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कोयला उद्योग: कोल इंडिया के पुनर्गठन पर लगेगी मुहर

बेरमो: नीति आयोग ने कोल इंडिया की सहायक कंपनियों को स्वतंत्र रूप से अपनी ही रणनीति और व्यापार मॉडल विकसित करने का सुझाव दिया है. आयोग का कहना है कि सभी अनुषंगी कंपनियों को स्वतंत्र कर दिया जाये. आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने सरकार को यह रिपोर्ट सौंपी थी. आयोग ने सरकार को […]

बेरमो: नीति आयोग ने कोल इंडिया की सहायक कंपनियों को स्वतंत्र रूप से अपनी ही रणनीति और व्यापार मॉडल विकसित करने का सुझाव दिया है. आयोग का कहना है कि सभी अनुषंगी कंपनियों को स्वतंत्र कर दिया जाये. आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने सरकार को यह रिपोर्ट सौंपी थी. आयोग ने सरकार को वाणिज्यिक खनन के लिए कोयला खनन क्षेत्र को मुक्त करने के लिए बाजार तंत्र का उपयोग करने का सुझाव दिया है. गत 27 अगस्त को नीति आयोग ने अपना सुझाव व रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी. इसके बाद से कोल अधिकारियों के साथ भी विचार-विमर्श शुरू कर दिया है.
डियोलाइट कंपनी ने की थी स्टडी : कोल इंडिया के एकाधिकार को तोड़ने के लिए हर स्तर से तैयारी शुरू कर दी गयी है. कोल इंडिया के पुनर्गठन को लेकर मनमोहन सरकार के समय तैयारियों को काफी तेज कर दिया गया था. तीन वर्ष पूर्व कोयला मंत्रालय ने कोल इंडिया की सभी अनुषंगी कंपनियों का अध्ययन कराया था. अध्ययन का जिम्मा इंग्लैंड की डियोलाइट कंपनी को दिया गया था. कंपनी के प्रतिनिधियों ने 27 अक्तूबर से 2 नवंबर 2014 तक सीसीएल व सीएमपीडीआइ का अध्ययन किया था. प्रबंधन का पक्ष भी जानने की कोशिश की.
वर्षों से चल रहा निजीकरण का प्रयास : कोल इंडिया के पुनर्गठन के प्रयास के विरोध में कोल सेक्टर के मान्यता प्राप्त श्रमिक संगठन एटक, एचएमएस, बीएमएस व सीटू ने उस वक्त आंदोलन भी किया था. सीसीएल के हर एरिया व परियोजना में पीट मीटिंग, जुलूस के अलावा भारत सरकार व डियोलाइट कंपनी का पुतला दहन भी किया गया. एटक नेता लखनलाल महतो कहते हैं कि सरकार वर्षों से कोल इंडिया के निजीकरण की कोशिश में है और यह पुनर्गठन भी उसी का एक हिस्सा था. सरकार की योजना कोल इंडिया की केंद्रीयता समाप्त करने की है. उसके बाद सभी कंपनियों को और छोटे टुकड़ों में बांटा जाये तथा आसानी से निजी हाथों में सौंप दिया जाये. अब नीति आयोग ने भी कोल इंडिया के पुनर्गठन का सुझा‍व दिया है.
योजना आयोग ने दिया था सुझाव : योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने कहा था कि कोल इंडिया के मौजूदा स्वरूप में आवश्यकतानुसार कोयला उत्पादन नहीं हो रहा है. इसलिए कोल इंडिया की सभी अनुषंगी कंपनियों का स्वतंत्र अस्तित्व होना चाहिए. ऐसा होने से प्रतियोगिता का माहौल बनेगा और उत्पादन में वृद्धि होगी. इसलिए योजना आयोग ने कोल इंडिया के पुनर्गठन का सुझाव दिया था. मंत्रालय ने कंपनी का पुनर्गठन कर आपूर्ति और मांग के गैप को समाप्त करने का निर्णय लिया. एक दशक पहले टीएल शंकर के नेतृत्व में गठित कमेटी ने कहा था कि कोल इंडिया को तोड़कर सभी कंपनियों को स्वतंत्र कर दिया जाये. इससे कंपनियों में प्रतियोगिता होगी तथा उत्पादन बढ़ेगा. कोई भी कंपनी किसी भी दूसरी कंपनी के कमांड एरिया में कोल ब्लॉक ले सकता है यानी कमांड एरिया नाम की चीज नहीं रह जायेगी.
कुल छह स्वतंत्र निदेशक
जानकारी के अनुसार वर्तमान में कोल इंडिया में कुल छह स्वतंत्र निदेशक हैं. साथ ही देश की सभी मिनी रत्न कंपनियों में स्वतंत्र निदेशक बहाल किये गये है. ये निदेशक कंपनी के अनावश्यक खर्च पर रोक लगा पायेंगे. फिलहाल कोल इंडिया सीएसआर मद में करोड़ों रुपये खर्च कर रहा है. हो सकता है आनेवाले समय में इस फंड पर रोक लग जाये. फिलहाल कोल इंडिया की जमा पूंजी 62 हजार करोड़ में से 58 हजार करोड़ रुपया सरकार ने ले लिया है. साथ ही कोल इंडिया का 20 फीसदी विनिवेश भी किया जा चुका है.
जेबीसीसीआइ के अस्तित्व पर ग्रहण
कोल इंडिया के पुनर्गठन साथ ही जेबीसीसीआइ का अस्तित्व समाप्त हो जायेगा. जेबीसीसीआइ के नहीं रहने से कोलकर्मियों का वेतन समझौता नहीं होगा. जब वेज समझौता नहीं होगा तो मजदूरों का सर्विस कंडिशन भी नहीं रहेगा. कोल इंडिया का पुनर्गठन होने के बाद हर कंपनी का अपना अलग-अलग वेज निर्धारण होगा. ट्रेड यूनियन का पूरे कोल इंडिया स्तर पर एकाधिकार समाप्त हो जायेगा तो एक वेज भी नहीं होगा. मजदूरों के फीमेल वीआरएस, डेथ केस, मेडिकल अनफिट के नाम पर बहाली बंद होगी जो फिलहाल शुरू कर दिया गया है. विस्थापितों का मामला भी ठंडे बस्ते में चला जायेगा.

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