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बदहाल पड़ा है बलगम जांच केंद्र
हाजीपुर : जिला यक्ष्मा पदाधिकारी के लापरवाह रवैये के कारण वैशाली जिले में रिवाइज्ड नेशनल ट्यूबरोक्लोसिस कंट्रोल प्रोग्राम का भट्ठा बैठ रहा है. एक तरफ जिले में यक्ष्मा रोग का फैलाव तेजी से हो रहा है, तो दूसरी ओर इसका रोकथाम के लिए जिला यक्ष्मा केंद्र द्वारा आरएनटीसीपी के प्रति घोर लापरवाही दिखायी जा रही […]
हाजीपुर : जिला यक्ष्मा पदाधिकारी के लापरवाह रवैये के कारण वैशाली जिले में रिवाइज्ड नेशनल ट्यूबरोक्लोसिस कंट्रोल प्रोग्राम का भट्ठा बैठ रहा है. एक तरफ जिले में यक्ष्मा रोग का फैलाव तेजी से हो रहा है, तो दूसरी ओर इसका रोकथाम के लिए जिला यक्ष्मा केंद्र द्वारा आरएनटीसीपी के प्रति घोर लापरवाही दिखायी जा रही है.
आरएनटीसीपी को कारगर तरीके से लागू कर न सिर्फ टीबी रोगियों की बढ़ती संख्या पर बल्कि इस रोग पर भी काबू पाया जा सकता है. कर्मियों का अभाव और जांच केंद्रों की कमी के कारण भी इस रोग से लड़ना मुश्किल हो रहा है.
खाली पड़े हैं 13 सुपरवाइजरों के पद : जिले में टीबी की रोकथाम के लिए विभाग कितना गंभीर है, इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि यहां 13 सुपरवाइजरों के पद वर्षो से खाली पड़े हैं. डीएमसी यानी बलगम जांच केंद्रों पर टीबी मरीजों की जांच सही से हो रही है या नहीं, रोगियों को समय से दवाएं दी जा रही है या नहीं केंद्रों संचालन आरएनटीसीपी गाइडलाइन के अनुरूप हो रहा है या नहीं, इन चीजों का समय-समय पर निरीक्षण करना सुपरवाइजरों के मुख्य कार्य हैं.
सुपरवाइजरों के अभाव में टीबी मरीजों का इलाज भी भगवान भरोसे ही चल रहा है. जिला यक्ष्मा पदाधिकारी डॉ जोहा का कहना है कि सुपरवाइजर्स के बिना जिले में यक्ष्मा नियंत्रण का प्रोग्राम बाधित हो रहा है. जबकि विभागीय सूत्र बताते हैं कि खुद डीटीओ भी इसके प्रति गंभीर नहीं हैं.
महज 18 केंद्र, वे भी ठीक से नहीं चल रहे : टीबी पर नियंत्रण के लिए एकमात्र कारगर उपाय, जो विशेषज्ञ बताते हैं कि जिले में अधिक से अधिक रोगियों की खोज कर उन्हें यक्ष्मा केंद्रों तक पहुंचाना और पूरा इलाज कर उनके शरीर में फैले जीवाणुओं को मार देना ही है.
विशेषज्ञों के अनुसार टीबी रोगी के थूकने और सांस छोड़ने से भी इसके जीवाणु वातावरण में फैलते हैं. जिस तरह से लोगों में यह संक्रमण फैल रहा है, उस हिसाब से यहां जांच सुविधाओं का विस्तार भी आवश्यक बताया जा रहा है. इसके विपरीत जिले भर में अभी मात्र 18 बलगम जांच केंद्र हैं, जो नाकाफी हैं. जानकारों का कहना है कि जिले में बलगम जांच केंद्रों की संख्या कम से कम इससे दोगुनी होनी चाहिए. वैसे भी एक लाख की आबादी पर एक बलगम जांच केंद्र का होना जरूरी बताया गया है.
क्या कहते हैं अधिकारी
यक्ष्मा सुपरवाइजरों की बहाली की प्रक्रिया लगभग पूरी होनेवाली है. शीघ्र ही यह कमी दूर हो जायेगी. जांच केंद्रों को बढ़ाये जाने पर विचार किया जा रहा है.
डॉ रामाशीष कुमार, सिविल सजर्न
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