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उत्क्रमण की बाट जोह रहा विद्यालय

दो कमरों के जर्जर भवन में संचालित अल्लीपुर मंझीपुर विद्यालय वर्षों से कागजी खानापूर्ति से नहीं उबर रही है. पंचायत के दूसरे सबसे पुराने इस प्राथमिक विद्यालय का पोषक क्षेत्र बड़ा होने तथा उत्क्रमित होने के मानक के अनुरूप बच्चों की संख्या होने के बावजूद यह अब तक मध्य विद्यालय में उत्क्रमित नहीं हो सका […]

दो कमरों के जर्जर भवन में संचालित अल्लीपुर मंझीपुर विद्यालय वर्षों से कागजी खानापूर्ति से नहीं उबर रही है. पंचायत के दूसरे सबसे पुराने इस प्राथमिक विद्यालय का पोषक क्षेत्र बड़ा होने तथा उत्क्रमित होने के मानक के अनुरूप बच्चों की संख्या होने के बावजूद यह अब तक मध्य विद्यालय में उत्क्रमित नहीं हो सका है.

राजापाकर : प्रखंड के ग्राम पंचायत राज जाफरपट्टी अंतर्गत अल्लीपुर मंझीपुर स्थित पुराना राजकीय प्राथमिक विद्यालय को लंबे समय से है उद्धारक की खोज है. दो कमरो के जर्जर भवन में संचालित यह विद्यालय वर्षों से गबन, विकास तथा अन्य मदों में कागजी खानापूर्ति से नहीं उबर रही है. पंचायत के दूसरे सबसे पुराने इस प्राथमिक विद्यालय का पोषक क्षेत्र बड़ा होने तथा उत्क्रमित होने के मानक के अनुरूप बच्चों की संख्या होने के बावजूद यह मध्य विद्यालय में उत्क्रमित नहीं हो सका है.
शोभा की वस्तु बन रह गया है शौचालय : विद्यालय परिसर के अंदर सरकारी मापदंड से अलग हट कर बनाये गये एक किचेन शेड तथा शौचालय शोभा की वस्तु बन कर रह गया है. सिर्फ सरकारी राशि का दुरुप्रयोग नहीं कहा जाये तो और क्या. लीपापोती और सिर्फ राशियों की खानापूर्ति करने के उद्देश्य से बनाये गये शौचालय का उपयोग आज तक न विद्यालय के छात्र-छात्राओं ने किया है और न ही विद्यालय के शिक्षकों ने. विद्यालय में बूथ भी है, जहां लोकसभा, विधानसभा और त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में मतदान कराया जाता है. मतदानकर्मियों को भी शौच जाने के लिए खेत-खलिहान का ही सहारा लेना पड़ता है.
परियोजना मद से निर्मित भवन है अनुपयोगी : कई वर्ष पूर्व बिहार शिक्षा परियोजना के विद्यालय भवन निर्माण मद से निजी जमीन पर निर्मित दो कमरों का एक भवन शोभा की वस्तु बनकर ही रह गया है. लोगों का कहना है कि निर्माण मद से राशि निकासी के लगभग पांच वर्ष बाद विद्यालय के पश्चिम छोर में एक दालान के पीछे दो कमरे का एक भवन बनाकर छोड़ दिया गया, जो विद्यालय भवन तो नहीं, लेकिन कोई गोदाम या मुरगा फॉर्म जैसा लग रहा है. अतिक्रमण से ग्रस्त यह भवन सिर्फ शोभा की वस्तु ही प्रतीत हो रहा है.
विद्यालय शिक्षा समिति बनी उदासीन : देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि इस विद्यालय के प्रति शिक्षा विभाग और शिक्षा समितियां बिल्कुल ही उदासीन हैं. सिर्फ विद्यालय के विभिन्न मदों में लूट की छूट वाली कहानी प्रतीत होती है. स्थानीय लोगों का कहना है कि जब सरकारी स्तर पर विद्यालय भवन निर्माण के मदों में राशि आवंटित नहीं हो पाती थी तो ग्रामीण चंदा कर पुराने खपरैल भवन की मरम्मत करा कर किसी तरह पठन-पाठन में सहयोग करते थे. आज जब सरकारी स्तर से राशि आवंटित की गयी तो विद्यालय का विकास एक ढाक के तीन पात बनकर रह गया.
कैसे होगा उत्क्रमित और कैसे मिलेगी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा : जब विद्यालय शौचालय, भवन, पेयजल तथा अन्य मानक को पूरा ही नहीं कर पायेगा तो विद्यालय को कैसे उत्क्रमित किया जा सकता है. स्थानीय अभिभावकों का कहना है कि विद्यालय में कभी भी कोई विकास संबंधी या छात्र-छात्राओं से संबंधित बैठक भी नहीं की जाती है. विद्यालय में उपस्कर, मुख्यमंत्री, मंत्री क्षेत्र भ्रमण मद तथा विद्यालय की रंगाई-पुताई तथा अन्य आवश्यक कार्यों के लिए आवंटित राशि भी कागज पर ही सिमट कर रह जाती है. विद्यालय संचालन का कोई नियत समय नहीं रहता है और नहीं प्रखंड या जिला पदाधिकारी कभी विद्यालय का निरीक्षण करते हैं.
विद्यालय में शिक्षकों की है कमी : इस विद्यालय में लगभग दो सौ नामांकित छात्र-छात्राएं हैं, जबकि मात्र तीन शिक्षक से ही विद्यालय का पठन-पाठन कराया जाता है. जबकि एक शिक्षक को गांव के नवसृजित प्राथमिक विद्यालय में प्रतिनियुक्ति कर दी गयी है. इस स्थिति में शिक्षा की गुणवत्ता की बात करना तो बेमानी है. जब विद्यालय अधिकांश सुविधाओं से वंचित है और वर्षों पूर्व से सिर्फ गबन और कागजी खानापूर्ति की भेंट चढ़ती रही है.
विद्यालय से ढाई किलोमीटर दूर है मध्य विद्यालय : इस प्राथमिक विद्यालय में पांचवीं तक शिक्षा ग्रहण करने के बाद विद्यालय के पोषक क्षेत्रों के छात्र-छात्राओं को ढाई किलोमीटर दूर स्थित मध्य विद्यालय में जाना पड़ता है. इस विद्यालय से बाद के स्थापित पंचायत के लगभग सभी राजकीय प्राथमिक विद्यालय मध्य विद्यालय में उत्क्रमित हो गये. लोगों का कहना है कि दर्जनों बार शिक्षा विभाग में विद्यालय में व्याप्त गबन तथा शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने, उत्क्रमित किये जाने की मांग ग्रामीणों द्वारा हस्ताक्षरयुक्त आवेदन देकर किया गया, लेकिन आज तक कोई विभागीय कार्रवाई की गयी और नहीं पंद्रह वर्षों से अधिक समय से विद्यालय में जमे प्रधानाध्यापक को स्थानांतरित किया गया.
क्या कहते हैं स्थानीय ग्रामीण व प्रतिनिधि
विद्यालय परिसर के पश्चिम छोर में निजी जमीन में बने दो कमरे का भवन शोभा की वस्तु बनकर रह गया है. जबकि वर्ग संचालन बरामदायुक्त एक जर्जर कमरे में किया जाता है. विद्यालय में मध्याह्न भोजन भी नियमित रुप से संचालित नहीं होता है. पूर्व में अनेकों बार ग्रामीणों का हस्ताक्षरयुक्त आवेदन शिक्षा विभाग के अधिकारियों को दिया गया, लेकिन विभाग के वरीय पदाधिकारी झांकने तक नहीं आये. पूर्व से ही प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी, संकुल समन्वयक और प्राधानाध्यापक की मिलीभगत से विद्यालय विकास मद तथा अन्य मदों की राशि की लूटखसोट होती रही है.
शीला देवी, वार्ड सदस्य अल्लीपुर
गांव के प्राथमिक विद्यालय से ही गांव के भविष्य की नींव को ठीक किया जाता है. विद्यालय से ही गांव का विकास देखा जा सकती है. जबकि इस विद्यालय के प्रांगण में घटिया किस्म से निर्मित शौचालय और किचेन शेड सरकारी राशि की दुरुप्रयोग के सिवा और कुछ नहीं है. क्योंकि वह उपयोग लायक नहीं है. सिर्फ सरकारी राशि को अमलीजामा पहनाने के उद्देश्य से निर्मित यह शौचालय और किचेन शेड को अगर निष्पक्ष जांच करायी जाये तो दोषियों को राशि वापस करने के सिवा कुछ नहीं बचेगा. विद्यालय में नियमित वर्ग संचालन भी नहीं होता है और न शिक्षा समिति, अभिभावक की मासिक बैठक होती है. शिक्षा समिति पूर्णरूपेण निष्क्रिय है. कभी कोई पदाधिकारी जांच नहीं करते हैं.
अभय कुमार सिंह, ग्रामीण अल्लीपुर
विद्यालय के विकास के लिए हमने तो कई बार पहल की, लेकिन सारी पहल इस विद्यालय में निरर्थक साबित हो रही है. प्राधानाध्यापक को हमेशा कहने के बाद यहां कभी मासिक बैठक नहीं करायी जाती है और न विद्यालय विकास मद की राशि को शिक्षा समिति या अन्य अभिभावकों के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है.
इस विद्यालय को देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि यह मात्र शोभा की वस्तु बनी उद्धारक की बाट जोह रही है. मैं शिक्षा समिति के अध्यक्ष के नाते भी कई बार वरीय पदाधिकारियों से इसे उत्क्रमित करने की गुहार लगायी, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है.
विजय कुमार सिंह, अध्यक्ष, विद्यालय शिक्षा समिति

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