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रामाश्रय बाबू का अर्द्धनग्न सत्याग्रह एक मार्च से

धनबाद : डीवीसी परियोजना के कारण विस्थापित हुए ग्रामीणों के नियोजन की मांग को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता रामाश्रय सिंह एक और आंदोलन का शंखनाद कर रहे हैं. इसके तहत आगामी एक मार्च से श्री सिंह ग्रामीणों के साथ अर्द्धनग्न स्थिति में अनिश्चितकाल के लिए सत्याग्रह शुरू करेंगे. सत्याग्रह का यह कार्यक्रम बलियापुर के शिमपाथर गांव […]

धनबाद : डीवीसी परियोजना के कारण विस्थापित हुए ग्रामीणों के नियोजन की मांग को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता रामाश्रय सिंह एक और आंदोलन का शंखनाद कर रहे हैं. इसके तहत आगामी एक मार्च से श्री सिंह ग्रामीणों के साथ अर्द्धनग्न स्थिति में अनिश्चितकाल के लिए सत्याग्रह शुरू करेंगे.

सत्याग्रह का यह कार्यक्रम बलियापुर के शिमपाथर गांव में शुरू होगा. बकौल श्री सिंह-‘शिमपाथर गांव के 1670 घर डीवीसी के डैम में चले गये. ऐसे में इस बार मैंने शिमपाथर गांव सत्याग्रह शुरू करने का फैसला किया है.’ श्री सिंह ने कहा कि इसके बाद होली के दिन 24 मार्च को हजारों की संख्या में ग्रामीण व विस्थापित अर्द्धनग्न स्थिति में भूख हड़ताल पर बैठेंगे.

34 बार हो चुका है समझौता : एक मार्च व 24 मार्च को शुरू हो रहे आंदोलन के संबंध में श्री सिंह ने धनबाद के डीसी, एसडीओ, डीवीसी के चेयरमैन समेत झारखंड के मुख्यमंत्री से लेकर देश के प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति तक को पत्र लिखा है. पत्र में श्री सिंह ने कहा है कि 22 जनवरी, 2010 से अब तक कुल 34 बार विस्थापित ग्रामीणों के नियोजन को लेकर उच्चस्तरीय बैठक में सहमति बनी, लेकिन आज तक एक भी नियोजन नहीं मिला है. 22 जनवरी, 2010 को हुए समझौता में डीवीसी प्रबंधन ने उन सभी विस्थापित ग्रामीणों को नौकरी देने की बात कही थी, जिनकी जमीन अधिग्रहित की गयी है.
नियोजन के लिए डीवीसी प्रबंधन ने दो शर्तें रखी. पहली शर्त कि विस्थापित ग्रामीण कार्यपालक दंडाधिकारी से जमीन का शपथ पत्र सत्यापन कराकर दें. दूसरी शर्त थी कि विस्थापित ग्रामीण जमीन की एनओसी दें. विस्थापितों द्वारा इनदोनों शर्तों को पूरा करते हुए पेपर जमा कराये गये, लेकिन नौकरी नहीं मिली. 12 मार्च, 2013 को धनबाद के तत्कालीन डीसी की अध्यक्षता में हुई बैठक में इन सारे विंदुओं पर विस्तार से चर्चा हुई. इसके बाद 31 अगस्त, 2013 को धनबाद के तत्कालीन एसडीओ ने समझौते के आलोक में कार्रवाई का निर्देश दिया. छह जून, 2014 को भी उच्चस्तरीय बैठक में सहमति बनी. बावजूद इसके डीवीसी उच्च प्रबंधन की ओर से विभिन्न हथकंडों द्वारा विस्थापित ग्रामीणों के नियोजन में अड़ंगा लगाया जा रहा है.
न्यायालय की अवमानना : पत्र में श्री सिंह का आरोप है कि इस मामले में डीवीसी प्रबंधन न्यायालय के आदेश की भी अवमानना करता रहा है. वर्ष 1992 में नौकरी व मुआवजा की मांग को 91 विस्थापित ग्रामीण कोलकाता उच्च न्यायालय और फिर सर्वोच्च न्यायालय की शरण में गये. नौ अप्रैल, 1992 को न्यायमूर्ति जयचंद रेड्डी, न्यायामूर्ति एस मोहन, न्यायमूर्ति जीएन रे की खंडपीठ ने विस्थापितों के पक्ष में फैसला सुनाया. श्री सिंह के मुताबिक फैसला में साफ तौर पर कहा गया है कि विस्थापितों की नौकरी के लिए किसी तरह का पैनल अनिवार्य नहीं. जिन लोगों को मुआवजा दिया गया है, उन्हें नौकरी भी दी जानी चाहिए. न्यायालय के आदेश के बावजूद विस्थापितों को नौकरी नहीं मिल पायी है.
देश के दो बड़े विस्थापित गांव : पत्र में श्री सिंह ने कहा है कि डीवीसी की परियोजनाओं के लिए झारखंड के धनबाद जिले के बलियापुर के शिमपाथर गांव में जमीन के अलावा 1670 घरों का अधिग्रहण किया गया. इसी तरह पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले के रघुनाथपुर गांव के तेलकुपी गांव में जमीन के अलावा 1700 घरों का अधिग्रहण किया गया. इस तरह शिमपाथर व तेलकुपी ये दोनों गांव पूरे देश में दो बड़े विस्थापित गांव बन चुके हैं. दुर्भाग्य की बात यह कि इनदोनों गांवों के एक भी ग्रामीण विस्थापित को डीवीसी में नियोजन नहीं मिला है. (कल पढ़ें : 16 वर्षों में 100
आंदोलनात्मक कार्यक्रम)

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