शहर से गुजरी इस सड़क पर प्रतिदिन हजारों की संख्या में छोटे-बड़े यात्री एवं मालवाहक वाहन विभिन्न राज्यों के लिए गुजरते हैं.
इस परिस्थिति में गढ़वा शहर में वाहनों के आवागमन से शहर के किनारे स्थित दुकानों और मकानों में रहनेवाले लोगों की स्थिति काफी कष्टदायक हो गयी है. साथ ही एक तरफ जहां शहर में अक्सर जाम की स्थिति बनी रहती है, वहीं दूसरी ओर आये दिन दुर्घटना भी होती रहती है.
इस क्रम में दर्जनों लोगों की जान भी जा चुकी है. इसको लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों सहित व्यावसायिक संगठनों द्वारा बार-बार आंदोलन होता रहा, लेकिन बावजूद बाइपास के लिये कोई सार्थक पहल नहीं की जा सकी है. इसके कारण शहर के लोगों में स्थानीय जनप्रतिनिधि, प्रशासन एवं सरकार के प्रति काफी आक्रोश दिखता है.
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