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भारतीय साहित्य के भक्ति परंपरा के स्तंभ थे विद्यापति

संवाददाता, दुमकाविद्यापति चेतना सांस्कृतिक परिषद् के तत्वावधान में बुधवार को विद्यापति स्मृति दिवस मनाया गया. इस अवसर पर विद्यापति के तैलचित्र पर माल्यार्पण कर पुष्पांजलि अर्पित की गयी. मौके पर मौजूद परमेश्वर झा, प्रो श्यामानंद झा एवं जगन्नाथ मिश्रा इंटर महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो चंद्रशेखर पाठक ने उनके साहित्यिक योगदानों पर विस्तार से चर्चा की. […]

संवाददाता, दुमकाविद्यापति चेतना सांस्कृतिक परिषद् के तत्वावधान में बुधवार को विद्यापति स्मृति दिवस मनाया गया. इस अवसर पर विद्यापति के तैलचित्र पर माल्यार्पण कर पुष्पांजलि अर्पित की गयी. मौके पर मौजूद परमेश्वर झा, प्रो श्यामानंद झा एवं जगन्नाथ मिश्रा इंटर महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो चंद्रशेखर पाठक ने उनके साहित्यिक योगदानों पर विस्तार से चर्चा की. कहा कि विद्यापति बिहार के समस्तीपुर में जन्मे भारतीय साहित्य के भक्ति परंपरा के प्रमुख स्तंभों में से एक थे. मैथिली के सर्वोपरि महाकवि की संज्ञा देते हुए इन वक्ताओं ने कहा कि संस्कृत, अवहट और मैथिली भाषाओं के रचनाकार विद्यापति के काव्यों में मध्यकालीन मैथिली भाषा के स्वरूप का दर्शन किया जा सकता है. महाकवि विद्यापति को वैष्णव एवं शैव के सेतु के रूप में स्वीकार किया गया है. मिथिला के लोगों को ‘देशिल वयना सब जन मिट्ठा’ का सूत्र देकर उन्होंने उत्तरी बिहार की जनचेतना को जीवित करने का महत्वपूर्ण प्रयास किया था. श्रृंगार एवं भक्तिरस की उनकी रचनाएं पाणिनी में जीवित हैं. पदावली व कृतिलता जैसी अमर रचनाओं पर भी इन वक्ताओं ने प्रकाश डाला. इससे पूर्व जय-जय भैरव के गायन से कार्यक्रम की शुरुआत की गयी. कार्यक्रम में मिथिला भाषा अनुरागियों में सुमन कुमार झा, कृष्णानंद झा, अमरनाथ झा, योगेंद्र मिश्र, कामोद नारायण झा, आशुतोष मिश्रा, सत्यनारायण झा, शंकर मिश्रा, कमलाकांत झा, शिवशंकर मिश्र, अनुग्रह झा, ताराकांत झा, योगेंद्र झा, नर्मदा देवी, निधि, पल्लवी प्रिया, सिंपी आदि मौजूद थे.——————5 डीएमके विद्यापति——————

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