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दीये की जगह चीनी बल्बो का बढा क्रेज दुमका . चिराग तले अंधेरा यह कहावत दीये बनाने वालों पर सटीक बैठती है. बाजार में जहां चीनी बल्बों और सजावट की दुकानों पर जबरजस्त भीड़ है वही मिट्टी के दीये बेचने वालों के चेहरे पर उदासी साफ देखी जा सकती है. परंपरागत वस्तुओ की बाजार मे […]

दीये की जगह चीनी बल्बो का बढा क्रेज दुमका . चिराग तले अंधेरा यह कहावत दीये बनाने वालों पर सटीक बैठती है. बाजार में जहां चीनी बल्बों और सजावट की दुकानों पर जबरजस्त भीड़ है वही मिट्टी के दीये बेचने वालों के चेहरे पर उदासी साफ देखी जा सकती है. परंपरागत वस्तुओ की बाजार मे मांग कम हो गई है उनकी जगह आधुनिक समानों ने ले ली है. यही हाल फूलों एंव मूर्तियों का भी है.अब बाजार में कृत्रिम फूलों की भरमार है. लोग फूलों की जगह अब कृत्रिम सजावटी वस्तुऐ ही खरीद रहे हैं. एक ओर जहां ये कृत्रिम फूल खराब नहीं होते हैं वहीं इसे कई सालों तक चलाया जा सकता है. टीन बाजार चौक में दीये बेचने वाले राजीव पंडित ने बताया पिछले साल की तुलना में इस बार दीये कम बिक रहे हैं. लोग चालीस रूपये सैकड़ा पर भी खरीदने को तैयार नहीं हैं जबकि हमारी लागत मंहगाई के कारण बढ़ गई है सौ दीये बेचकर बमुश्किल चार से पांच रूपये की बचत हो पाती है.

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