बदहाली. जनजातीय शोध संस्थान में सामग्रियों की घोर कमी, पुस्तकों से ज्यादा है कुर्सी-टेबुल
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शोधार्थी संस्थान की बेहतरी के जोह रहे बाट
बदहाली. जनजातीय शोध संस्थान में सामग्रियों की घोर कमी, पुस्तकों से ज्यादा है कुर्सी-टेबुल दुमका : उपराजधानी दुमका में कल्याण विभाग द्वारा संचालित डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान बिल्कुल उपेक्षित पड़ा हुआ है. इस संस्थान के स्थापित हुए कई साल गुजर चुके हैं, बावजूद इसका समुचित लाभ यहां के लोगों को नहीं मिल पा […]
दुमका : उपराजधानी दुमका में कल्याण विभाग द्वारा संचालित डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान बिल्कुल उपेक्षित पड़ा हुआ है. इस संस्थान के स्थापित हुए कई साल गुजर चुके हैं, बावजूद इसका समुचित लाभ यहां के लोगों को नहीं मिल पा रहा है. संसाधन एवं शोध सामग्रियों के अभाव में यह संस्थान इन दिनों लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर पाने में नाकाम ही साबित हो रहा है. आश्चर्यजनक बात यह है कि इस संस्थान को संचालित करने के लिए तीन कर्मी यहां पदस्थापित हैं, बावजूद महीने में कई दिन यह बंद ही मिलता है.
केंद्र के संचालन के लिये तीन कर्मी पदस्थापित, फिर भी कई-कई दिन बंद रहता है संस्थान
नवीन संस्करण की किताबें नहीं है
इस जनजातीय शोध संस्थान में जितनी तरह की पुस्तकें हैं, शायद उससे भी अधिक टेबल-कुर्सियां हैं. पाठ्य सामग्री का घोर अभाव है. जो पुस्तके हैं, वह भी इतनी पुरानी हैं कि उसमें 1970-80 तक के ही आंकड़े और रिपोर्ट हैं. नवीन संस्करण की पुस्तकें नहीं मंगवायी गयी है.
छह माह में मात्र 37 विजिटर्स !
इस जनजातीय शोध संस्थान में पिछले 6 माह में महज 37 ही लोग पहुंचे हैं. ऐसा इस संस्थान का विजिटर्स रजिस्टर कहता है. इनमें कई तो ऐसे भी विजिटर्स हैं, जो इस अवधि में दो-तीन बार पहुंचे. संस्थान में पुस्तकों को रखने के लिए कोई बुकशेल्फ तक नहीं है. टेबल में रखी पुस्तकें धूल से धुसरित होती रहती है.
राजकीय पुस्तकालय भवन में चल रहा संस्थान
यह जनजातीय शोध संस्थान जिस भवन में चल रहा है, वह भवन राजकीय पुस्तकालय का है. निचले तल के सभागार में यह संस्थान चलता है, जिसमें न तो बिजली का कनेक्शन है और न ही शौचालय आदि की कोई व्यवस्था. हालांकि छह-सात महीने पहले कल्याण मंत्री ने इस दिशा में पहल करने की बात कही थी. पर यह आश्वासन अभी धरातल पर नहीं उतर पाया है. संस्थान में समुचित संसाधन व शोध सामग्रियां उपलब्ध करायी जाय तो यह इस इलाके के आमजनों ही नहीं शोधार्थियों के लिए बहुत अहम साबित होगा.
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