नथुवा बोरीक गिली ले, ने मिलतो मौका देवघर :स्थान – कचहरी परिसर स्थित बरगद का पेड़. दिन के करीब एक बज रहे होंगे. ठेला पर गरमा गरम कचौड़ी व कड़कडि़या जलेबी दनादन कड़ाही से छन रहा है. आधा दर्जन छुटभैया नेता ठेला के घेर कर रखा है. लग रहा है कि छुटभैया नेताओं को ठेला की सुरक्षा में तैनात किया गया हो. ठेला से महज 10 हाथ की दूरी पर एक स्कॉर्पियो लगी है जिसमें झंडे व स्टीकर चिपका है. काला शीशा लगा है. गरम जलेबी है सर…सीसा घिसकता है और फिर जलेबियां अंदर जाते ही बंद. छुटभैया नेताओं की बत्तीसी पल-पल में झलक रही थी. ताबड़- तोड़ कचौडि़यां तिसपर सौंधी महकती सब्जियां, गरमा-गरम जलेबियां डकारे जा रहे थे. ठेलेवाला का पीसना छूटे जा रहा था. एक नेता जिसे झुनकुट बाबा की उपाधि जैसी लग रही थी. ठेठ लहजे में …अरे तोरनी नथुवा बोरीक बरद जेसन गिली ले, फिरू नाही मिलतो मौका. अपन पॉकीट गलतलो तबेन बुझातलो. अनकर चुका अनकर घी…वाला कहावत हो भयवा. एक दूसरे कुरताधारी…भोटक सुनामी रोजे थोड़े आवे हे, पांच बछरक बादेंह आतो. जीह…मुंह जुड़ाय ले. स्कॉर्पियो स्टार्ट होने लगती है. झुनकुट बाबा ठेलेवाले को इशारा देता है…अरे मंगरूआ जो बड़का भयवा तेय जाय लागलो…टकवा ले ले. नाहीं ते तोर भट्टे बैठी जातो. हमरानी सब तेय कंगाली पार्टी छिकोंह…लखपतिया बाबुक गाड़ी फुर्र..सें उड़ीये जातो. लखपतिया बाबु ठेले वाले को बिल चुकाते हैं. फिर नाक भौं सिकुड़ते हैं और चलने को आतुर होते हैं. छुटभैया नेता एक स्वर से..अबरी तोरेक मूड़ीम होतो ताज..ओके सर.
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चुनावी गपशप- कानाफूसी (कॉलम)
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