उत्साह.मंदिरों की हुई आकर्षक सजावट, क्षेत्रों में माहौल हुआ भक्तिमय
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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी आज, तैयारी पूरी
उत्साह.मंदिरों की हुई आकर्षक सजावट, क्षेत्रों में माहौल हुआ भक्तिमय श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर आयोजित होने वाले मेला की सारी तैयारी पूरी कर ली गयी है. आसपास के लोगों में काफी उत्साह है. सुपौल : जिले के विभिन्न भागों में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर आयोजित होने वाले मेला की सारी तैयारी पूरी कर […]
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर आयोजित होने वाले मेला की सारी तैयारी पूरी कर ली गयी है. आसपास के लोगों में काफी उत्साह है.
सुपौल : जिले के विभिन्न भागों में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर आयोजित होने वाले मेला की सारी तैयारी पूरी कर ली गयी है. जिला मुख्यालय के भेलाही, कोसी कॉलोनी, सोनक, बरुआरी पूरब, कर्णपुर, हरदी पूरब, हरदी पश्चिम, करिहो, जगतपुर, हटवरिया आदि जगहों पर मंदिरों में भगवान श्रीकृष्ण सहित अन्य देवी देवताओं की प्रतिमा स्थापित की गयी है तथा मंदिरों को आकर्षक ढंग से सजाया गया है. किवदंती है कि भादो मास की अष्टमी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा में कंस के कारागार में हुआ था.
जिसके उपलक्ष्य में इस दिन कृष्ण जन्मोत्सव मनाया जाता है तथा मंदिरों में जगह-जगह भजन कीर्तन का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है. श्रद्धालु नर नारियों द्वारा मध्य रात्रि में कृष्ण का जन्म होने के उपरांत प्रसाद लेकर अपनी व्रत की समाप्ति करते हैं. दूसरे दिन सुबह से ही नंद महोत्सव भी मनाया जाता है.
भगवान के उपर हल्दी, दही, घी आदि छिड़क कर आनंद से पाले में झुलाया जाता है. कहा जाता है कि वासुदेव नवविवाहिता देवकी और कंस के साथ गोकुल जा रहे थे. तभी अचानक आकाशवाणी हुई की हे कंस जिसको तुम अपनी बहन समझ कर साथ ले जा रहा है उसी के गर्व का आठवां पुत्र तुम्हारा काल होगा.
कंस यह सुनते ही तलवार निकालकर देवकी को मारने दौड़ा. तब वासुदेव ने हाथ जोड़कर कहा कि कंसराज यह औरत बेकसुर है इसे आपको मारना ठीक नहीं है. देवकी को संतान पैदा होते ही मैं आपको सब संतान दे दिया करुंगा तो आपको कौन मारेगा. कंस उनकी बात मान गया और देवकी को अपने कारागार में बंद कर दिया. इसी वचन को निभाते हुए वासुदेव अपने सभी पुत्रों को कंस को देते गये और वह मारता गया. देवकी के सात पुत्र मारे जाने के बाद आठवें गर्भ की बात जब कंस को मालूम हुई तब विशेष कारागार में डालकर पहरा लगवा दिया. भादो की भयानक रात के समय जब शंख,
चक्र, गदा, पदमधारी भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ तो चारों और प्रकाश फैल गया. लीलाधारी भगवान की यह लीला देख वासुदेव एवं देवकी उनके चरणों में गिर पड़े. भगवान कृष्ण ने बालक रूप धारण करके अपने को गोकुल नंद घर पहुंचाने तथा वहां से कन्या लाकर कंस को सौपने का आदेश दिया. इतना सुनते ही वासुदेव कृष्ण को गोकुल ले जाने के लिये तैयार हुए कि तभी उनके हाथ की हथकड़ी टूट गयी. दरवाजे अपने आप खुल गए. पहरे दार सोये हुए नजर आये. वासुदेव ने जब कृष्ण को लेकर यमुना में प्रवेश किया तो यमुना का पानी बढ़ने लगा और वासुदेव के गले तक पहुंच गया.
चरण कमल छूने को आतुर यमुना को देख कृष्ण ने अपने पैर लटका दिये तो वह शांत हो गयी और पानी घट गया. वासुदेव यमुना पारकर गोकुल पहुंच गये. वहां खुले दरवाजे पर सोयी हुई यशोदा को देखकर बासुदेव ने बालक कृष्ण को वहीं सुला दिया और सोयी हुई कन्या को लेकर चले आये. जब वासुदेव कन्या को लेकर आ गये तो कारागार के दरवाजे पूर्ववत बंद हो गये. वासुदेव एवं देवकी के हाथों में पुनः हथकड़ियां पड़ गयी.
जब कन्या रोने लगी तो उसकी आवाज सुनकर प्रहरियों की नींद टूट गयी और उन्होंने इसकी सूचना तुरंत राजा कंस को दी. उसके बाद कंस ने कन्या को मारने के लिये पत्थर पर पटकना चाहा लेकिन वह हाथ से छूट कर आकाश में उड़ गयी तथा वहां पहुँचते ही साक्षात देवी के रूप में प्रकट होकर बोली कंस तुम्हें मारने वाला तो गोकुल में पैदा हो चूका है अब क्या करोगे. यही भगवान कृष्ण ने बड़े होने पर वकासुर, पुतना तथा क्रूर कंस जैसे राक्षसों का वध कर भक्तों की रक्षा की .
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