– संजय –
रांची : राज्य के अधिकतर सरकारी अस्पतालों में कुत्ता व सांप काटने के बाद लोगों को दी जानेवाली जीवन रक्षक दवाएं (एंटी रैबीज व एंटी स्नैक दवा) नहीं हैं. एंटी बायोटिक, पेन किलर व दूसरी दवाओं की भी भारी कमी है. हाल ही में सदर अस्पताल मेदिनीनगर में सांप काटने के चार-पांच केस बिना दवा के लौटा दिये गये.
राज्य के एक मात्र इंफेक्शियस डिजीज हॉस्पिटल (आडीएच, रांची) में भी टिटनस सहित अन्य जरूरी दवाएं खत्म हो गयी हैं. इसका असर बच्चों पर भी पड़ रहा है. बच्चों के लिए विटामिन-ए की खुराक पिछले ढाई वर्षो से नहीं खरीदी गयी है. डॉक्टरों के अनुसार, जल्द ही दवाएं नहीं खरीदी गयी, तो स्थिति गंभीर हो सकती है. वहीं मुख्यालय में इसे लेकर कोई गंभीरता नहीं दिखायी जा रही.
अधिकारियों के तर्क : केंद्रीकृत दवा खरीद के बजाय जिलों को कुछ पैसे देने संबंधी फाइल एनआरएचएम से स्वास्थ्य विभाग भेजी गयी थी. पर विभागीय अधिकारियों ने तर्क दिया कि जिलों में पैसों की कमी नहीं है. जिलों में गैर योजना का काफी पैसा, जिससे जरूरी दवाएं खरीदी जा सकती हैं. सिविल सजर्नों की लापरवाही से यह नहीं हो रहा है. इसलिए योजना मद की राशि देने का कोई अर्थ नहीं है.
1. पैसे की निकासी ही नहीं
पिछले वित्तीय वर्ष में दवा खरीद मद के 4.68 करोड़ रुपये की निकासी ही नहीं हुई. वित्त विभाग की पूछताछ व बाद में तकनीकी कारणों से मार्च तक पैसे नहीं निकाले जा सके.
2. राशि का आवंटन भी नहीं
चालू वित्तीय वर्ष के लिए दवा खरीद की राशि आवंटित नहीं की गयी है. इससे दवा व उपकरण खरीदने के लिए बनी एजेंसी झारखंड स्टेट हेल्थ इंफ्रास्ट्रर डेवलपमेंट एंड प्रोक्योरमेंट कॉरपोरेशन के पास फंड नहीं है.
3. विभागीय सचिव ने नहीं लिया है एमडी का प्रभार
कॉरपोरेशन में फिलहाल कोई एमडी नहीं है. कॉरपोरेशन के गठन के बाद एनआरएचएम के तत्कालीन अभियान निदेशक मनीष रंजन को इसका एमडी बनाया गया था. चार मार्च को उनका तबादला श्रमायुक्त के पद पर कर दिया गया. इधर स्वास्थ्य विभाग ने 29 मई को अधिसूचना जारी कर विभागीय सचिव को कॉरपोरेशन का एमडी बना दिया. पर उन्होंने अब तक प्रभार नहीं लिया है. गौरतलब है कि स्वास्थ्य सचिव ही कॉरपोरेशन के चेयरमैन (अध्यक्ष) होते हैं.
एक ही आदमी को कॉरपोरेशन का अध्यक्ष व एमडी दोनों बनाने से कई विभागीय अधिकारियों को भी आश्चर्य हुआ है. दरअसल अध्यक्ष का काम कॉरपोरेशन की बोर्ड मीटिंग की अध्यक्षता करना व नीतियां बनाना है. एमडी का काम इन नीतियों पर अमल करना है. कॉरपोरेशन का गठन दवाओं व मेडिकल उपकरण सहित अन्य चीजों की खरीद के लिए हुआ है. खरीद के लिए टेंडर निकालने का काम एमडी का है. उनके नहीं रहने से खरीद प्रक्रिया ठप है. एमडी प्रभार ले लें, तो भी खरीद पूरी करने में कम से कम चार माह का समय लग जायेगा.