रांची: झारखंड क्रांति दल राज्य कमेटी की ओर से मंगलवार को एचआरडीसी सभागार में डोमिसाइल (स्थानीयता नीति) पर सेमिनार हुआ़ इसमें डॉ बीपी केशरी, फादर स्टेन स्वामी, संतोष राणा, आलोका, फ्रांसिस सरवन व अन्य वक्ताओं ने कहा कि आदिवासियों व मूलवासियों के हित में स्थानीयता नीति जरूरी है. राज्य के 90 फीसदी आदिवासी व मूलवासी ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं.
उन्हें कम से कम तृतीय व चतुर्थ श्रेणी की नौकरियों में जगह मिलनी चाहिए़ गैर झारखंडियों द्वारा उनका आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक व धार्मिक शोषण व उत्पीड़न आज भी जारी है.
यदि हम अबुआ राज की बात करते हैं, तो जरूरत पड़ने पर लूट व दमन में शामिल गैर झारखंडी शासक, शोषक, अफसर, ठेकेदार व व्यवसायियों को राज्य से भगाना होगा. सर्वोच्च व उच्च न्यायालयों के कई फैसलों से स्पष्ट है कि किसी भी व्यक्ति का दो डोमिसाइल नहीं हो सकता़ कुछ साल कहीं रह लेने भर से किसी दूसरे राज्य के निवासी को इस राज्य का डोमिसाइल प्रमाण पत्र नहीं मिल सकता. झारखंड में युगों से यहां रहनेवाले आदिवासी मूलवासी सदान, जिनकी संस्कृति, सामाजिक ढांचा, मानसिकता में एकरूपता है, वही झारखंड के मूलनिवासी हैं.
डोमिसाइल निर्धारण के लिए दिये सुझाव
सेमिनार में डोमिसाइल के निर्धारण के लिए कई सुझाव दिये गये. कहा गया कि इसके लिए 1932-1964 के खतियान को आधार बनाया जाये. डोमिसाइल चिह्न्ति करने का अधिकार ग्राम सभा को देना चाहिए. सरकारी पदाधिकारियों की उपस्थिति में पारंपरिक स्वशासन के अगुवा डोमिसाइल चिह्न्ति करें. भाषा- संस्कृति, रीति-रिवाज आदि का भी ध्यान रखा जाये. असम व उत्तर बंगाल के चाय बागानों में काम करनेवाले आदिवासियों को भी ध्यान में रखना जरूरी है.