7.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

झारखंड में राजनीतिक हालात से त्रस्‍त आइएएस ने फेसबुक पर बयां की पीड़ा

झारखंड में राजनेताओं ने जैसी उच्छृंखल, अराजक और असंवैधानिक कार्यपद्धति विकसित की है, उससे सही अफसर को काम करने का अवसर नहीं मिल पा रहा है. वंदना डाडेल की गिनती एक अच्छी वरीय आइएएस अधिकारी के रूप में होती है. झारखंड में जो हालात पैदा हो गये हैं, उसके बारे में उन्होंने फेसबुक पर लिखा […]

झारखंड में राजनेताओं ने जैसी उच्छृंखल, अराजक और असंवैधानिक कार्यपद्धति विकसित की है, उससे सही अफसर को काम करने का अवसर नहीं मिल पा रहा है. वंदना डाडेल की गिनती एक अच्छी वरीय आइएएस अधिकारी के

रूप में होती है. झारखंड में जो हालात पैदा हो गये हैं, उसके बारे में उन्होंने फेसबुक पर लिखा है. यह पोस्ट भले ही उन्होंने अपने मित्रों के लिए किया हो, पर प्रभात खबर अंगरेजी में किये गये पोस्ट का हिंदी अनुवाद छाप रहा है, ताकि उन हालातों की जानकारी पाठकों को भी हो.

रांची: उद्योग सचिव का प्रभार छोड़ने के बाद मैं पदस्थापन के लिए प्रतीक्षारत हो जाऊंगी. बेशक, हो सकता है कि यह एक तकनीकी गड़बड़ी है, जिसे खेल विभाग (मेरा अतिरिक्त प्रभार) में मेरे पदस्थापन से संबंधित शुद्धिपत्र जारी कर ठीक किया जा सकता है. लेकिन, मैं सोच रही हूं कि चार महीने पहले तो मेरी पोस्टिंग उद्योग विभाग में की गयी थी. केवल इसलिए कि वह पद खाली नहीं रहे, मैं वहां की संरक्षक बना दी गयी थी. छोटा सुंदर होता है, जैसा वह कहते हैं. और झारखंड जैसे छोटे काडर स्ट्रेंथ वाली जगह पर बहुत आसानी और खूबसूरती के साथ प्रबंधन किया जा सकता है. हर अफसर के कमजोर और मजबूत पक्ष को सभी जानते हैं. हमारे बीच के साख वालों (शायद उनकी कमी है) ने तो यही स्थापित किया है. तो फिर क्यों इतने सारे अफसरों को अलग-थलग रखा जाता है, उन्हें हतोत्साहित किया जाता है? क्यों उनसे आधी-अधूरी क्षमता से काम लिया जाता है (जबकि कुछ दूसरों पर काम का अतिरिक्त बोझ डाल दिया जाता है)?

एक समय था, जब मैं मुख्य सचिव और कार्मिक सचिव को पत्र लिख कर अपना विरोध जताया करती थी. इस विश्वास के साथ कि कोई तो मेरी बात सुनेगा. जब मुझे जान-बूझ कर जिलों की पोस्टिंग से बाहर रखा जाता था, तब मैंने चिट्ठी लिखी. जब विकल्प मौजूद रहने के बावजूद मुझे राज्य के सबसे दूर-दराज के जिले में पदस्थापित किया गया, तब मैंने अपना आधिकारिक विरोध दर्ज कराया. लेकिन अब, सचिव के रूप में प्रोन्नति मिलने के बाद भी एक साल तक मुझे अपने पद से अधीनस्थ पद पर काम कराया गया. काम जारी रहे, सिर्फ इसी वजह से मैंने अधीनस्थ पद पर काम करना स्वीकार कर लिया.

शायद ऐसे ही हालात में लोग धीरे-धीरे इस्तीफा देने पर मजबूर हो जाते हैं. न तो मैं अन्याय सहने वाली पहली अधिकारी हूं और ना ही इस व्यवस्था से आक्रोशित अंतिम अफसर.

बेशक कुछ शुभचिंतक मुझे हालात पर चिंतन करने की सलाह देंगे. क्या मेरे साथ ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि मैं आदिवासी हूं? क्या इसलिए कि मैं एक औरत हूं ? या फिर इसलिए कि मैं अल्पसंख्यक समुदाय से आती हूं? कहीं इसलिए तो नहीं कि ये सारी बातें मुझ पर लागू होती हैं. या फिर मेरे साथ ऐसा करने की वजह मेरा खुद को रिजर्व रखना और ऑफिशियल पार्टियों और गेट टू गेदर्स में शिरकत नहीं करना है. मुझे ऑफिशियल गॉसिप की भी सूचना नहीं रहने और बाजार के मुताबिक चापलूसी का गुण नहीं रहना भी मेरी स्थिति का कारण हो सकता है. या फिर शायद कोई नौकरशाह या राजनीतिक गॉडफादर नहीं होने के कारण मेरे साथ ऐसा किया जा रहा है.

हालांकि इन सारी बातों से मुझे, मेरे परिवार या दोस्तों को कोई फर्क नहीं पड़ता है. मेरे पिता को यह कभी पता नहीं होता कि मैं किस पद पर हूं. मैं अपने बच्चों के लिए उनकी मां (जिसको हिंदी में ढेर सारा होमवर्क करना होता है) हूं. व्यक्तिगत रूप से मैं वीआरएस लेने के लिए एक मजबूत कारण की तलाश (शायद हमेशा) में हूं. यह संजय (मेरे पति) हैं, जो मुझे हर बार पटरियों से वापस खींच लाते हैं. मैं खुद से सवाल पूछती, अन्याय सहना और नहीं बोलना जुर्म में भागीदारी नहीं है? आप बिना किसी गलती या कारण के पद से हटाये जाते हैं, सिर्फ इसी वजह से कि वह जानते हैं कि आप विरोध नहीं करेंगे. आपके पास आवाज नहीं है. आपकी कोई अहमियत नहीं है. अन्याय के खिलाफ बोलना मेरा कर्तव्य है. लोग यह जानें कि चीजें सही, निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से नहीं चल रही हैं. और काम करने की मूलभूत नैतिकता, जिसकी हम वकालत करते हैं उसके बिल्कुल विपरीत है.

रांची के आयुक्त पद पर रहते हुए मैंने आदिवासी भूमि हस्तांतरण, आदिवासी जमीन बंटवारा और सरकारी जमीन की लीज में गड़बड़ियों के बारे में सरकार को रिपोर्ट करना शुरू किया. जमीन हस्तांतरण के चुनिंदा मामलों की सीबीआइ जांच की सिफारिश भी की. मैं जानती थी कि मुझे पद से हटा दिया जायेगा. और मुङो हटा भी दिया गया. तब मैं हटाने का कारण जानती थी. आज मैं मालूम करना चाहती हूं कि मुझे केवल चार महीनों में ही उद्योग विभाग से क्यों हटा दिया गया. पर, मुङो यह अधिकार नहीं है. सरकार के पास हमें जहां चाहे, वहां पदस्थापित करने का अधिकार है. बस, मामला यहीं खत्म हो जाता है.

आज सुबह मैंने भगवान से वादा किया है कि मैं अब कोई शिकायत नहीं करूंगी. ईश्वर पर पूरी आस्था रखूंगी. आखिर वही हमारी लड़ाई लड़ते हैं. यहां बहुत सारी चीजें हैं, जिनको करने का इंतजार मैं लंबे समय से कर रही थी. बच्चों के साथ ज्यादा समय बिताना, आदिवासी भाषा सीखना, अपने अनुभवों को दर्ज करना, नियमित रूप से बैडमिंटन खेलना, फिर से पियानो के क्लास शुरू करना. ज्यादा पढ़ना. जिन बातों के लिए मैं समय निकालना चाहती हूं, उनकी सूची अंतहीन है. और अब ऑफिस के कम दायित्व के कारण उन चीजों को करने का मुझे ज्यादा समय मिलेगा. पर, मैं भगवान से किया अपना वादा नहीं निभा सकी. मैं अपनी भावनाएं अपने फेसबुक दोस्तों तक पहुंचाने के लालच से नहीं बच सकी.

मैंने यह सब किसी को नाराज करने या किसी की भावना को चोट पहुंचाने के लिए नहीं लिखा. मैं पहले भी इस तरह की परिस्थितियों का सामना कर चुकी हूं. रोकने का भरसक प्रयास किया है. कड़ी प्रतिक्रिया भी व्यक्त कर चुकी हूं. इसी वजह से मैं आज शांति से रह रही हूं. बुरे समय में भी मुस्करा रही हूं. परिस्थितियों को फेसबुक पर बता रही हूं. मुझे पता है कि भगवान मुझे खराब रास्ते को पार करने के लिए लाठी देगा. मैं अपने जीवन में ईश्वरीय शक्ति को तलाशने की कोशिश कर रही हूं. ईश्वर को धन्यवाद कि उन्होंने मुझे सुरक्षित रखा और मुझे आशीर्वाद दिया. ईश्वर ही मुझे घर जाने का रास्ता बतायेंगे.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें