27.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

परीक्षा में फेल होना जिंदगी का अंत नहीं

निराशा के भंवर से निकल खुद में भरोसा जगाएं, विफलता के बाद ही मिलती है सफलता बोकारो : परीक्षा में पास-फेल लगा रहता है. यदि बच्चा किसी कारणवश फेल हो भी जाता है, तो जिंदगी से हताश हो जाना समझदारी नहीं. निराशा के भंवर से निकल खुद में भरोसा जगाएं. हर साल फरवरी-मार्च-अप्रैल-मई में छात्रों […]

निराशा के भंवर से निकल खुद में भरोसा जगाएं, विफलता के बाद ही मिलती है सफलता

बोकारो : परीक्षा में पास-फेल लगा रहता है. यदि बच्चा किसी कारणवश फेल हो भी जाता है, तो जिंदगी से हताश हो जाना समझदारी नहीं. निराशा के भंवर से निकल खुद में भरोसा जगाएं. हर साल फरवरी-मार्च-अप्रैल-मई में छात्रों के दिलों की धड़कनें तेज होने लगती हैं. इस समय 10वीं व 12वीं यानी बोर्ड परीक्षा होने वाली होती है या फिर परीक्षा के नतीजे निकलने को होते हैं. सोमवार को दुंदीबाग बाजार के फल व्यवसायी के पुत्र ने 10वीं बोर्ड के टेंशन में आत्महत्या कर ली. परिजनों के मुताबिक वह परीक्षा को लेकर तनाव में था. परीक्षा में फेल होना जिंदगी का अंत नहीं है. परीक्षार्थी को हमेशा यह याद रखना और समझना चाहिए कि यह जीवन की अंतिम परीक्षा नहीं है. कारण, असफलता के बाद ही सफलता मिलती है.
बोर्ड परीक्षा का तनाव छात्रों पर इस तरह से सवार है कि वह आत्महत्या जैसा कदम उठाने में भी झिझक नहीं रहे हैं. दुंदीबाग बाजार की घटना इसका ताजा उदाहरण है. यह कोई पहला मामला नहीं है, जब किसी बच्चे ने परीक्षा के तनाव के चलते आत्महत्या जैसा कदम उठा लिया हो. इसके पहले भी बोकारो में परीक्षा के मौसम में इस तरह की घटना हो चुकी है. ऐसे ही कई और केस भी सामने आये हैं जब बोर्ड परीक्षा के तनाव के चलते छात्र अपनी जान गंवा रहे हैं.
झारखंड सहित सीबीएसइ 10वीं-12वीं बोर्ड परीक्षा का काउंट डाउन शुरू हो गया है. ऐसे में अभिभावकों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो गयी है. अभिभावकों को अभी अधिक से अधिक समय परीक्षार्थियों के साथ गुजारना चाहिए.
आत्मविश्वास भरने की कोशिश करें : स्कूल जाने वाले बच्चों पर उनके माता-पिता शिक्षकों का सबसे अधिक प्रभाव होता है. कुछ शिक्षक मेधावी बच्चों पर अधिक फोकस करते हैं और कमजोर पर कम. दूसरी तरफ, कुछ माता-पिता समाज में अपनी प्रतिष्ठा की बात कर बच्चे से अधिक अंक लाने की बात करते हैं. इससे भी बच्चा मानसिक दबाव में आ जाता है.
बार-बार माता-पिता की इज्जत का ख्याल उसे मानसिक तौर पर परेशान रखता है. इस तरह माता-पिता व शिक्षकों के बीच में फंसा छात्र अपनी पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पाता. इन्हीं में से कुछ बच्चे अपना आत्मविश्वास खो बैठते हैं. इसलिए बोर्ड परीक्षा व परिणाम के दौरान माता-पिता के साथ-साथ शिक्षकों को भी अलर्ट रहने की जरूरत हैं. बच्चों में हमेशा आत्मविश्वास भरने की कोशिश करें.
सहजता से बरताव करने की जरूरत
दरअसल, जब बच्चा 10वीं व 12वीं कक्षा में पहुंचता है, तब अचानक माता-पिता व शिक्षकों का दबाव उस पर बढ़ जाता है. जबकि इस उम्र में शारीरिक व मानसिक बदलावों के साथ-साथ बच्चों में हॉर्मोनल बदलाव भी हो रहे होते हैं, इसलिए उम्र के इस दौर में बच्चों के साथ ज्यादा सहजता से बरताव करने की जरूरत होती है.
पर यह बात न अध्यापक समझते हैं और न ही अभिभावक. इसी कारण, बच्चे गलत मार्ग पकड़ लेते हैं. ऐसे में चर्चा सम-सामयिक है कि कई ऐसे लोग हैं जो 10वीं या 12वीं बोर्ड में फेल कर गये और आज ऊंचे ओहदे पर कार्यरत हैं. कारण, उन्हें मालूम था कि यह जीवन की अंतिम परीक्षा नहीं है. असफलता के बाद ही सफलता मिलती हैं. उन्होंने फिर से बोर्ड परीक्षा दी और पास हुए.
जिंदगी की चुनौती का पहला चरण
बच्चों को भी यह समझना चाहिए कि 10वीं या 12वीं की परीक्षा तो जिंदगी की चुनौती का पहला चरण है. आगे तो और भी बड़ी-बड़ी परीक्षाएं आती हैं. इसलिए इस पहले चरण को पूरी मेहनत के साथ-साथ पार करें और हिम्मत न हारें. परीक्षा में पास-फेल होना लगा रहता है. इसका मतलब… अभिभावकों को विशेष समझने की जरूरत है. अभिभावक बच्चे से डाॅक्टर, इंजीनियर बनने के बजाय उम्मीद रखें कि वह अच्छी पढ़ाई करें. अभिभावक इस बात पर भी ध्यान दें कि वह अपने बच्चे को केवल उसके बेहतर भविष्य के लिए पढ़ा रहे हैं. बच्चे पर दबाव डालने के बजाय उसकी राय भी जानें. अगर बच्चा फेल हो गया है तो उस के साथ डांट-डपट करने के बजाय फिर से मेहनत करने की हिम्मत बंधायें.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें