सावधान. बेतरतीब भवन निर्माण से विस्फोटक हो सकते हैं सूबे के हालात
Advertisement
भूकंप के निशाने पर है कोसी इलाका
सावधान. बेतरतीब भवन निर्माण से विस्फोटक हो सकते हैं सूबे के हालात भूकंप एक ऐसी प्राकृतिक आपदा है, जिसके आने का समय यूं तो मोटे तौर पर भी कोई नहीं बता सकता है. खास बात यह है कि सुपौल और मधुबनी जिला पूरी तरह सिस्मिक जोन 05 में आता है. अररिया और सीतामढ़ी का 70 […]
भूकंप एक ऐसी प्राकृतिक आपदा है, जिसके आने का समय यूं तो मोटे तौर पर भी कोई नहीं बता सकता है. खास बात यह है कि सुपौल और मधुबनी जिला पूरी तरह सिस्मिक जोन 05 में आता है. अररिया और सीतामढ़ी का 70 से 75 फीसदी हिस्सा जोन 05 में है.
सुपौल : अगर आपका मकान पुराना हो चुका है या फिर आप नये मकान निर्माण की योजना बना रहे हैं तो थोड़ा सावधान होने की जरूरत है. क्योंकि आपका मकान कभी भी धराशायी हो सकता है. वजह है कि भूकंप के झटके कभी भी कोसी के इस इलाके में भारी तबाही मचा सकते हैं. दरअसल कोसी का पूरा इलाका सिस्मिक जोन 05 अथवा 04 में आता है, जो भूकंप की दृष्टि से काफी संवेदनशील माना जाता है. भूगोलवेत्ता हैरी हेस के अनुसार पृथ्वी का ऊपरी दृढ़ भूखंड प्लेट है और दुनिया के सभी महाद्वीप इस प्लेट पर ही अवस्थित हैं. प्लेटों का हमेशा प्रवाह होता रहता है. इसी प्रवाह के क्रम में जब दो प्लेट आपस में टकराते हैं तो प्लेट के किनारे भूकंपीय घटनाएं घटित होती हैं.
लगभग 85 फीसदी भूकंपीय घटनाएं प्लेट के टकराने से ही होती हैं, जो विनाशकारी है. जबकि प्लेटों के दूर जाने एवं रगड़ खाने से भी भूकंप आता है लेकिन इसकी तीव्रता कम होती है. भूकंप की संवेदनशीलता को लेकर भू-गर्भ शास्त्रियों ने इसे पांच जोन में बांटा है. जिसमें जोन-01 को सुरक्षित तथा जोन-05 भूकंप की दृष्टि से सबसे खतरनाक और संवेदनशील इलाका माना जाता है. हालांकि भारत की जमीन को सिस्मिक जोन 02 से 05 के बीच में रखा गया है.
चार सिस्मिक जोन में बंटा है देश का पूरा भू-भाग : भू-गर्भ शास्त्रियों ने भूकंपीय तीव्रता के आधार पर देश को चार हिस्सों में विभाजित किया है. भूकंप की तीव्रता सीसमोग्राफ नामक यंत्र पर मापी जाती है और तीव्रता की इकाई रिक्टर होती है. तीव्रता के आधार पर कोसी और सीमांचल के इलाके को पांचवें और चौथे जोन में रखा गया है. जबकि पूरे भारत को सिस्मिक जोन 02 से 05 तथा बिहार की पूरी भूमि को सिस्मिक जोन 03 से 05 के बीच रखा गया है. देश में विनाशकारी भूकंपों के लंबे इतिहास के बीच भू-गर्भ शास्त्रि बताते हैं कि भूकंपों की अत्यधिक आवृत्ति और तीव्रता का मुख्य कारण यह है कि भारत तकरीबन 47 मिलीमीटर प्रति वर्ष की गति से एशिया से टकरा रहा है. भारत का करीब 54 प्रतिशत हिस्सा भूकंप की आशंका वाला है.
वर्ष 2002 में केंद्र सरकार व भारतीय मानक ब्यूरो ने विभिन्न वैज्ञानिकों से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर ही देश में सिस्मिक जोन 01 वाला हिस्सा होने की बात को नकार दिया था. ब्यूरो के अनुसार सिस्मिक जोन 05 भूकंपीय दृष्टि से सबसे ज्यादा सक्रिय क्षेत्र है और इसके दायरे में सबसे अधिक खतरे वाला क्षेत्र आता है. जिसमें 09 या उससे ज्यादा तीव्रता के भूकंप आने की संभावना बनी रहती है. आईएस जोन कोड, जोन 5 के लिए 0.36 जोन फैक्टर निर्धारित करता है. ढांचागत निर्माण से जुड़े डिजाइनर जोन 5 में भूकंपरोधी ढांचों के डिजाइन के समय इस फैक्टर का इस्तेमाल करते हैं. 0.36 का जोन फैक्टर इस बात की ओर संकेत करता है कि इस जोन में एमसीई स्तर का भूकंप आने पर 0.36 जी (36 प्रतिशत गुरुत्वाकर्षण) का प्रभावशाली शीर्ष क्षैतिज भूमि त्वरण (पीक होरिजेंटल ग्राउंड एक्सीलरेशन) उत्पन्न हो सकता है. इसे बहुत अधिक तबाही के खतरे वाला जोन कहा जाता है. मोटे तौर पर जोन-05 में पूरा पूर्वोत्तर भारत, जम्मू-कश्मीर का कुछ हिस्सा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात में कच्छ का रन, उत्तर बिहार का कुछ हिस्सा और अंडमान निकोबार द्वीप समूह शामिल है.
लगातार झटकों के बीच भी असंवेदनशील हैं लोग : कोसी का यह इलाका भूकंपीय रिक्टर स्केल के निशाने पर है. बावजूद इलाके के लोग भूकंप के प्रति पूरी तरह असंवेदनशील हैं और धड़ल्ले से हो रहे भवन निर्माण में भूकंप निरोधी क्षमता का भी ख्याल नहीं रखा जा रहा है. यह विडंबना है और भविष्य में किसी बड़ी तबाही का संकेत भी. तमाम कवायद के बावजूद इलाके में लोग बिना योजना के ही अवैज्ञानिक तरीके से भवनों का निर्माण करा रहे हैं. इलाके में 80 फीसदी लोड बियरिंग भवन का ही निर्माण हो रहा है जो बिना किसी गणना और वैज्ञानिक आधार के तैयार होता है. ऐसे भवन भूकंपीय रूप से संवेदनशील कोसी के इलाके में बड़ी तबाही का कारण बन सकते हैं.
भूकंपीय तबाही के निशाने पर है कोसी का इलाका
सिस्मिक जोन-05 में है सुपौल व मधुबनी का पूरा हिस्सा
कभी भी दिख सकता है यहां तबाही का मंजर, सिस्मिक जोन 05 में पूर्णिया, सहरसा और दरभंगा प्रमंडल
कोसी के इस इलाके के लिए फ्रेम स्ट्रक्चर आधारित भवन ही सुरक्षित है. जो वैज्ञानिक और रिक्टर स्केल के आधार पर डिजाइन किया जाता है. एक अन्य समस्या इस इलाके में यह है कि भवन निर्माण से पहले मिट्टी की जांच कराने की परिपाटी नहीं है. तीन मंजिल और उससे अधिक ऊंचे मकान के लिए मिट्टी जांच आवश्यक है. ताकि उसके आधार पर सुरक्षित नींव का निर्माण किया जा सके.
अमन कुमार, सिविल इंजीनियर
जोन 05 में है सुपौल व मधुबनी का पूरा इलाका
भूकंप एक ऐसी प्राकृतिक आपदा है, जिसके आने का समय यूं तो मोटे तौर पर भी कोई नहीं बता सकता है. लेकिन भौगोलिक परिस्थितियों के आधार पर भू-गर्भ शास्त्री भू-भाग को विभिन्न जोन में बांटते हैं. इसमें बिहार का पूरा भू-भाग जोन 03 से 05 के बीच अवस्थित है. खास बात यह है कि सुपौल और मधुबनी जिला पूरी तरह सिस्मिक जोन 05 में आता है. जबकि अररिया और सीतामढ़ी का 70 से 75 फीसदी हिस्सा जोन 05 में है. इसके अलावा दरभंगा, सहरसा, पूर्णिया, किशनगंज, शिवहर तथा मुजफ्फरपुर जिले का कुछ हिस्सा भी जोन पांच में आता है. इन जिलों के शेष हिस्से को जोन 04 में रखा गया है. वही गया, औरंगाबाद, सासाराम, कैमूर व बक्सर पूरी तरह जोन 03 तथा नवादा, जहानाबाद व भोजपुर का अधिकतर हिस्सा तथा पटना का कुछ हिस्सा जोन 03 में रखा गया है. जबकि सूबे का शेष हिस्सा जोन 04 में ही है. जाहिर है, भू-गर्भ शास्त्रियों का अनुमान सही है तो आम लोगों की जागरूकता ही उनका बचाव कर सकती है.
83 वर्ष बाद भी भूकंप का मिट नहीं पाया है मंजर
विकासवाद का दौर है और हर चीज बदल रही है. लेकिन नहीं बदल पाया है कुछ तो यह कि बीते 83 वर्षों में लोगों के मन से भूकंप का वह मंजर. दरअसल 15 जनवरी 1934 को भूकंप ने कोसी के इलाके में जो तांडव दिखाया, उस वक्त के बुजुर्ग व युवा भले ही अब जीवित भी न रहे हो, लेकिन नयी वृद्धावस्था के दौर से गुजर रहे तब के बच्चे भी अब तक उस याद को भुला नहीं पाये हैं. तबाही को इस बात से भी समझा जा सकता है कि भूकंप के एक झटके ने सुपौल जिले को ही दो हिस्सों में बांट दिया और साथ ही टूट गया मिथिलांचल से सीमांचल का संपर्क. सुपौल के सरायगढ़ से निर्मली अनुमंडल को जोड़ने वाली पुल कोसी में विलिन हो गयी. तब रिक्टर स्केल से भूकंप की तीव्रता 8.4 आंकी गयी थी. हालांकि अगस्त 2012 में जब एनएच 57 पर कोसी महासेतु का निर्माण हुआ, तो एक बार फिर संपर्क जुड़ गया. लेकिन लंबे समय तक संपर्क भंग रहने के कारण विकास की गति भी अवरुद्ध रही. करीब 54 वर्ष बाद एक बार फिर 21 अगस्त 1988 को 6.6 तीव्रता के भूकंप ने जम कर तबाही मचायी. पीछले दो-तीन वर्षों में जब अचानक कोसी के इस इलाके में भूकंप के झटके लगातार महसूस किये जाने लगे, दहशत का मंजर हर किसी के चेहरे पर साफ देखा जा सकता था.
जागरूकता के नाम पर महज खानापूर्ति
कोसी का यह इलाका भूकंप के मामले में काफी संवेदनशील है. यही कारण है कि इलाके में जब भी भूकंप आया है, जान-माल को नुकसान पहुंचा है. लेकिन इतिहास से सबक लेने की जरूरत न तो आम लोग और न ही प्रशासनिक अधिकारियों को महसूस हो रही है. प्रशासनिक उदासीनता का आलम यह है कि मौसम विभाग के पास भूकंप की तीव्रता मापने के लिए भूकंपमापी यंत्र भी नहीं है. इसके अलावा प्रशासनिक स्तर पर वर्ष में एक बार 15 जनवरी से 20 जनवरी तक भूकंप सुरक्षा सप्ताह मनाया जाता है. जिसमें स्कूली बच्चों की चंद रैलियां निकाल कर यह मान लिया जाता है कि लोग जागरूक हो गये हैं
और भूकंप का खतरा काफी हद तक टल गया है. लेकिन 15 जनवरी के मतलब क्या हैं और उस दिशा में अब तक लोग खुद को कितना सुरक्षित कर पाये हैं, यह जानने और इस पर विचार करने की जरूरत कोई महसूस ही नहीं करता है. जबकि सुरक्षा सप्ताह का आशय सुरक्षा के प्रयासों को गतिशील बनाये रखने से है. जाहिर है, जब तक शासन-प्रशासन और आम लोग जागरूक नहीं होंगे, सुरक्षा सप्ताह के मायनों की सार्थकता की उम्मीद भी बेमानी होगी.
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement