देवघर: कानून व सरकार द्वारा सौंपे गये दायित्वों का मुखियाजी अगर कुशलतापूर्वक निर्वहन नहीं करते हैं तो उनके विरुद्ध भी कार्रवाई हो सकती है. इसमें असफल मुखिया को पद से भी हाथ धोना पड़ सकता है. डीडीसी शशि रंजन प्रसाद सिंह ने सभी बीडीओ को पत्र भेजकर पंचायतीराज अधिनियम धारा 69 का हवाला देते हुए यह बातें कही है. दरअसल पिछले कुछ दिनों बैठक में अनुपस्थित व योजनाओं के संचालन में असंतोष पाये जाने पर कुछ बीडीओ ने कई मुखिया से स्पष्टीकरण पूछा था. इससे मुखिया की ओर से सवाल उठने लगे थे.
इसी आलोक में डीडीसी ने स्थिति को स्पष्ट करते हुए पंचायतीराज एक्ट का हवाला सभी बीडीओ व मुखिया को दिया है. डीडीसी ने भेजे पत्र में कहा है कि मुखिया को सरकार द्वारा सौंपे गये मनरेगा, 13वां वित्त आयोग, पेयजल, शिक्षा, चिकित्सा, आंगनबाड़ी का सफलतापूर्वक क्रियान्वयन की जिम्मेवारी दी गयी है. योजनाओं के क्रियान्वयन में मुखिया को बैठक व प्रशिक्षण में शामिल होकर नियमों की जानकारी प्राप्त करना आवश्यक है. यदि मुखिया का कार्य संतोषजनक नहीं है तथा मुखिया का असहयोग, शिथिलता व लापरवाही सामने आती है तो पंचायतीराज अधिनियम की धारा 30 के तहत मुखिया के विरुद्ध कार्रवाई का प्रावधान है. कार्रवाई के पूर्व मुखिया को स्पष्टीकरण का मौका दिया
जायेगा.
जिप सदस्य व प्रमुख धारा 30 से बाहर
डीडीसी के पत्र के अनुसार पंचायतीराज अधिनियम की धारा 30 के दायरे से सांसद, विधायक, जिला परिषद सदस्य व प्रमुख बाहर है. इन जनप्रतिनिधियों के लिए अलग प्रावधान है. लेकिन जनप्रतिनिधि के रुप में मुखिया का पद वैधानिक स्थिति से भिन्न है. मुखिया लोक सेवक माने जायेंगे. उनके विरुद्ध सभी कार्रवाई लोक सेवक के सदृश्य होंगे. चूंकि मुखिया अपने पंचायत के सभी विभागों के विकास कार्यो का संपादककर्ता है. इसलिए अज्ञानतावश किसी प्रकार का भ्रम नहीं होनी चाहिए.