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मनइटांड़ में दिखेगा नेपाल का लुंबिनी मंदिर

धनबाद: दुर्गा पूजा में बस एक महीना शेष है. 25 सितंबर से नवरात्र शुरू होगी. सप्तमी एक अक्तूबर को है. पूजा समितियों ने तैयारी शुरू कर दी है. पंडाल निर्माण शुरू हो गया है. हम आपको बता रहे हैं, शहर के चर्चित पूजा पंडालों में से एक मनईटांड़ नवयुवक संघर्ष समिति के बारे में जहां […]

धनबाद: दुर्गा पूजा में बस एक महीना शेष है. 25 सितंबर से नवरात्र शुरू होगी. सप्तमी एक अक्तूबर को है. पूजा समितियों ने तैयारी शुरू कर दी है. पंडाल निर्माण शुरू हो गया है. हम आपको बता रहे हैं, शहर के चर्चित पूजा पंडालों में से एक मनईटांड़ नवयुवक संघर्ष समिति के बारे में जहां इस बार लुंबिनी (नेपाल) के मंदिर की अनुकृति बनायी जा रही है. यहां पानी टंकी के निकट 1972 से पूजा हो रही है. यह पूजा समिति हमेशा नया करने के लिए जानी जाती है. न सिर्फ कोयलांचल, बल्कि दूर-दूर से भक्त देवी मां और पंडाल का दर्शन करने आते हैं. आकर्षक पंडाल और देवी मां की मूर्ति के लिए लगभग दो महीने पहले समिति के सदस्यगण सक्रिय हो जाते हैं. 25 सदस्यों की टीम की अथक परिश्रम का परिणाम भक्तों को पूजा के समय देखने को मिलता है.

दिखेगी गौतम बुद्ध की प्रतिमा भी : इस बार पूजा पंडाल नेपाल के लुंबिनी मंदिर की अनुकृति होगा. पंडाल के मुख्य द्वार पर गौतम बुद्ध की बड़ी सी प्रतिमा होगी, जो भक्तों को शांति का संदेश देगी. सदस्यों का कहना है कि मौजूदा परिवेश में चारों और अशांति की लहर फैली है. बुद्ध के संदेश भक्तों में मानसिक शांति का संचार करेंगे.

पांच अक्तूबर को होगा विसजर्न : समिति के अध्यक्ष अभिमन्यु सिंह बताते हैं आकर्षक पंडाल के कारण हमलोग दशमी के दो दिन बाद मूति विसिजर्त करते हैं. इस बार पांच अक्तूबर को प्रतिमा विसजर्न करेंगे. विसजर्न से पहले महिलाएं मां का गोद भरती हैं. सिंदूर खेला होता है. विदाई के वक्त हर नयन छलक उठते हैं. छठ तालाब मनईटांड़ में प्रतिमा विसर्जित की जाती है. विसजर्न के अगले दिन खिचड़ी का भोग बनाया जाता है जिसे सामूहिक रूप से सब मिलकर खाते हैं.

बोरा और प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनेगी प्रतिमा

पंडाल और मूर्ति प्लास्टर ऑफ पेरिस और बोरे से बनाये जा रहे हैं. पंडाल बनाने से लेकर विसजर्न तक का काम सदस्यों द्वारा किया जाता है. पंडाल बनाने में तीन लाख व पूजा में एक लाख रुपया खर्च किया जा रहा है. षष्ठी पूजा से ही पंडाल के द्वार भक्तों के लिए खोल दिए जाते हैं. लोगों की भीड़ षष्ठी से ही उमड़ने लगती है. अष्टमी से दशमी तक नो इंट्री रहती है. केवल पैदल आने-जाने की छूट रहती है. ताकि लोगों को मूर्ति व पंडाल के दर्शन को लेकर कोई दिक्कत न हो. समिति के सभी सदस्य सुबह से देर रात्रि तक काम में जुटे रहते हैं. इनकी कोशिश होती है भक्तों को कुछ अलग पंडाल के दर्शन करायें.

अब तक का आकर्षण

अब तक कई आकर्षक पंडाल बन चुके हैं. श्यामल सेन समिति के कला निदेशक हैं. उनके नेतृत्व में सभी मूर्ति बनाने से लेकर पंडाल सजाने का काम करते हैं. इससे पहले रेलवे स्टेशन, देवघर मंदिर, अंडर ग्राउंड कोलियरी, बौद्ध मंदिर, समुद्र के गर्भ में मां की प्रतिमा, नारियल की प्रतिमा और पंडाल, चटाई से बना पंडाल आदि उल्लेखनीय है.

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