देवघर: पारिवारिक कलह से निजात पाने के लिए लोग पंचायत के ज्यादा कोर्ट की शरण ले रहे हैं. दांपत्य जीवन में आयी खटास को खत्म करने या फिर नयी जिंदगी की शुरुआत के लिए फैमिली कोर्ट में मुकदमा दर्ज कराने और न्याय पाने की चाहत बढ़ी है. जनवरी 2014 से दिसंबर 2014 के आंकड़ों पर गौर किया जाये, तो कई तथ्य चौंकाने वाले हैं. इस कोर्ट में दर्ज हुए नये मामलों तथा लंबित पुराने मामलों का ग्राफ 1740 हो गया है.
जिसमें से करीब छह सौ मुकदमों का त्वरित निबटारा हो चुका है. फिलहाल फैमिली कोर्ट में 1140 मामलों का ट्रायल जारी है. निबटारे के आंकड़ों में देखा जाय तो हर माह करीब 50 मुकदमों का बोझ न्यायालय से कम हुआ है. ज्यादातर मुकदमों में सुलह की प्रक्रिया अपनायी गयी है जबकि कई मामलों में केस दर्ज कराने वालों ने केस नहीं लड़ने का आवेदन देकर वापसी की है. सुलह की प्रक्रिया के लिए मुकदमों को मेडियेशन सेंटर भेजा गया जहां पर आपसी सहमति बनी और केस का निष्पादन हुआ.
किस प्रकृति के मुकदमे हुए दर्ज
इस न्यायालय में विशेष तौर पर गुजारा भत्ता (मेंटनेंस), सुखद दांपत्य जीवन के लिए मेट्रीमोनियल सूट, डायवोर्स (विवाह विच्छेद), एक्सक्यूशन (इजरायवाद) के केस दाखिल हुए हैं. सबसे ज्यादा मेंटनेंस के मुकदमे दाखिल हुए हैं जबकि एक्सक्यूसन के सबसे कम मामले दर्ज हुए हैं.
गुजारा भत्ता में सबसे अधिक पति से प्रताड़ित महिलाओं व उनके बच्चों के हैं. बुजुर्ग माता-पिता अपने पुत्रों व पुत्रियों से खोर-पोश के लिए भी कई लोगों ने केस दर्ज कराये हैं. आदेश के बाद राशि नहीं देने के बाद एक्सक्यूशन केस दाखिल करने के प्रावधान हैं. इस प्रकृति के करीब दो दर्जन मामले चल रहे हैं. डायवोर्स के चर्चित मामलों में अंचलाधिकारी वंदना भारती व उनके पति शरद रंजन समेत कई के हैं. इसका ट्रायल चल रहा है.