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कॉपी जांचे बिना टॉपर को कर दिया फेल

प्लस टू शिक्षक नियुक्ति परीक्षा रोल नंबर को बताया गलत नहीं दिखा रहे थे उत्तर पुस्तिका जांच हुई, तो टॉपर निकले सुबोध रांची : तमाड़ के सलगाडीह निवासी सुबोध चंद्र महतो अब समझ नहीं पा रहे हैं कि किसके पास न्याय के लिए फरियाद करें. वे झारखंड के सिस्टम फेल के शिकार हैं. अब तक […]

प्लस टू शिक्षक नियुक्ति परीक्षा

रोल नंबर को बताया गलत

नहीं दिखा रहे थे उत्तर पुस्तिका

जांच हुई, तो टॉपर निकले सुबोध

रांची : तमाड़ के सलगाडीह निवासी सुबोध चंद्र महतो अब समझ नहीं पा रहे हैं कि किसके पास न्याय के लिए फरियाद करें. वे झारखंड के सिस्टम फेल के शिकार हैं. अब तक शिक्षक बन कर नौकरी कर रहे होते, पर व्यवस्था की मार ऐसी कि नौकरी के लिए मुख्यमंत्री से लेकर हर दरबार में गुहार लगा रहे हैं. ऐसी बात नहीं कि सुबोध मुफ्त में या अनुकंपा में नौकरी मांग रहे हों. उन्होंने 2012 में प्लस टू शिक्षकों की नियुक्ति के लिए परीक्षा दी थी. रिजल्ट निकला, तो उनका नाम नहीं था. उन्हें फेल बताया गया.

सुबोध को खुद पर भरोसा था कि उनका नाम सफल छात्रों में होना चाहिए. उन्होंने झारखंड एकेडमिक काउंसिल (जैक) से कॉपी दिखाने की मांग की. उनकी बात नहीं सुनी गयी. वह हताश नहीं हुए. आरटीआइ से सूचना मांगी. गलत सूचना दी गयी. फिर वह अपील में गये. तब जाकर पता चला कि उनकी कॉपी तो जांची ही नहीं गयी थी और उन्हें फेल करार दिया गया था. बाद में जैक ने गलती स्वीकारी और नौकरी देने की अनुशंसा की. अनुशंसा लेकर वह घूम रहे हैं. आज तक नौकरी नहीं मिली. यह है झारखंड में काम करने का तरीका, बेरोजगारों के साथ मजाक का उदाहरण. राज्य में ऐसे और भी छात्र हो सकते हैं, जिनके साथ ऐसा अन्याय हुआ हो.

कौन हैं सुबोध

सुबोध चंद्र महतो तमाड़ प्रखंड के सलगाडीह निवासी हैं. सर्व शिक्षा अभियान के तहत विषयविशेषज्ञ की नौकरी कर रहे थे. सुबोध के पिता रामेश्वर महतो प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे. सुबोध ने नौकरी छोड़ प्लस टू शिक्षक नियुक्ति परीक्षा की तैयारी शुरू की. जीव विज्ञान से परीक्षा में शामिल हुए. जब उन्हें फेल कह दिया गया, तो सूचना के अधिकार के तहत जैक से उन्होंने आठ बिंदुओं पर जानकारी मांगी.

रोल नंबर को बताया गलत

जैक ने आठ प्रश्न में से दो की जानकारी दी. पांच प्रश्न के बारे में कहा कि सूचना नहीं दी जा सकती है. जबकि प्राप्तांक बताने से यह कहते हुए इनकार कर दिया गया कि विद्यार्थी ने अपना रोल नंबर गलत लिखा था. जैक ने जवाब में बताया कि दोनों पेपर में गलत रोल नंबर होने के कारण अंक नहीं बताया जा सकता है.

नहीं दिखा रहे थे उत्तर पुस्तिका

सुबोध ने जैक से अपने दो विषयों की ओएमआर शीट (उत्तर पुस्तिका) दिखाने को कहा. जैक उत्तरपुस्तिका दिखाने को तैयार नहीं था. सुबोध ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला दिया, जैक के अधिकारियों को सुप्रीम कोर्ट के आदेश की कॉपी दिखायी. इसके बाद सुबोध को उत्तर पुस्तिका दिखायी गयी. तब सुबोध को पता चला कि उनकी कॉपी की जांच नहीं हुई है.

जांच हुई, तो टॉपर निकले सुबोध

सूचना के अधिकार के तहत पूरी सूचना नहीं मिलने पर सुबोध ने प्रथम अपील की. अपील में उन्हें दोनों विषयों का अंक बताया गया. सुबोध को प्रथम पत्र में 59.50 द्वितीय पत्र में 218 अंक प्राप्त हुए थे. सुबोध एमबीसी (बीसी वन) वर्ग में आते हैं. बीसी वन की नियुक्ति के लिए कट ऑफ मार्क् 206 था. सुबोध अपने वर्ग में राज्य में दूसरे टॉपर बने. पूरे राज्य में मात्र एक विद्यार्थी को उनसे अधिक अंक मिला है.

मुख्यमंत्री की भी नहीं सुनता शिक्षा विभाग

जैक की अनुशंसा के चार माह बाद भी नियुक्ति पत्र नहीं मिलने के कारण सुबोध ने मुख्यमंत्री की जन शिकायत कोषांग में शिकायत की. जन शिकायत कोषांग के उप सचिव सह प्रभारी पदाधिकारी मनोहर मरांडी ने शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव को पत्र लिख कर 15 दिनों के अंदर मामले पर कार्रवाई कर मुख्यमंत्री कार्यालय को सूचना देने को कहा. जन शिकायत कोषांग की ओर से शिक्षा विभाग को दो पत्र लिखे गये, पर शिक्षा विभाग ने 17 दिसंबर तक सीएम सचिवालय को कोई जवाब नहीं दिया था.

ये हैं सलगाडीह के सुबोध चंद्र महतो

हार नहीं मानी सुबोध ने

सुबोध ने बताया कि रिजल्ट देख कर उन्हें विश्वास नहीं हुआ कि वह फेल हो गये हैं. उन्हें पूरा विश्वास था कि वह जरूर सफल होंगे. इसके बाद सुबोध ने अपने रिजल्ट के लिए लड़ाई शुरू की. सूचना के अधिकार का सहारा लिया. सुबोध ने बताया कि शुरू में कहा गया कि तीन बार उनकी कॉपी की जांच की गयी है. उनका रोल नंबर गलत है. इसके बाद जब ओएमआर शीट देखी गयी, तो पता चला कि उनकी कॉपी की जांच नहीं हुई है. सुबोध ने बताया कि वर्तमान अध्यक्ष डॉ आनंद भूषण ने उनकी काफी मदद की. उनके प्रयास से ही रिजल्ट जारी हो सका. प्रथम अपील में 15 से अधिक बार बुलाया गया. इसके बाद विधि विशेषज्ञ की राय ली गयी. फिर कॉपी की जांच हुई. वह सफल हुए. सफल होने के बाद भी नियुक्ति के लिए भटक रहे हैं. सुबोध कहते हैं कि अगर वह हार मान कर बैठ गये रहते, तो वह नौकरी के हकदार भी बन पाते.

सीएम की भी नहीं सुनता शिक्षा विभाग

अब नियुक्ति के लिए भटक रहे

उत्तर पुस्तिका की जांच होने के बाद जैक ने सुबोध की नियुक्ति की अनुशंसा मानव संसाधन विकास विभाग के निदेशक (माध्यमिक शिक्षा) से की. जैक ने जुलाई 2013 में नियुक्ति की अनुशंसा की थी. चार माह बाद भी नियुक्ति नहीं हुई. सुबोध शिक्षा विभाग के अधिकारियों के कार्यालय का चक्कर लगा रहे हैं. कोई उनकी सुनने को तैयार नहीं है. सुबोध ने बताया कि विभाग के अधिकारी कह रहे हैं कि प्लस टू उवि में जीव विज्ञान की सीट नहीं है.

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