हाजीपुर : हरिहरक्षेत्र सोनुपर मेले की रंगत धीरे-धीरे परवान चढ़ रही है. एक तरफ थियेटर पंडालों में संगीत की तेज धुनों पर झूम रही बालाओं की मोहक अदाओं पर दर्शक वाह-वाह कर रहे हैं तो दूसरी ओर पर्यटन विभाग के सांस्कृतिक मंच पर देश भर से जुटे कलाकारों की आकर्षक प्रस्तुति से लोग मुग्ध हो रहे हैं.
समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को समेटे हुए विश्व प्रसिद्ध यह मेला विभिन्न तरह के सांस्कृतिक आयोजनों से गुलजार हो उठा है. इन सब के बीच थियेटर की पुरानी संस्कृति और नौटंकी परंपरा को लोग आज भी शिद्दत से याद करते हैं. थियेटर के बाहर खड़े 65 वर्षीय लाल मोहन सिंह कहते हैं कि थियेटर या मेले के सांस्कृतिक आयोजनों में अब पहले जैसी बात नहीं रही. वह भी एक दौर था जब एक से बढ़ कर एक वाद्य और गायन मंडलियां मेले में आती थीं. नाटक होते थे.
ठुमरी-दादरा हुई बीते दिनों की बात : गुलाब बाई जब ठुमरी, दादरा की तान छेड़ती थी तो लोग पागल हो जाते थे. ‘नदी नाले न जाओ श्याम पइयां पड़ू’ गीत से गुलाब बाई को काफी प्रसिद्धि मिली. भरतपुर लुट गयो रात मोरी अम्मा, गुलरी के फुलवा जैसे गीत तब गूंजते रहते थे. भारतीय संगीत की ऐसी रसधारा बहती कि लोग मुग्ध हो जाते थे. इसका प्रचार टमटम पर भोपू से किया जाता था. कई स्थानों पर डुगडुगी पिटवा और मुनादी करवाकर थियेटर-नौटंकी का प्रचार करवाया जाता था.
अब तो प्रचार के कई साधन उपलब्ध हो गये हैं. लोगों का कहना है कि धीरे-धीरे थियेटर-नौटंकी की वह सुसंस्कृत परंपरा समाप्त होती चली गयी और इस पर आधुनिकता हाबी हो गयी. अब लगने वाले थियेटरों में दादरा-ठुमरी के बोल नहीं गूंजते बल्कि अश्लीलता और फुहर गीतों की भरमार होती है.
1980-90 के दशकों में तो अश्लीलता पराकाष्ठा पर पहुंच गयी थी तब लोगों ने इससे किनारा ही कर लिया था. इसका प्रभाव मेले पर भी प्रभाव पड़ा. वर्तमान समय में प्रशासनिक जागरूकता एवं सरकार के प्रयास से थियेटर में अश्लीलता और भोंड़े प्रदर्शन पर अंकुश लगा है. इससे लोगों में यह संदेश गया कि सरकार मेले के गौरव और विरासत को पुन: स्थापित करने के प्रति गंभीर है. जब से पर्यटन विभाग ने मेले की व्यवस्था अपने हाथ में ली है, मेले का सांस्कृतिक स्वरूप साल दर साल निखर रहा है. विभाग मुख्य मंच पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों की छटा बिखेरी जा रही है.