अफसोस. डीएम साहब जरा अस्पताल की ओर भी देखिए
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अस्पताल खुद पड़ा है बीमार
अफसोस. डीएम साहब जरा अस्पताल की ओर भी देखिए 23 लाख लोगों के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी संभालने वाला सदर अस्पताल इन दिनों अपने कमजोर प्रबंधन के कारण खुद बीमार अवस्था में है. ज्ञात हो कि महज दो वर्ष पूर्व तक स्वास्थ्य विभाग के राज्य स्तरीय समीक्षा में बेहतर स्वास्थ्य सुविधा के लिए सदर अस्पताल सुपौल […]
23 लाख लोगों के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी संभालने वाला सदर अस्पताल इन दिनों अपने कमजोर प्रबंधन के कारण खुद बीमार अवस्था में है. ज्ञात हो कि महज दो वर्ष पूर्व तक स्वास्थ्य विभाग के राज्य स्तरीय समीक्षा में बेहतर स्वास्थ्य सुविधा के लिए सदर अस्पताल सुपौल की गिनती सूबे में दूसरे व तीसरे स्थान पर होती थी, लेकिन इन दिनों सदर अस्पताल का ग्राफ 34 से 36 वें स्थान पर चला गया है.
सुपौल : जिले के 23 लाख लोगों के स्वास्थ्य की जिम्मेदारी संभालने वाला सदर अस्पताल इन दिनों अपने कमजोर प्रबंधन के कारण खुद बीमार अवस्था में है. ज्ञात हो कि महज दो वर्ष पूर्व तक स्वास्थ्य विभाग के राज्य स्तरीय समीक्षा में बेहतर स्वास्थ्य सुविधा के लिए सदर अस्पताल सुपौल की गिनती सूबे में दूसरे व तीसरे स्थान पर होती थी, लेकिन इन दिनों सदर अस्पताल का ग्राफ 34 से 36 वें स्थान पर चला गया है.
गत कुछ दिनों से प्रभात खबर द्वारा सदर अस्पताल में व्याप्त कुव्यवस्था व मरीज व प्रसूताओं को होने वाली परेशानी सहित उनके आर्थिक शोषण को मुद्दा बना कर लगातार खबर प्रकाशित किया गया. प्रकाशित खबर पर अधिकारियों द्वारा संज्ञान लेकर व्याप्त कुव्यवस्था में सुधार के प्रयास किये गये, लेकिन मरीजों या प्रसूताओं की समस्या कम होने का नाम नहीं ले रहा है. शहर के गणमान्य और अस्पताल के पीड़ितों की उम्मीदें अब केवल जिला प्रशासन से है.
लोगों का यह मानना है कि यदि डीएम स्वयं ध्यान देकर अस्पताल में व्याप्त कुव्यवस्थाओं के सुधार के प्रति कार्य करें तो गरीब मरीजों को अपने या अपने परिजनों के उपचार के लिए पायल अथवा बकरी बेचने की नौबत नहीं आयेगी. प्रसूताओं को जमीन बंधक रख कर प्रसव के लिए मजबूर नहीं होना पड़ेगा.
सदर अस्पताल दलालों के चंगुल से पूर्ण रूपेण मुक्त हो जायेगा और एक बार फिर सदर अस्पताल में सरकारी घोषणाओं के मुताबिक मरीजों को मुफ्त चिकित्सा सुविधा उपलब्ध हो पायेगा. प्रभात खबर का एक मात्र मकसद सामाजिक सरोकार के इस मुद्दे को उच्चाधिकारी तक पहुंचा कर आम आवाम को बेहतर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करवाना है. हम आज एक बार फिर सदर अस्पताल के कुछ ज्वलंत समस्याओं को रख कर इसके निदान की उम्मीद कर रहे हैं.
इमरजेंसी दवाओं का है अभाव
सदर अस्पताल में गत एक माह से इमरजेंसी कक्ष व प्रसव कक्ष में महत्वपूर्ण दवाओं का अभाव है. किसी भी प्रकार के इमरजेंसी मरीज को सभी दवा खुले बाजार से खरीद कर लाना पड़ता है.यहां तक कि दर्द और गैस खत्म करने वाली दवा भी अस्पताल में उपलब्ध नहीं है. बुधवार को चकडुमरिया पूरब टोला निवासी महावीर मुखिया अपनी पुत्रवधु रूबी देवी को गंभीर स्थिति में सदर अस्पताल ले कर पहुंचे थे. ड्यूटी पर तैनात चिकित्सक डॉ अरुण कुमार वर्मा ने रूबी को डायरिया से पीड़ित बता कर दवा लिख दिया, लेकिन अस्पताल में एक भी दवा उपलब्ध नहीं था.
थक हार कर महावीर जान पहचान के एक व्यक्ति से कर्ज लेने के बाद बाजार से दवा क्रय कर लाया, उसके बाद रूबी का उपचार प्रारंभ किया गया. इस स्थिति का सामना यहां पहुंचने वाले सभी मरीजों के परिजनों को करना पड़ता है. सदर अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ एनके चौधरी दवा उपलब्ध नहीं रहने का कारण सदर अस्पताल में एकाउंटेंट का नहीं रहना बताते हैं, लेकिन यह सिर्फ बहाना है. डीएस के आदेश पर पूर्व में भी बाजार से इमरजेंसी की दवा उधार क्रय की गयी है. अगर डीएस चाहें तो आसानी से सदर अस्पताल की इमरजेंसी दवा उपलब्ध हो सकती है, लेकिन कर्मियों को सबक सिखाने की गरज से डीएस द्वारा दवा की खरीद नहीं की जा रही है.
प्रसूताओं का होता है आर्थिक शोषण
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत के कारण सदर अस्पताल का प्रसव कक्ष प्रसूताओं के आर्थिक शोषण का केंद्र बन कर रह गया है. प्रत्येक दिन आने वाली दर्जनों प्रसूताओं के परिजनों का यहां आर्थिक व मानसिक शोषण किया जाता है. प्रसूताओं के पहुंचते ही सर्वप्रथम उन्हें ऑक्सीटॉसीन सहित अन्य जरूरी दवा बाजार से खरीद कर लाने का परची थमाया जाता है. फिर प्रसव कक्ष में तैनात एएनएम द्वारा 500 से 1000 रुपये तक की राशि वसूल की जाती है.
कई आशा बताती है कि जब तक राशि नहीं दिया जाय, तब तक प्रसव कक्ष में एएनएम प्रसूता को छूना भी नहीं चाहती है. प्रसव उपरांत दबंगता पूर्वक बख्सिस के नाम पर भी राशि वसूली की जाती है. 500 से कम राशि देने पर सीधा ममता एवं दाय द्वारा परिजनों के मुंह पर राशि फेंक दिया जाता है. उसके बाद होता है टीकाकरण और जन्म प्रमाण पत्र निर्गत करने के नाम पर राशि की वसूली का खेल.
सूत्रों की मानें तो टीकाकरण व जन्म प्रमाण पत्र निर्गत करने के लिए भी संबंधितों द्वारा राशि तय है. ऐसा नहीं है कि इस बात की जानकारी स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी व डीएस को नहीं है.सूत्र बताते हैं कि प्रसव कक्ष में ड्यूटी लगाने के नाम पर एएनएम से मोटी रकम वसूल की जाती है.साथ ही उन्हें एक निर्धारित रकम भी प्रति माह पहुंचाना पड़ता है. प्रसव कक्ष की कई एएनएम ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि उन्हें भी ऊपर तक प्रति माह दो हजार रुपये पहुंचाना पड़ता है.
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