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नीरज सिंह हत्याकांड का एक साल: ‘सिंह मैंशन’ के सामने ‘अभेद्य दुर्ग’ झरिया को बचाने की चुनौती

नीरज सिंह की हत्या के एक साल पूरे हुए. नीरज सिंह की हत्या के बीते एक वर्ष के दौरान जो माहौल बना है, उसमें धनबाद कोयलांचल पर 40 वर्षों से अधिक समय तक राज करनेवाले ताकतवर राजनीतिक घराने “सिंह मैंशन” परिवार का ‘अभेद्य दुर्ग’ झरिया विधानसभा सीट संकट में दिख रहा है. “सिंह मैंशन” की […]

नीरज सिंह की हत्या के एक साल पूरे हुए. नीरज सिंह की हत्या के बीते एक वर्ष के दौरान जो माहौल बना है, उसमें धनबाद कोयलांचल पर 40 वर्षों से अधिक समय तक राज करनेवाले ताकतवर राजनीतिक घराने “सिंह मैंशन” परिवार का ‘अभेद्य दुर्ग’ झरिया विधानसभा सीट संकट में दिख रहा है. “सिंह मैंशन” की स्थापना अपने दौर के कद्दावर व बाहुबली मजदूर नेता सूर्यदेव सिंह ने की थी. वर्तमान में सिंह मैंशन परिवार का इतिहास ऐसे मोड़ पर खड़ा है, जहां एक ओर स्वर्गीय सिंह के भतीजा नीरज सिंह की हत्या हुई और हत्या के मामले में उनके पुत्र व झरिया विधायक संजीव सिंह आरोपी बनकर जेल में हैं. नीरज सिंह हत्याकांड का गहरा असर अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव में झरिया में पड़ेगा. सिंह मैंशन एवं रघुकुल दोनों के लिए ही अगला चुनाव महत्वपूर्ण है. यह सीट सिंह मैंशन की परंपरागत सीट मानी जाती है. 1977 से लेकर अब तक हुए 11 चुनावों में से नौ बार मैंशन परिवार के ही सदस्य जीते हैं.

70 के दशक में पड़ी थी नींव : उत्तर प्रदेश के बलिया जिला के गोन्हिया छपरा गांव के एक साधारण किसान चंडी प्रसाद सिंह के बड़े पुत्र सूर्यदेव सिंह रोजी-रोजगार की तलाश में धनबाद आये. तब धनबाद में निजी खान मालिकों की ओर से कोयला खनन किया जाता था. धनबाद में साधारण कोयला मजदूर के तौर पर करियर शुरू करनेवाले सूर्यदेव सिंह बाद में कोयला मजदूरों की ट्रेड यूनियन राजनीति में सक्रिय हुए. सूर्यदेव सिंह बीती सदी के 70 के दशक में कोयलांचल के सबसे बड़े पावर सेंटर मानेजाने वाले कांग्रेस से जुड़े कद्दावर व बाहुबली मजदूर नेता वीपी िसन्हा के करीबी हुए. 1971-1973 में कोयला उद्योग के राष्ट्रीयकरण के बाद ट्रेड यूनियन राजनीति में सूर्यदेव सिंह की ताकत बढ़ी. बाद के वर्षों में वीपी सिन्हा और सूर्यदेव सिंह के रास्ते अलग हो गये. इधर, इंदिरा गांधी विरोधी लहर के दौरान जनता पार्टी की टिकट पर सूर्यदेव सिंह झरिया विधानसभा से चुनाव लड़े और पहली बार विधायक बने. इसके बाद 29 मार्च, 1978 को वीपी सिन्हा की हत्या कर दी गयी.

इस हत्या में सूर्यदेव सिंह का नाम आया था. विधायक बनने और वीपी सिन्हा की हत्या के बाद सूर्यदेव सिंह ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. इसी दौरान सूर्यदेव सिंह ने सिंह मैंशन परिवार की नींव रखी. हालात यह हो गये कि धनबाद कोयलांचल में सूर्यदेव बाबू की मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता था. सूर्यदेव सिंह के जीवनकाल में सिंह मैंशन से ही धनबाद की राजनीति और कोयला कारोबार की नीति तय होती थी. बाद के वर्षों में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के करीबी होने के बाद सूर्यदेव सिंह तत्कालीन बिहार और उत्तर प्रदेश की राजपूत राजनीति की धुरी भी बन गये. मजदूरों व आम लोगों के बीच जोरदार उपस्थिति व जनसंपर्क के कारण सूर्यदेव सिंह न सिर्फ “विधायकजी” नाम से लोकप्रिय हुए, बल्कि झरिया से उन्हें हराना केंद्र व अविभाजित बिहार में सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी के लिए असंभव हो गया. वर्ष 1991 में दिल का दौरा पड़ने से हुई मौत के पूर्व सूर्यदेव सिंह लगातार चार बार 1777, 1980, 1985, 1990 में झरिया से विधायक बने.

टूटता गया सिंह मैंशन परिवार : सूर्यदेव बाबू की ओर से स्थापित “सिंह मैंशन” की पहचान न सिर्फ मजबूत राजनीतिक घराना की बनी, बल्कि संयुक्त परिवार की भी बेजोड़ मिसाल बना था “सिंह मैंशन” परिवार. सूर्यदेव सिंह ने अपने जीवन काल में चारों भाइयों विक्रमा सिंह, बच्चा सिंह, राजन सिंह व रामधीर सिंह के परिवार को एक सूत्र में बांधे रखा. धनबाद से बलिया तक संपत्ति से लेकर चूल्हा तक सांझा रहा. एक भाई विक्रम सिंह बलिया स्थित पैतृक गांव में रहते थे, जबकि सूर्यदेव सिंह, राजन सिंह, बच्चा सिंह और रामधीर सिंह के परिवार एक साथ “सिंह मैंशन” में रहते थे. लेकिन “सिंह मैंशन” के रूप में सूर्यदेव सिंह ने जिस संयुक्त परिवार का सपना संजोया था, वह बीते डेढ़ दशक के दौरान पूरी तरह बिखरता गया.

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