रांची: झारखंड की गरीब आदिवासी बेटियां मासूम हैं. इसका यह अर्थ नहीं कि कोई भी उसे बहला-फुसला कर उसका शोषण करे. गांव के गरीब आदिवासी बुनियादी सुविधाओं से महरूम हैं और नक्सली घटनाओं की वजह से आज भी हाशिये पर हैं.
आदिवासियों के बीच शिक्षा व उनकी सुरक्षा दयनीय है. यही कारण है कि यहां की बेटियां बहुत आसानी से मानव व्यापार का शिकार हो रही हैं. शहर में नकली मां-बाप के गिरोह सक्रिय हैं, जो उन्हें बहला-फुसला कर अपने पास ले जाते हैं. उनसे अनैतिक कार्य करवा कर उनका आर्थिक, मानसिक व शारीरिक शोषण कर रहे हैं. इस बात का खुलासा तब हुआ, जब 16 वर्षीय बरखा (बदला हुआ नाम) ने अपनी आप बीती बतायी.
उन्होंने मेरे मामा-मामी होने का दावा किया
मैं बचपन से ही आरोग्य भवन के अनाथालय में रह रही थी. वही मेरा घर-परिवार था. अचानक आज से चार महीने पहले एक महिला और पुरुष मेरे पास आश्रम में आये और उन्होंने मेरे मामा(भुवनेश्वर भुईयां)-मामी(जितनी उर्फ सड़ी देवी) होने का दावा किया. उन्होंने कहा तुम्हारी मां बहुत बीमार है. आश्रमवालों ने मुङो उनके साथ भेज दिया. वे लोग मुङो बुंडु लेकर चले गये. वहां जाकर कोई मां नहीं मिली. महिला ने मुङो उस आदमी के साथ कमरे में बंद कर दिया और कहा ऐसा रोज होगा. हर दिन नये लोग आयेंगे. मैं चिल्लाने लगी और किसी तरह गांव के अन्य घर का सहारा लिया. इसके पहले मैंने फोन पर उस महिला को किसी से बात करते हुए सुना था. वो मुङो बेचने की बात कर रही थी. दिल्ली भेजने की बात चल रही थी, जहां मुङो घरेलू काम के अलावा और भी गलत धंधों में लगाना चाह रही थी. गांव की ही एक लड़की ने मेरी मदद की और मुङो बीते रविवार को नामकुम तक पहुंचाया. उसकी मदद से भूली-भटकी मैं झारखंड हेल्थ एवं वेलफेयर सोसाइटी पहुंची . मैं अब यहां से जाना नहीं चाहती. मुङो बचा लो, वो लोग मुङो बेच देंगे.
समाज में आज बेटियों को बचाने की है जरूरत
हमारी संस्था में बच्ची ने शरण के लिए आयी. हमने इसकी समस्या जानी. आज सुबह से ही इसे लेने के लिए आनेवालों की भीड़ लग रही है. मैंने स्थानीय दारोगा को खबर की है. लड़की यही रहना चाहती है. मैं इस बच्ची की समस्या सुन कर दंग हूं. कैसे बिना किसी नियम-कानून के इस बच्ची को आश्रम ने किसी के हवाले कर दिया. बचपन से इस लड़की को कोई देखने नहीं आया. जब वह सोलह वर्ष की हो गयी, तो अब इसका रिश्तेदार बन इसका शोषण करने की कोशिश की जा रही है. समाज में आज ऐसे लोगों से बेटियों को बचाने की जरूरत है.
डॉ शिवानी सिंह
सचिव, झारखंड हेल्थ एवं वेलफेयर सोसाइटी