पानी के लिए भटकते रहते हैं लोग
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सूरत-ए-हाल . वर्षों से बंद पड़ा है करोड़ों की लागत से बना जलमीनार
पानी के लिए भटकते रहते हैं लोग कोसी प्रभावित क्षेत्र होने के कारण यहां शुद्ध पेयजल का शुरू से ही अभाव रहा है. कोसी प्रभावित इलाके के पानी में आयरन, आर्सेनिक, सल्फर, फ्लोराइड जैसे अनेकों रासायनिक तत्व पाये जाते हैं. पर, प्रशासन की उदासीनता से लोगों को शुद्ध पेयजल के लिए बाजार के सहारे रहना […]
कोसी प्रभावित क्षेत्र होने के कारण यहां शुद्ध पेयजल का शुरू से ही अभाव रहा है. कोसी प्रभावित इलाके के पानी में आयरन, आर्सेनिक, सल्फर, फ्लोराइड जैसे अनेकों रासायनिक तत्व पाये जाते हैं. पर, प्रशासन की उदासीनता से लोगों को शुद्ध पेयजल के लिए बाजार के सहारे रहना पड़ता है.
सुपौल : जिला मुख्यालय में करीब चार दशक पूर्व बिहार राज्य जल परिषद द्वारा पीएचइडी कैंपस में बना जलमीनार आज भी शोभा की वस्तु बन कर रह गया है. करोड़ों की लागत से बना जलमीनार का उद्देश्य यहां के आम शहरी को शुद्ध पेयजल मुहैया कराना था. पर, सही देख- रेख के अभाव में सरकार द्वारा करोड़ों का पेयजल प्रोजेक्ट बंद पड़ा है. इसके कारण आज भी यहां के लोगों को शुद्ध पेयजल के लिए बाजार पर निर्भर रहना पड़ता है.
कोसी प्रभावित क्षेत्र होने के कारण यहां शुद्ध पेयजल का शुरू से ही अभाव रहा है. कोसी प्रभावित इलाके के पानी में आयरन, आर्सेनिक, सल्फर, फ्लोराइड जैसे अनेकों रासायनिक तत्व पाये जाते हैं. इसके कारण यहां का पानी स्वास्थ्य के अनुकूल नहीं माना जाता है. यही कारण था कि शुरू से इन क्षेत्रों में सरकार द्वारा पानी के संयंत्र लगाये गये और लगाये जा रहे हैं. पर, यहां के लोगों को इन लगाये गये संयंत्रों का कुछ खास फायदा नहीं पहुंच रहा है.
1974 में रखी गयी थी आधारशिला
कोसी प्रभावित इलाके लोगों के लिए मुख्यालय स्थित जलमीनार की आधारशिला 1974 में रखी गयी थी. इसका मुख्य उद्देश्य यहां के लोगों को शुद्ध पेयजल मुहैया कराना था. इसे बनने के बाद कुछ वर्षों तक लोगों को शुद्ध पेय जल की आपूर्ति भी की गयी. पर, सही देख-रेख के अभाव में यह जलमीनार लगभग चार दशक से यहां के लोगों के लिए शोभा की वस्तु बन कर रह गया है. शुद्ध पानी के लिए लोग बाजार पर निर्भर हैं. वहीं गरीब तबके के लोग पानी के लिए दिनभर इधर-उधर भटकते रहते है.
कहते हैं नगरवासी
समय के साथ लोगों में स्वास्थ्य के प्रति काफी जागरूकता बढ़ी है. यही कारण है कि लोग पीने के पानी को लेकर काफी सजग हो गये हैं.
वृद्ध निर्भय दास कहते हैं कि जलमीनार बनने के कुछ वर्ष तक तो ठीक-ठाक चला, लेकिन सही देख-रेख के अभाव में वर्षों से बेकार पड़ा है. सरकार द्वारा संचालित सभी योजनाओं का हाल इसी तरह का है.
नवीन कुमार गुप्ता कहते हैं कि सरकार द्वारा संचालित सभी योजनाओं का हश्र इसी प्रकार होता है. जलमीनार का उद्देश्य यहां के लोगों को शुद्ध पेयजल मुहैया कराना नहीं था, बल्कि इसके निर्माण में लूट-खसोट करना था. यही कारण है कि सरकार द्वारा निर्मित अधिकांश योजनाएं बनने के बाद ही धाराशायी हो जाती हैं.
मनोज कुमार सिंह कहते है कि जलमीनार सुपौल नगर वासी के लिए एक प्रतीक चिह्न बन कर रह गया है, जो यहां की शोभा बढ़ा रहा है. इसका निर्माण तो कर दिया गया, लेकिन इसकी देख-रेख नहीं की गयी.
बासुकी कहते हैं कि जलमीनार के निर्माण के बाद कुछ दिनों तक तो लोगों को पेय जल जरूर आपूर्ति की गयी थी, लेकिन कुछ ही दिनों बाद ये बंद हो गया.
कहते हैं अधिकारी
बंद पड़े जलमीनार के संबंध में जब लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग के कार्यपालक अभियंता मनीष आनंद से पूछा गया, तो उन्होंने बताया कि जलमीनार बिहार राज्य जल परिषद के अधीन है.
शुद्ध पेयजल आपूर्ति की कवायद शुरू
नगरवासियों को शुद्ध पेय जल उपलब्ध कराने के लिए नगर परिषद द्वारा जलापूर्ति योजना प्रारंभ की गयी है. इसके तहत नगर परिषद क्षेत्र में कुल सात जलमीनार की स्थापना की जायेगी. प्रत्येक जलमीनार को चार वार्डों में पेयजल आपूर्ति का जिम्मा होगा. नप के कार्यपालक पदाधिकारी एसके मिश्रा ने बताया कि इस बाबत नगर विकास विभाग द्वारा नप क्षेत्र में जलापूर्ति योजना को स्वीकृति दी गयी है. इसके लिए 19 करोड़ 91 लाख 57 हजार स्वीकृत किये गये हैं.
इसमें 09 करोड़ 95 लाख 78 हजार रुपये का आवंटन भी प्राप्त हो चुका है. योजना का कार्य संपन्न कराने की जिम्मेवारी बिहार राज्य जल पर्षद को सौंपी गयी है. प्राप्त राशि भी उन्हें आवंटित कर दी गयी है. गत दिनों विधायक सह ऊर्जा मंत्री विजेंद्र प्रसाद यादव द्वारा शिलान्यास के बाद पर्षद द्वारा कार्य प्रारंभ कर दिया गया है.
कहते हैं दंत चिकित्सक
कोसी के इलाके में पानी में पाये जाने वाले रासायनिक तत्वों के कारण यहां के लोगों को कई गंभीर बीमारियों का शिकार होना पड़ता है. यहां के पानी में पाये जाने वाले आयरन, आर्सेनिक व फ्लोराइड होता है. आयरन की वजह से कपड़ों में पीलापन, फ्लोराइड से दांतों के रोग व आर्सेनिक से लीवर, पैंक्रियाज, किडनी व अन्य कई घातक बीमारियां होती हैं
. इससे बचने का एक मात्र उपाय शुद्ध पेयजल है. दंत चिकित्सक रंजन कुमार कहते हैं कि आज कल दांत रोग से ग्रसित मरीजों की संख्या में इजाफा हुआ है. इसका एक मुख्य कारण फ्लोराइड है. इसकी वजह से फ्लुरोसिस की बीमारी होती है.
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