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फिर दिल ने ये कहा..

सुनील तिवारी/सीपी सिंह बोकारो : फिर दिल ने ये कहा.. यह नाम है बोकारो सेक्टर-4 सी/1204 में रहने वाली डॉ ज्वलंती मिश्र के गजल संग्रह का. इसे जारी किया है टाइम्स म्यूजिक ने. गजल को स्वर दिया है सरोज मिश्र व मुकेश तिवारी ने. डॉ मिश्र बोकारो की पहली महिला हैं जिसकी रचित गजल टाइम्स […]

सुनील तिवारी/सीपी सिंह
बोकारो : फिर दिल ने ये कहा.. यह नाम है बोकारो सेक्टर-4 सी/1204 में रहने वाली डॉ ज्वलंती मिश्र के गजल संग्रह का. इसे जारी किया है टाइम्स म्यूजिक ने. गजल को स्वर दिया है सरोज मिश्र व मुकेश तिवारी ने. डॉ मिश्र बोकारो की पहली महिला हैं जिसकी रचित गजल टाइम्स म्यूजिक ने जारी की है. इससे डॉ मिश्र सहित बोकारो का संगीत जगत गौरवान्वित है.
बचपन अयोध्या में गुजारने वाली डॉ मिश्र को लिखने का शौक परिवार से ही मिला. वह गजल के अलावा बाल गीत, भजन व किताब समीक्षा लिखती हैं, जो अधिकतर समसामयिक विषय पर केंद्रित होती है. 1992 में पहली बार इंडिया टुडे में नासिरा शर्मा की पुस्तक ‘खुदा की वापसी’ की समीक्षा छपी थी. उसके बाद लगातार उनकी रचना पत्र-पत्रिकाओं में छपती रहती है.
कक्षा नौ में लिखी थी पहली कविता : डॉ मिश्र ने कक्षा नौ में पहली कविता लिखी थी. पर शर्म के कारण अपनी कविता दोस्तों को नहीं दिखाया.
संयोग से शिक्षक की नजर कविता पर पड़ गयी. उन्होंने ने कविता को स्कूल मैगजीन में जगह दिलायी. इसके बाद लिखने का शौक जुनून बन गया. पंडित रामकृष्ण पांडेय ‘आमिल’ को गुरु मानने वाली डॉ मिश्र अपनी हर कविता को उनके लिए समर्पित करती हैं.
अरमान अभी और भी है..
डॉ मिश्र भविष्य में गजल व कविता की एक पुस्तक संग्रह निकालना चाहती हैं. बताया : किताबघर व पेंग्विन से बात चल रही है. साथ ही अपने गजलों का लोहा फिल्मी दुनिया में भी मनवाना चाहती है. बताया : उनकी हर गजल उस पर न्योछावर है, जिसने शब्दों को संचार का माध्यम बनाया. वह गालिब, वशीर बद्र, कृष्णा सोबती जैसे गजलकारों से प्रभावित है.
एमए के बाद मौलवी से सीखा उर्दू
गजल की स्थिति की जिक्र करते हुए डॉ मिश्र ने बताया : आज भाषा हिंदू व मुसलमान बन गयी है. गजल लिखने व गाने के लिए भाषा पर मजबूत पकड़ होनी चाहिए. बताया : एमए करने के बाद उर्दू सीखने के लिए मौलवी के पास गयी. मौलवी ने हंस कर मजाक उड़ाया. मौलवी की कुटिल मुस्कान के बाद इनका निश्चय और दृढ़ हो गया. इससे गजल लिखना आसान हुआ.
हर कदम मिला अपनों का साथ
डॉ मिश्र बताती है : लिखने के लिए कलम को मजबूती डॉक्टर पिता व गृहिणी मां से मिली. शादी के बाद पति ने स्याह का काम किया. अब जब भी लिखते-लिखते थकती हूं तो इकलौती बेटी हौसला बढ़ाती है. बताती है : हर रोज जो भी रचना वो करती है, रात में खाने के टेबल पर पति व बेटी उसका पोस्टमार्टम करते हैं. उसके बाद ही गजल तैयार होती हैं.
आयोध्या परिक्रमा पर लिखी कविता
वो बच्च रो रहा है भूख से, बाप घबराया है.
प्रशासन ने परिक्र मा के नाम पर कर्फ्यू लगाया है.
बस्ता लिए सभी बच्चे यूं ही उदास बैठे हैं.
उधर देखो तो गलियों में पुलिस के हंसी ठहके हैं.
गुलाबों की बहू को प्रसव की पीड़ा भारी है.
वहां देखो तो सड़कों पे, पुलिस की गश्त जारी है.
खुदा की खिदमत में लिखी कविता
ये माना की तेरे दीवाने बहुत है
कोई हमसा लाकर दिखाओ तो जाने.
न मिलने की आते है, सौ-सौ बहाने
ख्वाबों में भी न आओ तो जाने.
मोहब्बत से इनकार कब तक करोगे
जो सच है जहां को बताओ तो जाने.
फेसबुक से हुआ गायकों से संपर्क
डॉ मिश्र बताती हैं : गजल व गीत ब्लॉग पर लिखती थी. गायक सरोज मिश्र व मुकेश तिवारी की नजर गजल पर पड़ी. उन्होंने फेसबुक से ने डॉ मिश्र से संपर्क किया. डॉ मिश्र की रचित गजलों को टाइम्स म्यूजिक पर लांच करने की बात कही. शुरुआत में डॉ मिश्र को विश्वास नहीं हुआ. फिर एक दिन फोन आया कि उनके गजल को टाइम्स म्यूजिक ने स्वीकार कर लिया है.

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