रांची: माता- पिता का प्यार नहीं मिलना और घर जाने से बचने के लिए विदिशा ने जान दी थी. यह निष्कर्ष डीएसपी आनंद जोसेफ तिग्गा की सुपरविजन रिपोर्ट का है.
डीएसपी ने रिपोर्ट में लिखा है कि विदिशा पहले चंचल लड़की थी, लेकिन वर्ष 2012 में बीमार पड़ने और अपेंडिक्स के ऑपरेशन के बाद वह निराश रहने लगी थी. विदिशा 16.08.2013 और 04. 09. 2013 को बीमार पड़ने के बाद घर गयी. वापस आने के बाद वह उदास रहने लगी थी. मामले से जुड़े लोगों का बयान लेने के बाद डीएसपी ने अपने निष्कर्ष में लिखा है कि विदिशा को घरवालों का प्यार नहीं मिलता था. इस कारण वह घर जाना नहीं चाहती थी. इस बात को लेकर वह अपने आप में ग्लानि महसूस करती थी. जब विदिशा के परिजनों ने उसे फोन कर यह बताया कि वह उसे लेने के लिए आने वाले हैं, तब उसने आत्महत्या कर ली.
विदिशा की सहेलियों का बयान
विदिशा की सहेलियां सुवर्णा महतो, आस्था साहू, आकांक्षा जायसवाल ने डीएसपी को बताया था कि विदिशा पहले खुश रहती थी. ऑपरेशन के बाद वह घर गयी. घर से आने के बाद वह निराश रहने लगी. विदिशा सहेलियों को बताती थी कि उसकी जिंदगी बोझ बन गयी है.
विदिशा की सहेली पूर्णिमा ने डीएसपी को बताया कि घटना के दिन सुबह 7.30 बजे विदिशा ने उसे बताया था कि उसके पिता उसे लेने आने वाले हैं. वह हमेशा नींद की गोली खाती थी. विदिशा यह भी बोलती थी कि उसे अपने माता-पिता का प्यार नहीं मिलता. वह घर भी जाना नहीं चाहती थी. दो बार बीमार पड़ने के बाद विदिशा यह बोलने लगी थी कि वह अपने घरवालों के ऊपर बोझ बन गयी है. इस कारण वह निराश रहती थी.
स्कूल की कर्मचारी रीता कुमारी ने डीएसपी को बताया था कि ऑपरेशन होने के बाद बीमार पड़ने के बाद विदिशा शांत रहती थी. वह यह भी बोलती थी कि अब उसकी जिंदगी उसके घरवालों के लिए बोझ बन चुकी है.
विदिशा की मौत. प्रभार छोड़ने से पहले डीएसपी ने दी रिपोर्ट
रांची: हाई क्यू इंटरनेशनल स्कूल की छात्र विदिशा की मौत के मामले में डीएसपी आनंद जोसेफ तिग्गा ने सुपरविजन रिपोर्ट तैयार किया है. डीएसपी ने अनुसंधानक को चार निर्देश दिये हैं. इसमें हरिनारायण चतुव्रेदी का बयान लेने, विदिशा की डायरी में दर्ज बातों की छानबीन करने, स्कूल पंजी से विदिशा की उपस्थिति जानने और अस्पताल में इलाज के बाद विदिशा घर गयी थी या हॉस्टल में ही रही, यह पता लगाना है. इन निर्देशों से भी साफ है कि मामले की अच्छी तरह जांच किये बगैर ही डीएसपी ने घटना के बारे में लिख दिया कि हत्या का मामला सत्य प्रतीत नहीं होता है. श्री तिग्गा सिल्ली के डीएसपी हैं और उन्हें सदर डीएसपी का भी प्रभार दिया गया था.
सुपरविजन रिपोर्ट उस दिन (सात अक्तूबर 2013) जारी किया गया है, जिस दिन सरकार ने सदर डीएसपी के पद पर दूसरे डीएसपी सत्यवीर सिंह का पदस्थापन किया था. इसके साथ ही श्री तिग्गा सिर्फ सिल्ली के डीएसपी रह गये थे. आम तौर पर ऐसी स्थिति में कोई भी पदाधिकारी सुपरविजन रिपोर्ट जारी नहीं करता, पर श्री तिग्गा ने रिपोर्ट जारी किया. डीएसपी ने मामले में जिस तरह गोल-मटोल निष्कर्ष दिया है, उससे लगता है कि वह सुपरविजन की खानापूर्ति कर रहे थे या उन पर इस तरह की रिपोर्ट निकालने का दबाव था.
सुपरविजन रिपोर्ट पर उठ रहे सवाल
रिपोर्ट का निष्कर्ष : विदिशा को उसके मां-बाप नहीं मानते थे, इसलिए उसने आत्महत्या की.
सवाल : अगर विदिशा के मां-बाप उसे नहीं मानते थे, तो इतने महंगे स्कूल में कैसे पढ़ाते थे. 13 सितंबर को तबियत खराब होने की सूचना पर चतरा से सिर्फ 3.45 घंटे में रांची कैसे पहुंच गये.
रिपोर्ट का निष्कर्ष : घटना के दिन विदिशा दिन के 10.30 बजे वार्डेन से यह कह कर कमरे की चाबी ले गयी कि उसके पिता ने फोन किया है कि वह एक बजे तक उसे लेने आ रहे हैं, घर ले जायेंगे.
सवाल : हॉस्टल में बच्चों को मोबाइल रखने की छूट नहीं है. अभिभावक वार्डेन के जरिये ही बच्चों से बात करते हैं. फिर विदिशा के पिता के कॉल के बारे में वार्डन को क्यों नहीं पता था. उसके पिता ने उससे किसके जरिये बात की थी.
रिपोर्ट का निष्कर्ष : साक्षी श्रीराम के बयान से स्पष्ट है कि 15 सितंबर को हरिनारायण चतुव्रेदी स्कूल परिसर की बैठक में थे. बैठक में वार्डेन ने विदिशा से संबंधित कागजात उन्हें सौंपा.
सवाल : हरिनारायण चतुव्रेदी प्राथमिकी के नामजद अभियुक्त हैं, फिर भी अनुसंधानक ने न तो उन्हें पकड़ा और न ही उनका बयान लिया. डीएसपी ने इस बाबत अपने रिपोर्ट में अनुसंधानक की इस लापरवाही को क्यों नहीं पकड़ा.
रिपोर्ट का निष्कर्ष : विदिशा 18 अगस्त और चार सितंबर को बीमार पड़ी थी. अस्पताल के चिकित्सकों ने उसका साइकोसोमेटिक डिसॉर्डर पाया था. जांच में यह तथ्य सामने आया है.
सवाल : पुलिस ने इस बात का पता क्यों नहीं लगाया कि साइकोसोमेटिक डिसार्डर पाने पर चिकित्सकों ने विदिशा का इलाज किस तरह के चिकित्सक से कराने की सलाह दी थी. सलाह स्कूल प्रबंधन को दी थी या विदिशा के परिवार के लोगों को. विदिशा का बेहतर इलाज कराने की जिम्मेदारी उसी की बनती है, जिसे यह सलाह दी गयी होगी.
रिपोर्ट का निष्कर्ष : विदिशा की मौत का मामला भादवि की धारा 302 व 34 के तहत सत्य प्रतीत नहीं होता. हरिनारायण चतुव्रेदी का बयान अंकित करने के बाद ही उनके अभ्युक्तिकरण पर निर्णय लेना श्रेयस्कर प्रतीत होता है.
सवाल : मामला 302 व 34 के तहत सत्य प्रतीत नहीं होता है, तो किस धारा के तहत सत्य प्रतीत होता है? जब घटना आपराधिक धारा के तहत सत्य प्रतीत ही नहीं होता है, तो फिर उनके अभ्युक्तिकरण की जरूरत ही क्या है?