रांची: राज्य में बालू घाटों की नीलामी नहीं रुकेगी. सभी घाटों की नीलामी होने और कंपनियों को पर्यावरण क्लीयरेंस लेने तक बालू का उठाव पहले की तरह ही होगा. इस दौरान सरकार बालू उठानेवालों पर कार्रवाई नहीं करेगी.
ग्रामीणों को बालू का उठाव करने दिया जायेगा. 15 दिनों में सभी जिलों में बालू घाटों की नीलामी कर दी जायेगी. गुरुवार को हुई झारखंड कैबिनेट की बैठक के दौरान यह तय किया गया. हालांकि बैठक के बाद इसकी कोई औपचारिक घोषणा नहीं की गयी. पर बातचीत के दौरान वित्त मंत्री राजेंद्र सिंह ने कहा : अधिकारियों को नीलामी प्रक्रिया आरंभ करने का निर्देश दिया गया. सहमति बनी कि वैकल्पिक व्यवस्था के तहत बालू का उठाव पूर्व की तरह जारी रहेगा.
गंभीरता से हुई चर्चा
राजेंद्र सिंह ने बताया : बैठक में बालू को लेकर काफी गंभीरता से चर्चा हुई. मंत्रियों ने इस बात पर चिंता जतायी कि दो लाख से अधिक लोग बेरोजगार हो गये हैं. निर्माण कार्य रुक गया है. अधिकारियों से इसका रास्ता निकालने के लिए सुझाव मांगा गया.
अधिकारियों ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश के मुताबिक बालू घाटों के लिए पर्यावरण स्वीकृति लेना अनिवार्य कर दिया गया है. बैठक में बताया गया कि छह जिलों में पूरे और चार जिलों में कुछ घाटों की नीलामी हो चुकी है. 14 जिलों में नीलामी बाकी है. इसके बाद अधिकारियों को नीलामी प्रक्रिया आरंभ करने का निर्देश दिया गया. सहमति बनी कि वैकल्पिक व्यवस्था के तहत बालू का उठाव पूर्व की तरह जारी रहेगा.
पर्यावरण स्वीकृति का आवेदन तत्काल देना होगा
सूत्रों ने बताया कि कैबिनेट की बैठक के दौरान इस बात की भी सहमति बनी कि जिन इलाकों में बालू घाटों की नीलामी हो चुकी है, वहां के लिए संबंधित कंपनियों को पर्यावरण स्वीकृति का आवेदन तत्काल देना होगा. सरकार पर्यावरण स्वीकृति के लिए बनी कमेटी से भी मामलों का त्वरित निष्पादन करने का आग्रह करेगी, ताकि निर्माण कार्यो में बालू की कमी न हो.
बालू को लेकर मुखर हुए मंत्री
– अंदर की बात
कैबिनेट की बैठक निर्धारित समय से आधा घंटा विलंब से आरंभ हुई. उस समय कोई एजेंडा नहीं था. मंत्रियों ने बालू पर चर्चा छेड़ दी. सबसे पहले ददई दुबे ने सरकार को घेरा, कहा : ऐसी क्या विवशता है, जो सरकार बालू की नीलामी पर अड़ी हुई है. इसके बाद अन्नपूर्णा देवी ने भी कहा : सरकार को त्वरित निर्णय लेना चाहिए. इससे जनता के बीच सरकार की फजीहत हो रही है. गरीब मजदूर बेरोजगार हो गये हैं. राजेंद्र सिंह ने कहा : कोई ठोस पहल करनी चाहिए. इसके बाद मुख्यमंत्री ने अधिकारियों से बात की. अधिकारियों का कहना था कि सरकार को ही इसमें निर्णय लेना होगा. काफी देर तक इस पर चर्चा होती रही. इधर ददई दुबे इस बात पर अड़े हुए थे कि पंचायतों को ही बालू घाटों की नीलामी का अधिकार मिलना चाहिए. राजेंद्र सिंह ने मामले को शांत कराया, उन्होंने कहा कि फिलहाल पूर्व की तरह बालू का उठाव होने दिया जाये. नीलामी की प्रक्रिया भी चले. कोर्ट में भी मामला है. कोर्ट के आदेश का भी इंतजार किया जाना चाहिए.
इधर झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन ने कहा ग्राम प्रधानों के हवाले किये जायें बालू घाट
झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन ने कहा है कि राज्य के सभी बालू घाट ग्राम प्रधानों के अधीन किये जाने चाहिए. ऐसा करने से किसी प्रकार की समस्या नहीं होगी. सरकार को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए. शिबू सोरेन गुरुवार को चितरा में पत्रकारों से बात कर रहे थे. वह यहां विधानसभा अध्यक्ष शशांक शेखर भोक्ता के आवास पर शादी समारोह में शामिल होने आये थे. उन्होंने कहा : बालू घाट पंचायतों के अधीन रहेगा, तो उसका दोहन कम होगा. स्थानीय लोगों को इसका लाभ मिलेगा.
रिपोर्ट पर खान निदेशक को आपत्ति
प्रभात खबर में 28 नवंबर के अंक में बालू से संबंधित छपी खबर पर खान निदेशक ने अपना पक्ष भेजा है. साथ में तथ्यों पर भी सवाल उठाया है. प्रभात खबर को आइपीआरडी के हवाले से भेजे गये पत्र में खान निदेशक बीबी सिंह ने लिखा है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने 27.11.2013 को ही संचिका पर लिखित आदेश दे दिया था. इसमें पूर्व के मौखिक आदेश को संपुष्ट करते हुए सभी जिलों को बालू का अवैध उत्खनन रोकने को कहा गया था, जबकि प्रभात खबर ने अपनी रिपोर्ट में मौखिक आदेश का जिक्र किया है. खान निदेशक के अनुसार, मुख्यमंत्री ने फाइल पर ही लिख दिया था कि बंदोबस्ती की प्रक्रिया को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित रखना राजस्व हित में नहीं होगा. ख़ान निदेशक ने दो हजार करोड़ रुपये राज्य से बाहर जाने के आंकड़े को भी भ्रामक बताया है. उन्होंने पूछा है कि किस सरकारी दस्तावेज के हवाले से ये आंकड़े आये हैं. उन्होंने 28 नवंबर के कैबिनेट में मामले को उठाने की खबर पर भी सवाल खड़ा करते हुए लिखा है कि विभाग द्वारा इस विषय से संबंधित कोई भी प्रस्ताव अथवा संचिका मंत्रिमंडल सचिवालय एवं समन्वय विभाग को मंत्रिपरिषद के निर्णय हेतु नहीं भेजी गयी है.
संवाददाता का जवाब
हमने खबर में छापा कि बालूघाट की नीलामी पर रोक हटाने संबंधी आदेश मौखिक है. किसी अधिकारी ने इस बात की देर रात तक पुष्टि नहीं की कि मुख्यमंत्री ने लिखित आदेश दिया है.
यह जानकारी आज मिली कि मुख्यमंत्री ने लिखित आदेश भी दे दिया है. इसलिए यह चूक हमसे हुई है. इसे हम स्वीकार करते हैं. जिस प्रकार बालू घाटों की नीलामी स्थगित करने संबंधी आदेश पर सूचना एवं जनसंपर्क विभाग ने प्रेस विज्ञप्ति (25 अक्तूबर को) जारी की थी, उसी प्रकार नीलामी आरंभ करने के आदेश पर भी विज्ञप्ति जारी कर सूचना सार्वजनिक नहीं की गयी.
ऐसी स्थिति में हमें अपने स्त्रोतों पर भरोसा करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. जहां तक दो हजार करोड़ रुपये झारखंड से बाहर भेजने के आधार का सवाल है, पूरा हिसाब-किताब (अनुमानित) रिपोर्ट में ही लिखा है. यह आंकड़ा अनुमानित ही होगा, ट्रक एसोसिएशन, बालू कारोबारी इस आंकड़े के मुख्य आधार हैं. खुद खान विभाग के पास भी शायद यह आंकड़ा नहीं है कि राज्य में कितने ट्रकों में, कितने ट्रैक्टरों में बालू की ढुलाई होती है. जहां तक दर का सवाल है, वह वर्तमान दर पर आधारित है. अखबार ने सिर्फ खबर छापी है. यह कहीं नहीं लिखा कि यह राज्य हित में नहीं है. कैबिनेट में प्रस्ताव की चर्चा कहीं नहीं लिखी गयी थी. चर्चा होगी, यह बात मंत्रियों ने कही थी और 28 नवंबर को जब कैबिनेट की बैठक हुई, तो इसमें बालू का मुद्दा उठा. चर्चा भी हुई. कैबिनेट सचिव जेबी तुबिद ने भी अपनी ब्रीफिंग में कहा कि बालू पर चर्चा हुई थी, पर कोई निर्णय नहीं हुआ है.