रांची: पिछले कुछ वर्षो में झारखंड में आनेवाले कई युवा आइएएस और आइपीएस अधिकारियों पर भ्रष्टाचार में लिप्त रहने, अवैध तरीक से पैसा कमाने, पक्षपात करने के आरोप लग रहे हैं. इनमें से कुछ अधिकारियों पर राज्य के ताकतवर राजनीतिज्ञों का भी हाथ है. इनमें से कुछ को महत्वपूर्ण पद भी मिलने लगे हैं.
पत्थर और कोयले के गढ़ में पदस्थापित एक उपायुक्त पर मनरेगा के लिए मिली राशि हड़प लेने का आरोप है. उक्त अधिकारी ने पांच करोड़ रुपये की लागत पर जिले में पौधारोपण कार्यक्रम चलाया. गड़बड़ी की. शिकायत मिलने पर सरकार ने मामले की जांच करायी.
मंत्री की आड़ में बचे
जांच में पता चला कि पांच करोड़ रुपये के खर्च से पूरी की गयी योजना में केवल चार ही पौधे लगे. उन पर कार्यवाही की अनुशंसा हुई. एक मंत्री की ओट लेकर उन्होंने अपनी जान बचायी. इस अधिकारी के बारे में सीबीआइ राज्य सरकार को पहले ही आगाह कर चुकी है.
संपत्ति खरीद के सबूत मिले
एक मामले की जांच के दौरान सीबीआइ को झारखंड में पदस्थापित युवा और बड़े अधिकारी के परिवार के नाम पर बड़ी संपत्ति खरीद के सबूत मिले. सीबीआइ ने झारखंड सरकार को पत्र लिख कर उसके बारे में सूचित किया. हालांकि सीबीआइ के उस पत्र को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है. इसी तरह के कई अन्य मामले भी सामने आ रहे हैं.
एनजीओ के सहारे पैसे की बंदरबांट
एक अन्य युवा अधिकारी ने मनरेगा का पैसा एनजीओ को दे दिया. सरकार के पास शिकायत पहुंची. जांच हुई. मनरेगा के नाम पर बड़ी गड़बड़ी का पर्दाफाश हुआ. मालूम हुआ कि अधिकारी ने जिस दिन योजना को स्वीकृत किया, उसी दिन पैसा देने के लिए एनजीओ का चयन किया. बिना देर किये उसी दिन अग्रिम भी दे दिया गया. राशि की बंदरबांट की. उस अधिकारी पर कार्रवाई की अनुशंसा हुई. फाइल अब तक सरकार के पास पेंडिंग है. एक अन्य अधिकारी पर गलत तरीके से इंजीनियरों को अग्रिम देने का आरोप है. अग्रिम लेने वाले इंजीनियर निगरानी जांच का सामना कर रहे हैं. हालांकि सरकार ने अग्रिम देने वाले अधिकारी पर कोई कार्रवाई नहीं की.
छापामारी कर तय करते हैं रेट
नक्सल प्रभावित जिले के एक एसपी छापामारी कर अपना रेट तय करते हैं. उनके जिले से होकर राज्य का कोयला बनारस की मंडी तक पहुंचता है. उन्होंने ट्रांसपोटरों और कोयला व्यवसायियों के यहां छापामारी कर उनको डराया. फिर अपना रेट निर्धारित कर चोरी की इजाजत दे दी. एक थानेदार ने बगावत कर कोयला चोरी रोकने का प्रयास किया. एसपी साहब ने उनको तुरंत विदा कर दिया. उनके खौफ से कई कनीय पुलिस अफसरों ने खुद की पोस्टिंग लाइन में करा ली. कोयले की कालाबाजारी में उनकी बादशाहत के किस्से सरकार तक भी पहुंची. मामले में पुलिस मुख्यालय ने भी हस्तक्षेप किया. जिले के उपायुक्त ने भी कार्रवाई करने की चेतावनी दे डाली. उन एसपी साहब की जमीन कारोबारियों और स्थानीय नेताओं से ऐसी नजदीकी की कहानियां भी खूब चर्चित हैं.
सेटलमेंट करने के लिए पकड़ते हैं गड़बड़ियां
उग्रवाद ग्रस्त जिले में पदस्थापन के दौरान एक अधिकारी ने घूम-घूम कर स्कूलों से लेकर आंगनबाड़ी और पीएचसी तक का निरीक्षण किया. खूब गड़बड़ियां पकड़ी. उसके बाद सब से मिल कर मामले को रफा-दफा कर लिया. निरीक्षण के दौरान पकड़ी गयी गड़बड़ी के लिए किसी पर कार्रवाई नहीं की. आइएपी का पैसा मन पसंद इंजीनियरों में बांट दिया. आइएपी के पैसे से एसपी और डीएफओ के साथ मिल कर योजना स्वीकृत करने और एजेंसी चुनने के लिए नियमों को ताक पर रख दिया. अकेले ही योजना और उसे पूरी करने के लिए एजेंसी का चयन कर लिया. गड़बड़ियां पकड़ में आने के बाद उनको जिले से हटा दिया भी गया. अपनी राजनीतिक और आर्थिक पहुंच के कारण एक बार फिर उनका जिले का मालिक बनाने की तैयारी चल रही है.
रिश्तेदारों से काम करा कमाते हैं मुनाफा
एक बड़े जिले में पदस्थापन के दौरान युवा आइपीएस जमीन के धंधे में शामिल हो गये हैं. कागज पर जमीन से जुड़े सभी कारोबार उनके रिश्तेदार करते थे. जमीन पर कब्जा दिलाने और दूसरी समस्याओं को निपटाने का काम वह खुद करते थे. रिश्तेदार के माध्यम से मन-पसंद लोगों को बड़े-बड़े ठेके दिलाने का काम भी किया. एक मामले की जांच के दौरान आयकर विभाग को अफसर के रिश्तेदार के कारनामों से संबंधित दस्तावेज मिले. राजनीतिक पहुंच की वजह से रिश्तेदार को मदद करने के मामले में अफसर की भूमिका की जांच दबायी गयी. जमीन का कारोबार करने वाली एक दूसरी कंपनी से भी इनके मधुर संबंध रहे. उन्होंने अपने पद का उपयोग उस कंपनी को जमीन पर कब्जा दिलाने के लिए भी किया.