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रांची : हाईकोर्ट में ने ग्राउंड वाटर लेवल बनाए रखने के लिए वाटर हार्वेस्टिंग को जरूरी बताया, दिया ये निर्देश

300 स्क्वायर मीटर या उससे अधिक क्षेत्रफल के भवनों में वाटर हार्वेस्टिंग लगाना अनिवार्य है. इसका पालन नहीं करनेवाले भवन मालिकों व अपार्टमेंट के निवासियों से डेढ़ गुना अतिरिक्त होल्डिंग टैक्स जुर्माने के रूप में लिया जाता है.

रांची : झारखंड हाइकोर्ट ने राज्य में नदियों व जल स्रोतों के अतिक्रमण तथा साफ-सफाई को लेकर स्वत: संज्ञान से दर्ज जनहित याचिका पर सुनवाई की. जस्टिस रंगन मुखोपाध्याय व जस्टिस दीपक रोशन की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान माैखिक रूप से कहा कि भूमिगत जल स्तर को बनाये रखने में वाटर हार्वेस्टिंग जरूरी है. सरकारी भवन, प्राइवेट बिल्डिंग, अपार्टमेंट में वाटर हार्वेस्टिंग लगाना सुनिश्चित किया जाये. ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट देने के पूर्व यह देखा जाये कि वहां वाटर हार्वेस्टिंग बनाया गया है.

वाटर हार्वेस्टिंग न बानाने वालों भवनों पर होगी कार्रावाई

रांची नगर निगम को खंडपीठ ने निर्देश दिया कि वह सर्वे कराये तथा यह देखे कि भवनों में वाटर हार्वेस्टिंग बनाया गया है या नहीं. नहीं बनाने पर कार्रवाई की जाये. इसे हर हाल में सुनिश्चित किया जाना चाहिए. इसके लिए रांची नगर निगम बड़े पैमाने पर लगातार प्रचार-प्रसार अभियान भी चलाये. सभी जगहों पर वाटर हार्वेस्टिंग को प्रोत्साहित करने को लेकर होर्डिंग्स लगाया जाये. समाचार पत्रों, एफएम रेडियो आदि के माध्यम से प्रचार अभियान चला कर लोगों को वाटर हार्वेस्टिंग के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए. खंडपीठ ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह राजधानी के बाहर यह देखे कि बननेवाले भवनों में वाटर हार्वेस्टिंग भी जरूरी हो, ताकि भूमिगत जल स्तर को बनाये रखा जा सके.

6 मई को होगी अगली सुनवाई

मामले की अगली सुनवाई के लिए खंडपीठ ने छह मई की तिथि निर्धारित की. इससे पूर्व रांची नगर निगम की ओर से अधिवक्ता एलसीएन शाहदेव ने पैरवी की. उन्होंने खंडपीठ को बताया कि नगर निगम ने भवनों में वाटर हार्वेस्टिंग के लिए नियम बनाया है. 300 स्क्वायर मीटर या उससे अधिक क्षेत्रफल के भवनों में वाटर हार्वेस्टिंग लगाना अनिवार्य है. इसका पालन नहीं करनेवाले भवन मालिकों व अपार्टमेंट के निवासियों से डेढ़ गुना अतिरिक्त होल्डिंग टैक्स जुर्माने के रूप में तब तक वसूला जाता है, जब तक कि वाटर हार्वेस्टिंग बना नहीं लिया जाता है.

इन लोगों ने रखा पक्ष

केंद्र सरकार की ओर से अधिवक्ता प्रशांत पल्लव ने पैरवी की, जबकि राज्य सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता जय प्रकाश ने पक्ष रखा. उल्लेखनीय है कि नदियों व जलस्रोतों के अतिक्रमण व साफ-सफाई के मामले को झारखंड हाइकोर्ट ने गंभीरता से लेते हुए वर्ष 2011 में उसे जनहित याचिका में तब्दील कर दिया था. पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कांके डैम व गेतल सूद डैम से जलकुंभी हटाने का निर्देश दिया था.

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