धनबाद: शास्त्रीनगर स्थित गुजर्र क्षत्रिय समाज भवन में चल रहे भागवत कथा में तीसरे दिन उमेश भाई जानी ने बताया कि नशा ही नाश की जड़ है. नशा में होने वाले खर्च का सदुपयोग करें तो हमारा समुचित विकास हो सकता है.
कथा में जल भरन आख्यान से यह पता चलता है कि पृथ्वी भगवान की बनायी धर्मशाला है. यहां कोई स्थायी नहीं है.
वास्तव में हमारा शरीर परमात्मा का मकान है और हम किरायेदार. सत्कर्मो का किराया हमें भरना ही पड़ेगा. अजमिल की कथा में यह बताया कि हमें अपनी संतानों का नाम अर्थ वाले रखने चाहिए. कुछ भी नाम रखने से कल्याण नहीं होता. टिंकू, पिंटू, मिंटू,पप्पू, टप्पू आदि का कोई अर्थ नहीं होता. नाम अच्छा रखें और संस्कार भी उसी के अनुरूप दे. प्रहलाद चरित्र कथा में भव्य झांकी का चित्रण किया गया. यह देख सभी भाव-विभोर हो गये.