इस संबंध में पंडित मनोज मिश्र ने बताया कि चतुर्दशी शुक्रवार दिन के 11:30 बजे बाद प्रवेश कर जायेगा. ऐसे में शनिवार को भी वट पूजा का प्रावधान है. लेकिन बाबाधाम में उदया सिद्धांत पर तिथि मानी जाती है. इसके तहत जिस तिथि को सूर्य का उदय होता है.
उसे ही अंतिम माना जाता है. इसलिए रविवार वट सावित्री पूजा करना सर्वोत्तम रहेगा. उन्होंने कहा कि इस आधार पर शुक्रवार को नहाय-खाय रखें. शनिवार सुहागिन महिलाएं अपने सामर्थ्य के अनुसार निर्जला व्रत व आठ प्रहर व्रत रखने के उपरांत रविवार को वट सावित्री पूजा करें. उन्होंने कहा कि इसमें शिव परिवार की पूजा होती है. इसमें सुहागिन महिलाएं सौलह श्रृंगार धारण् कर वट वृक्ष में पान, सुपाड़ी, जनेउ, साड़ी, ठेकुआ, आम, तरबूज, लीची मौसमी फल आदि अर्पित कर धूप, दीप दिखा कर वट वृक्ष में कच्चा धागा बांध कर हाथ पंखा से हवा करती हैं. ऐसी मान्यता है कि वट पूजा कर ही सावित्री ने अपने मृत पति सत्यवान का जीवन दान लेकर आयी है. वह जीवित हो गये थे. इसके बाद से ही यह पर्व मनाने की परंपरा शुरू हुई है.