यहीं पर शिक्षक प्रशिक्षक कॉलेज का निर्माण कराया गया था और प्रशिक्षण की अनुमति भी मिली थी. यहां अध्यापन के लिए शिक्षकों काे निपुण किया जाता था. लेकिन तीन सालों में ही उक्त प्रशिक्षण कॉलेज को घाेरमारा स्थानांतरित कर दिया गया था. अब यह खंडहर बनकर रह गया. केवल मरम्मत के बाद अभाव में यह बरबाद हो रहा है. सारवां का राजस्व कचहरी जहां अंगरेजी हुकूमत के अलावा आजादी के बाद सरकार द्वारा प्रखंड व अंचल का दर्जा दिया गया था, यह भी जैसे तैसे पड़ा है. पवन कुमार झा, डा श्याम सुंदर चाैधरी, टिकेश्वर वर्मा, भुजंगी मोदी, श्यामाचरण पत्रलेख, कृतानंद पांडेय, परमेश्वरी वर्मा, आरके सिंह, बालदेव वर्मा , पलटन झा, जयप्रकाश गुप्ता, बलराम पोद्दार आदि प्रबुद्ध नागरिकों ने अविलंब सारवां के एेतिहासिक धरोहर को बचाने की गुहार लगायी है.
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गुमनामी में शिक्षक प्रशिक्षण कॉलेज
सारवां: सारवां का अतीत काफी गौरवपूर्ण रहा है. 1800 ई में प्रतापी जमींदार टिकैत डेगनारायण सिंह, जमींदार मर्दन सिंह के शासनकाल में सारवां को कई उपलब्धियां मिली हुई थी. सारवां बाजार का रानी तालाब, दुखियानाथ महादेव मंदिर, एवं जमींदार का सारवां कदमा पोखर के पास गढ़ व राजा कचहरी इसका ज्वलंत प्रमाण है. जमींदारी प्रथा […]
सारवां: सारवां का अतीत काफी गौरवपूर्ण रहा है. 1800 ई में प्रतापी जमींदार टिकैत डेगनारायण सिंह, जमींदार मर्दन सिंह के शासनकाल में सारवां को कई उपलब्धियां मिली हुई थी. सारवां बाजार का रानी तालाब, दुखियानाथ महादेव मंदिर, एवं जमींदार का सारवां कदमा पोखर के पास गढ़ व राजा कचहरी इसका ज्वलंत प्रमाण है. जमींदारी प्रथा समाप्त हो जाने के बाद कालांतर में लगभग सभी एेतिहासिक धरोहर समाप्त होते गये. लेकिन आज स्थिति यह है कि प्रशासन की उपेक्षा के कारण इन धरोहरों के इतिहास पर संकट मंडरा रहे हैं.
सारवां का राजस्व कचहरी आज इसकी याद दिलाता है. क्षेत्र के 93 वर्षीय वरीय नागरिक सह अवकास शिक्षक उमेश चंद्र सिंह बताते हैं कि सारवां में शिक्षा की कमी दूर करने के लिए 1940 के आसपास अंगरेजी हुकूमत ने सारवां में एसबेस्टस का भवन बना कर बालक मध्य विद्यालय की स्थापना की थी .
कहते हैं विधायक
राजस्व कचहरी व कॉलेज भवन दोनों ही सारवां के अतीत हैं. दोनों भवनों को बचाने के लिए संबंधित विभाग के अधिकारियों से बात की जायेगी.
बादल, विधायक, जरमुंडी विस
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