रांची: चिकित्सक जेनरिक दवाएं इसलिए नहीं लिखते, क्योंकि उनकी गुणवत्ता पर संदेह रहता है. मरीजों की जान बचाने के लिए ब्रांडेड दवाएं लिखनी पड़ती है. जेनरिक दवाओं पर लोगों को विश्वास नहीं होता है, इसलिए स्वास्थ्य से जुड़े अधिकारी एवं जनप्रतिनिधि भी इन दवाओं का उपयोग नहीं करते है. जेनरिक दवाओं के प्रति लोगों में विश्वास कायम करना होगा. इसके लिए सरकारी स्तर पर प्रयास की जरूरत है. यह बात रविवार को आइएमए की राज्य कार्यकारिणी के पदस्थापना समारोह में राष्ट्रीय आइएमए के सचिव डॉ नरेंद्र सैनी ने कही.
उन्होंने कहा कि दवाओं की गुणवत्ता की जांच के लिए प्रयोगशाला होनी चाहिए, जिससे संदेह होने पर जांच किया जा सके. शहर में जगह-जगह जेनरिक दवा की दुकान होनी चाहिए. जहां तक कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट की बात है तो इसमें पारदर्शिता होनी चाहिए. 80 प्रतिशत अस्पताल चिकित्सकों के ही होते हंै. ऐसे में यदि कोई गड़बड़ी हो तो जुर्माना भी चिकित्सकों को ही वहन करना पड़ता है.
उन्होंने कहा कि मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट 10 से 12 राज्यों में लागू है, इसलिए झारखंड सरकार को चाहिए कि यहां भी इस एक्ट को लागू करे. सरकार पीपीपी मोड पर सेवाएं देती है, लेकिन निगरानी भी रखती है. हेल्थ पर जीडीपी का मात्र 0.9 प्रतिशत ही खर्च होता है. ऐसे में बेहतर स्वास्थ्य सेवा की कल्पना कैसे की जा सकती है. चिकित्सकों को सभी मुद्दों के लिए एकजुट होना होगा. मौके पर आइएमए के पूर्व सचिव डॉ एके सिंह, रिम्स निदेशक डॉ एसके चौधरी, डॉ शोभा चक्रवर्ती, डॉ विमलेश, डॉ वीएस प्रसाद, डॉ जेके मित्र एवं डॉ भारती कश्यप सहित कई चिकित्सक मौजूद थे. इस अवसर पर राज्य आइएमए के अध्यक्ष के रूप में डॉ एके सिंह, सचिव डॉ प्रदीप कुमार सिंह, कोषाध्यक्ष डॉ राजमोहन, डॉ बीपी कश्यप, डॉ रितेश रंजन, डॉ चंद्रशेखर प्रसाद सहित कई चिकित्सकों ने शपथ ली.
कमीशन लेनेवाले डॉक्टर आइएमए के सदस्य नहीं : राष्ट्रीय आइएमए के सचिव डॉ नरेंद्र सैनी ने कहा कि चिकित्सकों को चिकित्सीय मूल्यों का पालन करना चाहिए, जो चिकित्सक कमीशन लेते हैं, वैसे चिकित्सक आइएमए के सदस्य नहीं हो सकता. भ्रूण जांच भी अपराध है. अगर चिकित्सक ऐसा करते हैं तो आइएमए उनकी सदस्यता को समाप्त करेगा. लेकिन सरकार को चाहिए कि जो दंपति भ्रूण जांच के लिए चिकित्सक के पास आते हैं उनपर भी कार्रवाई हो. आइएमए का इस वर्ष का नारा है ‘वेलकम द गल्र्स चाइल्ड’.
चिकित्सक रोक सकते है एंटिबॉयोटिक का दुरुपयोग : चिकित्सक एंटिबॉयोटिक के दुरुपयोग को रोक सकते हैं. उन्होंने चिकित्सकों से आह्वान किया कि वे बेवजह एंटिबॉयोटिक का उपयोग नहीं करे,क्योंकि इसके प्रयोग से शरीर के अन्य अंग प्रभावित होते हैं. 20 साल से एंटिबॉयोटिक की नयी दवाएं नहीं आयी है.